Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 69 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 69/ मन्त्र 12
    ऋषिः - सुमित्रो वाध्र्यश्चः देवता - अग्निः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒यम॒ग्निर्व॑ध्र्य॒श्वस्य॑ वृत्र॒हा स॑न॒कात्प्रेद्धो॒ नम॑सोपवा॒क्य॑: । स नो॒ अजा॑मीँरु॒त वा॒ विजा॑मीन॒भि ति॑ष्ठ॒ शर्ध॑तो वाध्र्यश्व ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । अ॒ग्निः । व॒ध्रि॒ऽअ॒श्वस्य॑ । वृ॒त्र॒ऽहा । स॒न॒कात् । प्रऽइ॑द्धः । नम॑सा । उ॒प॒ऽवा॒क्यः॑ । सः । नः॒ । अजा॑मीन् । उ॒त । वा॒ । विऽजा॑मीन् । अ॒भि । ति॒ष्ठ॒ । शर्ध॑तः । वा॒ध्रि॒ऽअ॒श्व॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयमग्निर्वध्र्यश्वस्य वृत्रहा सनकात्प्रेद्धो नमसोपवाक्य: । स नो अजामीँरुत वा विजामीनभि तिष्ठ शर्धतो वाध्र्यश्व ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । अग्निः । वध्रिऽअश्वस्य । वृत्रऽहा । सनकात् । प्रऽइद्धः । नमसा । उपऽवाक्यः । सः । नः । अजामीन् । उत । वा । विऽजामीन् । अभि । तिष्ठ । शर्धतः । वाध्रिऽअश्व ॥ १०.६९.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 69; मन्त्र » 12
    अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 20; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (वध्र्यश्वस्य) जितेन्द्रिय मनुष्य की (नमसा-उपवाक्यः) स्तुति से उपास्य प्रशंसनीय (अयम्-अग्निः) यह अग्रणायक परमात्मा है (सनकात्  प्रेद्धः-वृत्रहा) पुरातन काल से आत्मा में साक्षात् किया हुआ पापनाशक है (सः) वह तू (वाध्र्यश्व) जितेन्द्रिय मनुष्य के उपास्यदेव हे परमात्मन् ! (नः) हमारे (अजामीन्-उत वा विजामीन् शर्धतः-अभितिष्ठ) जन्म से असम्बधियों और विपरीत सम्बन्धियों विरोधियों को बल प्रदर्शित करते हुओं को दबा अभिभूत कर ॥१२॥

    भावार्थ

    जितेन्द्रिय उपासक जब परमात्मा की उपासना करता है, तो परमात्मा उसे पापों से बचाता है तथा उसके साथ सम्बन्ध न रखनेवाले बाधकों को और विपरीत सम्बन्ध रखनेवाले बाधकों को वह दबा देता है ॥१२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (वध्र्यश्वस्य) नियन्त्रितेन्द्रियस्य (नमसा-उपवाक्यः) स्तुत्यां खलूपास्यः प्रशंसनीयः (अयम्-अग्निः) एषोऽग्रणायकः परमात्मा (सनकात् प्रेद्धः-वृत्रहा) पुरातनात् कालात्-चिरमिति यावत् स्वात्मनि साक्षात्कृतः पापनाशकोऽस्ति (सः) स त्वं (वाध्र्यश्व) जितेन्द्रियस्योपास्य परमात्मन् ! (नः) अस्माकं (अजामीन्-उत वा विजामीन् शर्धतः-अभितिष्ठ) जन्मतोऽसम्बन्धिनो विगत सम्बन्धिनः-विरोधिनश्च बलं प्रदर्शयतोऽभिभव ॥१२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This Agni, lord of self-refulgent light, all time invoked and lighted with prayer and homage, is the dispeller of darkness for the devotee of controlled mind and senses. O lord and leader of light and life, face upto and overthrow our enemies whether they are united as a community of saboteurs or as a hoard of heterogeneous antisocial destroyers.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जितेंद्रिय उपासक जेव्हा परमेश्वराची उपासना करतो तेव्हा परमेश्वर त्याला पापांपासून वाचवितो व त्याच्याबरोबर संबंध न ठेवणाऱ्या बाधकांना व विपरीत संबंध ठेवणाऱ्या बाधकांना दूर करतो. ॥१२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top