ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 61/ मन्त्र 26
ऋषिः - नाभानेदिष्ठो मानवः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - स्वराडार्चीत्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
स गृ॑णा॒नो अ॒द्भिर्दे॒ववा॒निति॑ सु॒बन्धु॒र्नम॑सा सू॒क्तैः । वर्ध॑दु॒क्थैर्वचो॑भि॒रा हि नू॒नं व्यध्वै॑ति॒ पय॑स उ॒स्रिया॑याः ॥
स्वर सहित पद पाठसः । गृ॒णा॒नः । अ॒त्ऽभिः । दे॒वऽवा॑न् । इति॑ । सु॒ऽबन्धुः॑ । नम॑सा । सु॒ऽउ॒क्तैः । वर्ध॑त् । उ॒क्थैः । वचः॑ऽभिः । आ । हि । नू॒नम् । वि । अध्वा॑ । ए॒ति॒ । पय॑सः । उ॒स्रिया॑याः ॥
स्वर रहित मन्त्र
स गृणानो अद्भिर्देववानिति सुबन्धुर्नमसा सूक्तैः । वर्धदुक्थैर्वचोभिरा हि नूनं व्यध्वैति पयस उस्रियायाः ॥
स्वर रहित पद पाठसः । गृणानः । अत्ऽभिः । देवऽवान् । इति । सुऽबन्धुः । नमसा । सुऽउक्तैः । वर्धत् । उक्थैः । वचःऽभिः । आ । हि । नूनम् । वि । अध्वा । एति । पयसः । उस्रियायाः ॥ १०.६१.२६
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 61; मन्त्र » 26
अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 30; मन्त्र » 6
Acknowledgment
अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 30; मन्त्र » 6
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (1)
पदार्थ
(सः-देववान् सुबन्धुः-इति) वह परमात्मा मुमुक्षुओं से सेवित, उपासक जिसके अच्छे बन्धु हैं, ऐसा प्रसिद्ध है (अद्भिः-नमसा सूक्तैः-गृणानः) आप्तजनों द्वारा स्तुति और अच्छे वचनों से स्तुत किया जाता है-प्रशंसित किया जाता है (उक्थैः-वचोभिः-वर्धत्) प्रशस्त वचनों द्वारा स्तुति करनेवाले को वह बढ़ाता है (नूनं हि-उस्रियायाः पयसः-अध्वा वि-आ-एति) सम्प्रति-तुरन्त ही दूध को स्रवित करनेवाली गौ के दूध का जैसे स्रवणमार्ग होता है, उससे सरलतया जैसे दुग्ध प्राप्त होता है, वैसे स्तुतिफल को लक्ष्य करते हुए ध्यानमार्ग से विशेषरूप से प्राप्त होता है ॥२६॥
भावार्थ
परमात्मा जीवन्मुक्तों का इष्टदेव तथा उपासकों का बन्धु है। वह आप्त विद्वानों की स्तुतियों और सुवचनों द्वारा स्तुति में लाया जाता हुआ स्तुतिकर्ता को बढ़ाता है तथा उसे प्राप्त होता है, अध्यात्ममार्ग द्वारा-जैसे दूध को रिसानेवाली गौ के स्तनमार्ग से शीघ्र दूध प्राप्त होता है। अतः उसकी स्तुति करनी चाहिए ॥२६॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सः-देववान् सुबन्धुः-इति) देवा मुमुक्षवो यस्य सन्ति स परमात्मा खलूपासकाः सुशोभनो बन्धुः-इति प्रसिद्धः (अद्भिः-नमसा सूक्तैः गृणानः) आप्तजनैः “मनुष्या वा-आपश्चन्द्राः” [श० ७।६।१।२०] स्तुत्या सुवचनैः स्तूयमानो भवति (उक्थैः-वचोभिः-वर्धत्) यतः स प्रशस्तैर्वचनैर्वर्धयति स्तोतारं (नूनं हि-उस्रियायाः पयसः-अध्वा वि-आ-एति) सम्प्रति सद्यो हि-उत्स्राविण्या गोः पयसो यथाऽध्वा मार्गो भवति तथा स्तुत्याः फलमनुसरन् ध्यानमार्गेण विशिष्टतया प्राप्नोति ॥२६॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Say the lord almighty adored by holies is a friend of the divines. Noble brother and all unifier, He is to be worshipped and exalted with homage of love, hymns of faith, rituals of service and words of praise. His grace rains in showers by paths of love in piety and meditation as the mother cow’s milk flows for the calf.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा जीवनमुक्तांचा इष्टदेव व उपासकांचा बंधू आहे. तो आप्त विद्वानांद्वारे स्तुती व सुवचनाने प्रशंसित केला जातो व तो स्तुतिकर्त्याला वाढवितो. जसे गायीच्या स्तनांतून दूध पाझरते तसे तो परमात्मा अध्यात्ममार्गाने प्राप्त होतो. त्यामुळे त्याची स्तुती केली पाहिजे. ॥२६॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Dhiman
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal