ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 71/ मन्त्र 5
उ॒त त्वं॑ स॒ख्ये स्थि॒रपी॑तमाहु॒र्नैनं॑ हिन्व॒न्त्यपि॒ वाजि॑नेषु । अधे॑न्वा चरति मा॒ययै॒ष वाचं॑ शुश्रु॒वाँ अ॑फ॒लाम॑पु॒ष्पाम् ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । त्व॒म् । स॒ख्ये । स्थि॒रऽपी॑तम् । आहुः॑ । न । ए॒न॒म् । हि॒न्व॒न्ति॒ । अपि॑ । वाजि॑नेषु । अधे॑न्वा । च॒र॒ति॒ । मा॒यया॑ । ए॒षः । वाच॑म् । शु॒श्रु॒ऽवान् । अ॒फ॒लाम् । आ॒पु॒ष्पाम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत त्वं सख्ये स्थिरपीतमाहुर्नैनं हिन्वन्त्यपि वाजिनेषु । अधेन्वा चरति माययैष वाचं शुश्रुवाँ अफलामपुष्पाम् ॥
स्वर रहित पद पाठउत । त्वम् । सख्ये । स्थिरऽपीतम् । आहुः । न । एनम् । हिन्वन्ति । अपि । वाजिनेषु । अधेन्वा । चरति । मायया । एषः । वाचम् । शुश्रुऽवान् । अफलाम् । आपुष्पाम् ॥ १०.७१.५
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 71; मन्त्र » 5
अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
हिन्दी (1)
पदार्थ
(उत त्वं सख्ये) किसी एक अर्थ जाननेवाले-वाणी के साथ ज्ञान से समानता को प्राप्त कर लेने पर या विद्वानों के साथ मित्रता प्राप्त कर लेने पर (स्थिरपीतम्-आहुः) स्वात्मा में धारण किया हुआ कहते हैं (वाजिनेषु) वाणी के स्वामी विद्वानों में या वाणी के ज्ञानप्रसङ्गों में (एनं-न-अपि हिन्वन्ति) इसे कोई भी नहीं प्राप्त करते (अधेन्वा मायया-एष चरति) वाणी के प्रतिरूप वाणी जैसी के साथ विचरता है, उसे ऐसे (वाचम्-अफलाम्-अपुष्पां शुश्रुवान्) जो वाणी को पुष्पफलरहित अर्थात् अर्थशून्य सुनता है ॥५॥
भावार्थ
जो वाणी के साथ अर्थज्ञान से मित्रता बनाता है अथवा विद्वानों से वाणी के अर्थों को जानता है, उसे वाणी के लाभ को प्राप्त हुआ कहते हैं और जो वाणी के अर्थ को नहीं जानता, वह केवल शब्दरूप बोलता है। वह वाणी के प्रतिरूपक काष्ठ की गौ के समान व्यवहार करता है ॥५॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(उत त्वं सख्ये) अप्येकमर्थज्ञं वाक्सख्ये-वाचा सह ज्ञानेन-ताद्भाव्यं प्राप्ते देवसख्ये वा (स्थिरपीतम्-आहुः) स्थिरं स्वात्मनि धारितं कथयन्ति (वाजिनेषु-एनं न-अपि हिन्वन्ति) वाज्-इनेषु मन्त्रवाचो ये इनाः स्वामिनो देवास्तेषु यद्वा वाग्ज्ञेयेषु प्रसङ्गेषु केऽपि न प्राप्नुवन्ति (अधेन्वा मायया-एष चरति) वाक्प्रतिरूपया धेनुरूपयेव चरति विचरति पठति (वाचम्-अफलाम्-अपुष्पां शुश्रुवान्) यो वाचं पुष्पफलरहितामर्थशून्यां श्रुतवान् ॥५॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Such a realised soul, they say, is a sober scholar on solid foundations in matters of language, meaning and vision of reality. In scholarly meets they do not trifle with him, nor contradict him. But some may not even come to the fringe of his attainment. And another one moves around like a barren cow, struck by the magic of mere sound of words, hearing language without fruit or flower.
मराठी (1)
भावार्थ
जो वाणीशी अर्थज्ञानाने मैत्री करतो किंवा विद्वानांकडून वाणीचा अर्थ जाणतो त्याला वाणीचा लाभ मिळतो, असे म्हटले जाते. जो वाणीचा अर्थ जाणत नाही तो केवळ शब्दरूपाने बोलतो. तो वाणीच्या प्रतिरूपक काष्टाच्या गायीप्रमाणे व्यवहार करतो. ॥५॥
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