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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 58 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 58/ मन्त्र 12
    ऋषिः - बन्ध्वादयो गौपायनाः देवता - मन आवर्त्तनम् छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    यत्ते॑ भू॒तं च॒ भव्यं॑ च॒ मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । ते॒ । भू॒तम् च॒ । भव्य॑म् । च॒ । मनः॑ । ज॒गाम॑ । दूर॒कम् । तत् । ते॒ । आ । व॒र्त॒या॒म॒सि॒ । इ॒ह । क्षया॑य । जी॒वसे॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्ते भूतं च भव्यं च मनो जगाम दूरकम् । तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । ते । भूतम् च । भव्यम् । च । मनः । जगाम । दूरकम् । तत् । ते । आ । वर्तयामसि । इह । क्षयाय । जीवसे ॥ १०.५८.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 58; मन्त्र » 12
    अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 6
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (ते) मानसरोगग्रस्त जन ! तेरा (यत्-मनः) जो मन (भूतं च भव्यं च दूरकं जगाम) बीती बातों या विषयों में और भविष्य की बातों के प्रति दूर चला गया है-दौड़ गया है (ते तत्……) पूर्ववत् ॥१२॥

    भावार्थ

    मानसिक रोग में ग्रस्त मनवाले व्यक्ति का मन कभी बहुत पुरानी बातों को सोचता रहता है, कभी भविष्य की अनावश्यक कल्पनाएँ करता रहता है, उसे भी विविध उपचारों और आश्वासनों से शान्त तथा स्वस्थ बनाना चाहिए ॥१२॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ते) हे मानसरोगग्रस्त जन ! तव (यत्-मनः) यन्मनः (भूतं च भव्यं च दूरकं जगाम) भूतं गतविषयं भविष्यविषयं प्रति च दूरं गतम् (ते तत्……) पूर्ववत् ॥१२॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Your mind that wanders far over the past and the future that is unpredictable, we bring back to normalcy, here to be at peace for your happy life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    मानसिक रोगाने ग्रस्त मन असणाऱ्या व्यक्तीचे मन कधी फार जुन्या गोष्टींचा विचार करते, कधी भविष्याबाबत अनावश्यक कल्पना करते. त्यालाही विविध उपचार व आश्वासनांनी शांत व स्वस्थ केले पाहिजे. ॥१२॥

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