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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 69 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 69/ मन्त्र 7
    ऋषिः - सुमित्रो वाध्र्यश्चः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    दी॒र्घत॑न्तुर्बृ॒हदु॑क्षा॒यम॒ग्निः स॒हस्र॑स्तरीः श॒तनी॑थ॒ ऋभ्वा॑ । द्यु॒मान्द्यु॒मत्सु॒ नृभि॑र्मृ॒ज्यमा॑नः सुमि॒त्रेषु॑ दीदयो देव॒यत्सु॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दी॒र्घऽत॑न्तुः । बृ॒हत्ऽउ॑क्षा । अ॒यम् । अ॒ग्निः । स॒हस्र॑ऽस्तरीः । श॒तऽनी॑थः । ऋभ्वा॑ । द्यु॒ऽमान् । द्यु॒मत्ऽसु॑ । नृऽभिः॑ । मृ॒ज्यमा॑नः । सु॒ऽमि॒त्रेषु॑ । दी॒द॒यः॒ । दे॒व॒यत्ऽसु॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दीर्घतन्तुर्बृहदुक्षायमग्निः सहस्रस्तरीः शतनीथ ऋभ्वा । द्युमान्द्युमत्सु नृभिर्मृज्यमानः सुमित्रेषु दीदयो देवयत्सु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दीर्घऽतन्तुः । बृहत्ऽउक्षा । अयम् । अग्निः । सहस्रऽस्तरीः । शतऽनीथः । ऋभ्वा । द्युऽमान् । द्युमत्ऽसु । नृऽभिः । मृज्यमानः । सुऽमित्रेषु । दीदयः । देवयत्ऽसु ॥ १०.६९.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 69; मन्त्र » 7
    अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 20; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (अयम्-अग्निः) यह अग्रणायक परमात्मा या राजा (दीर्घतन्तुः) दीर्घ ज्ञानरश्मिवाला (बृहदुक्षा) महान् सुखवर्षक (सहस्रस्तरीः) बहुत प्रजा विस्तारवाला (शतनीथः) बहुत प्राप्ति धर्मवाला परमात्मा या बहुत नीतिमान् राजा (ऋभ्वा) व्यापक परमात्मा या महती शक्तिवाला राजा (द्युमत्सु द्युमान्) ज्ञानप्रकाशवालों में अधिक ज्ञानवान् (नृभिः-मृज्यमानः) स्तुतिकर्त्ताओं के द्वारा प्राप्त होनेवाला परमात्मा या राष्ट्रनायकों के द्वारा प्राप्त होनेवाला राजा (सुमित्रेषु देवयत्सु दीदयः) शोभन मित्रों में, अपने को देव माननेवालों में प्रकाशित होता है ॥७॥

    भावार्थ

    परमात्मा की ज्ञानदृष्टि महती है। वह समस्त ज्ञानियों के अन्दर ज्ञान का प्रेरक है, स्तुति करनेवालों से प्राप्त होने योग्य है, उसे जो अपना देव मानते हैं, उनका वह मित्र बन जाता है। एवं राजा की प्रजा पर ज्ञानदृष्टि बहतु ऊँची होनी चाहिए, अन्य नीतिमानों से ऊँचा नीतिमान् होना चाहिए, उसके अच्छे-अच्छे नायक सहायक हों और उसमें भक्ति रखनेवाले हों ॥७॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अयम्-अग्निः) एषोऽग्रणायक परमात्मा राजा वा (दीर्घतन्तुः) दीर्घज्ञानरश्मिमान् (बृहदुक्षा) महान् सुखवर्षकः (सहस्रस्तरीः) बहुप्रजाविस्तारवान् (शतनीथः) बहुप्रापणधर्मा बहुनीतिमान् वा (ऋभ्वा) व्यापको महच्छक्तिमान् वा (द्युमत्सु द्युमान्) ज्ञानप्रकाशवत्सु तदपेक्षया ज्ञानप्रकाशवान् (नृभिः-मृज्यमानः) स्तोतृभिर्नायकजनैः प्राप्यमाणः “मार्ष्टि गतिकर्मा” [निघ० २।१४] (सुमित्रेषु देवयत्सु दीदयः) शोभनमित्रेषु स्वदेवं मन्यमानेषु प्रकाशितो भवसि ॥७॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This Agni, of expansive unending life, vastly generous burden bearer, thousandfold protected, mysterious and revealing, a hundred ways dynamic leader, excellent expert wise, most radiant among brilliants, adored and exalted by leading lights among friends of noblest mind, shines among the lovers of divinity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराची ज्ञानदृष्टी महान आहे. तो संपूर्ण ज्ञानी लोकांमध्ये ज्ञानाचा प्रेरक आहे. स्तुती करणाऱ्यांना प्राप्त करण्यायोग्य आहे. त्याला जे देव मानतात त्यांचा तो मित्र बनतो. राजाची प्रजेवर उत्कृष्ट दृष्टी असावी. इतर नीतिमानापेक्षा तो उच्च नीतिमान असावा. चांगले नेते त्याचे सहायक असावेत व त्याच्यावर भक्ती करणारे असावेत. ॥७॥

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