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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 77 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 77/ मन्त्र 8
    ऋषिः - स्यूमरश्मिर्भार्गवः देवता - मरूतः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ते हि य॒ज्ञेषु॑ य॒ज्ञिया॑स॒ ऊमा॑ आदि॒त्येन॒ नाम्ना॒ शम्भ॑विष्ठाः । ते नो॑ऽवन्तु रथ॒तूर्म॑नी॒षां म॒हश्च॒ याम॑न्नध्व॒रे च॑का॒नाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । हि । य॒ज्ञेषु॑ । य॒ज्ञिया॑सः । ऊमाः॑ । आ॒दि॒त्येन॑ । नाम्ना॑ । शम्ऽभ॑विष्ठाः । ते । नः॒ । अ॒व॒न्तु॒ । र॒थ॒ऽतूः । म॒नी॒षाम् । म॒हः । च॒ । याम॑न् । अ॒ध्व॒रे । च॒का॒नाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते हि यज्ञेषु यज्ञियास ऊमा आदित्येन नाम्ना शम्भविष्ठाः । ते नोऽवन्तु रथतूर्मनीषां महश्च यामन्नध्वरे चकानाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते । हि । यज्ञेषु । यज्ञियासः । ऊमाः । आदित्येन । नाम्ना । शम्ऽभविष्ठाः । ते । नः । अवन्तु । रथऽतूः । मनीषाम् । महः । च । यामन् । अध्वरे । चकानाः ॥ १०.७७.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 77; मन्त्र » 8
    अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 11; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (ते) वे जीवन्मुक्त विद्वान् (यज्ञेषु) ज्ञानयज्ञों में (यज्ञियासः) पूजा के योग्य-सत्कारयोग्य (ऊमाः) रक्षक (आदित्येन) अखण्ड सुख सम्पत्ति-मुक्ति में होनेवाले आनन्दरस से मनुष्यों के अत्यन्त कल्याणकारक हैं (ते) वे (रथतूः) रमणीय मोक्ष के प्रति प्रेरित करनेवाले (अध्वरे यामन्) अध्यात्मयज्ञरूप मार्ग में वर्तमान हुओं के (नः) हमारी (मनीषाम्) प्रज्ञा को (महः च) और महान् ज्ञान को (चकानाः) कामना करते हुए (अवन्तु) हमें शिष्यभाव से रखें और श्रवण करावें ॥८॥

    भावार्थ

    जीवन्मुक्त विद्वान् ज्ञानयज्ञ में सत्कार करने योग्य हैं, वे मोक्षानन्द के लिए मनुष्यों को प्रेरित करते हैं और अपनी शरण में लेकर बुद्धि तथा ज्ञान को बढ़ाते हैं ॥८॥

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    विषय

    रक्षक, सर्वशान्तिदायक आदित्य विद्वान् तेजस्वियों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (ते) वे (हि) निश्चय से (यज्ञेषु) यज्ञों, सत्संगों और देवपूजन, अध्ययन, अध्यापन आदि कार्यों में (यज्ञियासः) यज्ञ, सत्संग, पूजा-सत्कार आदि कार्यों के योग्य जन (ऊमाः) सब के रक्षक, सर्वस्नेही, दुष्टों के नाशक, (शं-भविष्ठाः) सबके लिये सुख कल्याण की भावना करने वाले, (आदित्येन नाम्ना) आदित्य नाम से कहने योग्य हैं। अथवा वे (आदित्येन) अदिति, आकाश, और अदिति पृथिवी के (नाम्ना) जल वा अन्न से (शं-भविष्ठाः) सब को शान्ति सुख देने वाले अथवा (आदित्येन नाम्ना) अदिति, माता पिता के तुल्य रूप से सबको सुख देने वाले हों। वे (अध्वरे यामन्) हिंसा से रहित मार्ग वा नियन्त्रण-व्यवस्था में (महः) महान् पद, यश और ऐश्वर्य आदि। (चकानाः) चाहते हुए, (रथ-तूः) रथ वेग से जाने वाले होकर (नः मनीषाम् अवन्तु) हमारे मन की कामना को चाहें, उसको पूर्ण करें। इत्येकादशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    स्यूमरश्मिर्भार्गवः॥ मरुतो देवता॥ छन्द:– १, ३ निचृत् त्रिष्टुप्। २, ४ त्रिष्टुप्। ६—८ विराट् त्रिष्टुप्। ५ पादनिचृज्जगती। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    मनीषा - महः [बुद्धि व तेज ]

    पदार्थ

    [१] गत मन्त्र के अनुसार यज्ञों व प्राणसाधना को अपनानेवाले (ते) = वे लोग (हि) = निश्चय से (यज्ञेषु यज्ञियासः) = यज्ञों में यज्ञशील होते हैं, (ऊमाः) = इन यज्ञों के द्वारा इस लोक व परलोक का रक्षण करनेवाले बनते हैं। (आदित्येन) = सब स्थानों से अच्छाई को ग्रहण करने की वृत्ति से तथा (नाम्ना) = प्रभु नाम-स्मरण से अथवा नम्रता से (शंभविष्ठाः) = शान्ति को उत्पन्न करनेवाले हैं । [२] (ते) = वे आदित्य की वृत्तिवाले तथा प्रभु का स्मरण करनेवाले लोग (रथतू:) = [रथतुरः] शरीररूप रथ को त्वरा से मार्ग पर लक्ष्य की ओर ले चलनेवाले होते हैं । ये (नः) = हमारा भी (अवन्तु) = रक्षण करें। अपने जीवन के उदाहरण से हमारा मार्गदर्शन करते हुए ये हमें कल्याण- पथ का पथिक बनाते हैं। [३] ये व्यक्ति (अध्वरे) = यज्ञमय (यामन्) = जीवनमार्ग में (मनीषाम्) = बुद्धि को (महः च) = और तेजस्विता को (चकानाः) = चाहनेवाले होते हैं। इनकी कामना यही होती है कि इनका शरीर तेजस्वी हो तथा विज्ञानमय कोश सूक्ष्म बुद्धि से विभूषित हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्राणसाधक पुरुषों की मूल कामना यही होती है कि वे 'बुद्धि व तेज' को प्राप्त करनेवाले बनें। सम्पूर्ण सूक्त प्राणसाधना के महत्त्व को व्यक्त कर रहा है। अगले सूक्त का भी विषय यही

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ते हि) ते मरुता जीवन्मुक्ता विद्वांसः (यज्ञेषु यज्ञियासः-ऊमाः) ज्ञानयज्ञेषु यजनार्हा पूजार्हाः सत्कारयोग्याः पालकाः (आदित्येन नाम्ना शम्भविष्ठाः) अदितिरखण्डसुखं सम्पत्तिरूपमुक्तौ भवेनानन्दरसेन जनानामतिशयितकल्याण-कारकाः सन्ति (ते रथतूः) ते ये रमणीयं मोक्षम्प्रति गमयितारः प्रेरयितारः (अध्वरे यामन्) अध्यात्मयज्ञरूपे मार्गे वर्तमानानां (नः मनीषां महः-च चकानाः) अस्माकं प्रज्ञां यज्ज्ञानं च कामयमानाः (अवन्तु) अस्मान् शिष्यत्वेन रक्षन्तु श्रावयन्तु ॥८॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May the Maruts, adorable at yajna, protectors and promoters most benevolent and blissful by the gift of solar light and enlightenment and showers of substantial waters and energy, versatile movers of the dynamics of cosmic yajna circuit protect and promote our mind, intelligence and knowledge while they love, cherish and extend our grand paths of progress in our social programmes of creation and production in the spirit of universal love, friendship and peace and non violence.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जीवनमुक्त विद्वान ज्ञान यज्ञात सत्कार करण्यायोग्य आहेत. ते मोक्षानंदासाठी माणसांना प्रेरित करतात व त्यांची बुद्धी व ज्ञान वाढवितात. ॥८॥

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