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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 66 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 66/ मन्त्र 12
    ऋषिः - वसुकर्णो वासुक्रः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    स्याम॑ वो॒ मन॑वो दे॒ववी॑तये॒ प्राञ्चं॑ नो य॒ज्ञं प्र ण॑यत साधु॒या । आदि॑त्या॒ रुद्रा॒ वस॑व॒: सुदा॑नव इ॒मा ब्रह्म॑ श॒स्यमा॑नानि जिन्वत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्याम॑ । वः॒ । मन॑वः । दे॒वऽवी॑तये । प्राञ्च॑म् । नः॒ । य॒ज्ञम् । प्र । न॒य॒त॒ । सा॒धु॒ऽया । आदी॑त्याः । रुद्राः॑ । वस॑वः । सुऽदा॑नवः । इ॒मा । ब्रह्म॑ । श॒स्यमा॑नानि । जि॒न्व॒त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्याम वो मनवो देववीतये प्राञ्चं नो यज्ञं प्र णयत साधुया । आदित्या रुद्रा वसव: सुदानव इमा ब्रह्म शस्यमानानि जिन्वत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्याम । वः । मनवः । देवऽवीतये । प्राञ्चम् । नः । यज्ञम् । प्र । नयत । साधुऽया । आदीत्याः । रुद्राः । वसवः । सुऽदानवः । इमा । ब्रह्म । शस्यमानानि । जिन्वत ॥ १०.६६.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 66; मन्त्र » 12
    अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (मनवः) हे मननशील विद्वानों ! (वः) तुम्हारी (देववीतये) विद्वत्सङ्गति के लिए (स्याम) हम हों (नः-यज्ञं प्राञ्चं साधुया प्रणयत) हमारे ज्ञानयज्ञ को प्रगतिशील साधुरूप में प्रवर्तित करो (आदित्याः-रुद्राः-वसवः सुदानवः) पूर्णब्रह्मचारी, मध्यब्रह्मचारी, अल्पब्रह्मचारी तथा शोभनज्ञान देनेवाले (इमा ब्रह्मा शस्यमानानि जिन्वत) इन मन्त्रवचनों प्रशंसनीय वचनों को प्राप्त करावें ॥१२॥

    भावार्थ

    विद्वानों की सङ्गति करके ज्ञान प्राप्त करना और आध्यात्मिक साधना में लगना चाहिए तथा उच्च, मध्यम और अवम ब्रह्मचारियों से उनके अधीत मन्त्रविज्ञानों का श्रवण करना चाहिए ॥१२॥

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    विषय

    विद्वानों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (मनवः) मननशील विद्वान् पुरुषो ! हम लोग (वः) आप लोगों के (देव-वीतये) सुखप्रद नाना उत्तम पदार्थों और इन्द्रियों की रक्षा के लिये (स्याम) हों। (नः यज्ञं) हमारे यज्ञ (आत्मा) उपास्य जो (प्राञ्चं) स्वयं सब से अधिक पूजनीय है उसको (साधुया) साधना द्वारा (प्र नयत) अच्छी प्रकार प्राप्त करो। (आदित्याः रुद्राः वसवः) १२ मास, पृथिवी आदि लोक और १२ प्राण, ये सब (सु-दानवः) सुखप्रद होकर (इमा शस्यमानानि) इन उच्चारण किये वेद वचनों को वा प्रशंसनीय ब्रह्म अर्थात् विद्वान् जनों के कुलों को (प्र जिन्वत) बढ़ावें। अथवा ये सब पदार्थ (शस्य-मानानि) सस्य धान्य रूप से प्राप्त (इमा ब्रह्म) इन अन्नों की (प्र जिन्वत) खूब वृद्धि करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषि वसुकर्णो वासुक्रः॥ विश्वेदेवा देवताः। छन्द:– १, ३, ५–७ जगती। २, १०, १२, १३ निचृज्जगती। ४, ८, ११ विराड् जगती। ९ पाद-निचृज्जगती। १४ आर्ची स्वराड् जगती। १५ विराट् त्रिष्टुप्॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    आदित्यों-रुद्रों व वसुओं के सम्पर्क में

    पदार्थ

    [१] हे (आदित्याः) = प्रकृति, जीव व परमात्मा का ज्ञान प्राप्त करनेवाले सूर्यवत् देदीप्यमान ज्ञानियो ! (रुद्राः) = [रोरूयमाणो द्रवति] प्रकृति व जीव का ज्ञान प्राप्त करके, प्रभु का नामोच्चारण करते हुए, हृदयस्थ वासनाओं पर आक्रमण करनेवाले चन्द्रवत् साह्लाद मनोवृत्तिवाले पुरुषो ! (वसवः) = प्रकृति के पूर्णज्ञान से अपने निवास को उत्तम बनानेवाले वसुओ ! आप (सुदानवः) = उत्तमता से बुराइयों का खण्डन करनेवाले हो । हम (मनवः) = विचारशील बनकर (वः) = आपके (स्याम) = हों । हम आपके सम्पर्क में आएँ और (देववीतये) = दिव्यगुणों की प्राप्ति के लिये हों । [२] आप (नः) = हमारे (यज्ञम्) = यज्ञ को, श्रेष्ठतम कर्म को (साधुया) = उत्तम प्रकार से (प्रणयत) = प्रकर्षेण आगे ले चलनेवाले होवो। और (इमा) = इन (शस्यमानानि) = प्रशंसा किये जाते हुए (ब्रह्म) = स्तोत्रों को (जिन्वत) = हमारे में प्रीणित करो। हम उत्तम स्तोत्रों को करनेवाले बने ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम आदित्यों, रुद्रों व वसुओं के सम्पर्क में आकर विचारशील बनें, दिव्यगुणों को प्राप्त करें। हमारी वृत्ति यज्ञिय हो, हम प्रभु स्तोत्रों का उच्चारण करें।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (मनवः) हे मननशीला विद्वांसः ! (वः) युष्माकं (देववीतये) विद्वत्सङ्गत्यै (स्याम) भवेम (नः-यज्ञं प्राञ्चं साधुया प्रणयत) अस्माकं ज्ञानयज्ञं प्रगतिशीलं साधुरूपं प्रवर्तयत (आदित्याः-रुद्राः-वसवः सुदानवः) पूर्णब्रह्मचारिणो मध्यब्रह्मचारिणोऽल्पब्रह्मचारिणः शोभनज्ञानदातारः (इमा ब्रह्म शस्यमानानि जिन्वत) एतानि मन्त्रवचनानि प्रशंसनीयानि वचनानि प्रापयत “जिन्वति गतिकर्मा” [निघ० ५।१४] ॥१२॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O men of thought and enlightenment, may we all be for your advancement and well being on the path of holiness and rectitude. Please take our yajnic endeavours forward in the right direction in a simple and straight manner. O Vasus, Rudras and Adityas, scholars of the first, higher and highest order, noble and generous, please refresh, promote and advance these hymns of adoration to higher achievement in the programmes.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    विद्वानांच्या संगतीने ज्ञान प्राप्त करून आध्यात्मिक साधनेत राहावे व उच्च, मध्यम व निम्न ब्रह्मचारी विद्यार्थ्यांनी त्यांच्या मंत्र विज्ञानाचे श्रवण करावे. ॥१२॥

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