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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 82 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 82/ मन्त्र 3
    ऋषिः - विश्वकर्मा भौवनः देवता - विश्वकर्मा छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यो न॑: पि॒ता ज॑नि॒ता यो वि॑धा॒ता धामा॑नि॒ वेद॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑ । यो दे॒वानां॑ नाम॒धा एक॑ ए॒व तं स॑म्प्र॒श्नं भुव॑ना यन्त्य॒न्या ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । नः॒ । पि॒ता । ज॒नि॒ता । यः । वि॒ऽधा॒ता । धामा॑नि । वेद॑ । भुव॑नानि । विश्वा॑ । यः । दे॒वाना॑म् । ना॒म॒ऽधाः । एकः॑ । ए॒व । तम् । स॒म्ऽप्र॒श्नम् । भुव॑ना । य॒न्ति॒ । अ॒न्या ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो न: पिता जनिता यो विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा । यो देवानां नामधा एक एव तं सम्प्रश्नं भुवना यन्त्यन्या ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः । नः । पिता । जनिता । यः । विऽधाता । धामानि । वेद । भुवनानि । विश्वा । यः । देवानाम् । नामऽधाः । एकः । एव । तम् । सम्ऽप्रश्नम् । भुवना । यन्ति । अन्या ॥ १०.८२.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 82; मन्त्र » 3
    अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (यः-नः-जनिता पिता) जो हमारा उत्पादक पालक परमात्मा (यः-विधाता) जो कर्मफल का विधान करनेवाला-देनेवाला (विश्वा धामानि) सारे जन्मों स्थानों (भुवनानि) लोक-लोकान्तरों को (वेद) जानता है (यः) जो (देवानां) अग्न्यादि दिव्यगुण पदार्थों का (नामधाः) नामधारक-नाम रखनेवाला है (तं सम्प्रश्नम्) उस सम्यक् प्रश्न करने योग्य-जानने योग्य परमात्मा को (अन्या भुवना यन्ति) अन्य लोक-लोकान्तर तथा जीव अपना आश्रय बनाते हैं ॥३॥

    भावार्थ

    परमात्मा संसार के पदार्थों को उत्पन्न करनेवाला, वेद में उनके नाम रखनेवाला, सब का जानने योग्य और आश्रयरूप है, उसको मानना और उसकी उपासना करनी चाहिए ॥३॥

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    विषय

    परमेश्वर पित्ता, उत्पादक, व्यवस्थापक सर्वज्ञ, अद्वितीय, अविज्ञेय सब का लक्ष्य है।

    भावार्थ

    (यः नः पिता) जो हमारा पालक, पिता के समान है। (यः जनिता) जो उत्पन्न करने वाला, (यः विधाता) जो समस्त जगत् का विधान, व्यवस्था और शासन करने वाला, विशेष रूप से जगत् को धारण और पोषण करने वाला है। जो (विश्वा धामानि) समस्त स्थानों, लोकों और उत्पन्न होने वाले पदार्थों को (वेद) जानता है। (यः देवानां) जो समस्त देवों के (नाम-धा) नामों को धारण करने वाला (एकः एव) अकेला, अद्वितीय ही है। (तं सम्प्रश्नं) उस प्रश्न करने योग्य, जिज्ञासा करने योग्य को लक्ष्य करके (अन्या भुवना यन्ति) अन्य समस्त लोक और उत्पन्न प्राणिवर्ग भी जा रहे हैं। अध्यात्म में—विजिज्ञास्य आत्मा और भुवन प्राणगण हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वकर्मा भौवन ऋषिः॥ विश्वकर्मा देवता॥ छन्द:- १, ५, ६ त्रिष्टुप्। २, ४ भुरिक् त्रिष्टुप्। ३ निचृत् त्रिष्टुप्। ७ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्।

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    विषय

    'संप्रश्न' प्रभु

    पदार्थ

    [१] (यः) = जो (नः पिता) = हम सब के रक्षक हैं, (जनिता) = हम सबको जन्म देनेवाले हैं अथवा हम सबकी शक्तियों के विकास का कारण होते हैं, (यः विधाता) = जो विशिष्ट रूप से हमारा धारण करनेवाले हैं, जो (विश्वा) = सब (धामानि) = तेजों को व (भुवनानि) = लोकों को (वेद) = जानते हैं, हमारे कर्मों के अनुसार इन तेजों व लोकों को वे प्रभु हमें प्राप्त कराते हैं । [२] (यः) = जो एक (एव) = अकेले ही (देवाना नामध:) = सब देवों के नाम को धारण करनेवाले हैं, अर्थात् इन सब देवों को देवत्व प्राप्त कराने के कारण इन सब के नामों से मुख्य रूप से प्रभु का ही प्रतिपादन होता है । वे प्रभु ही 'अग्नि, आदित्य, वायु, चन्द्रमा, शुक्र, ब्रह्म, आपः व प्रजापति' हैं। (तं संप्रश्नम्) = उस [ asylum refuge, आश्रयम्] उस शरण को ही (अन्या भुवना) = अन्य सब प्राणी (यन्ति) = जाते हैं । अर्थात् वे प्रभु ही सूर्यादि को दीप्ति प्राप्त कराके 'देव' शब्द से कहलाने योग्य बनाते हैं और प्राणिमात्र की वे प्रभु ही शरण हैं। अचेतन चेतन सभी के रक्षक वे ही हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु ही हमारे 'पिता, जनिता व विधाता' हैं। सूर्यादि देवों को वे देवत्व प्राप्त कराते हैं, तो सब प्राणियों को शरण देते हैं ।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (यः-नः-जनिता पिता) योऽस्माकमुत्पादयिता पालकः परमात्मा (यः-विधाता) यः कर्मफलविधाता (विश्वा धामानि भुवनानि वेद) सर्वाणि जन्मानि स्थानानि लोकलोकान्तराणि जानाति (यः-देवानां नामधाः) योऽग्न्यादिदिव्यगुणवतां पदार्थानां नामानि दधाति (तं सम्प्रश्नम्-अन्या भुवना यन्ति) तं सम्यक् प्रष्टव्यं जिज्ञास्यं परमात्मदेवमन्यानि सर्वाणि भूतानि लोक-लोकान्तराणि च प्राप्नुवन्त्याश्रयन्ति ॥३॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Vishvakarma is our father and mother, he who is the sustainer, ruler and controller of existence, who knows all abodes and regions of the universe, who is the sole ordainer of the nature, functions and names of all divinities and the sole unity of all these in one, the one comprehensive question of all questions and the one complete answer to all questions, the one ultimate reality into whom all regions and worlds converge and merge.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा जगातील पदार्थांना उत्पन्न करणारा, वेदात त्यांची नावे सांगणारा आहे. सर्वांनी जाणण्यायोग्य व आश्रयरूप आहे. त्याला मानून त्याची उपासना केली पाहिजे. ॥३॥

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    যোঃ ন পিতা জনিতা যো বিধাতা ধামানি বেদ ভুবনানি বিশ্বা।

    যো দেবানাং নামধা এক এব তং সম্প্রশ্নং ভুবনা যন্ত্যন্যা।।২৫।।

    (ঋগ্বেদ ১০।৮২।৩)

    পদার্থঃ (যঃ) যে পরমেশ্বর (নঃ) আমাদের (পিতা) পালক তথা (জনিতা) জগৎ উৎপাদক, (যঃ) যিনি (বিধাতা) সমস্ত জগতের রচয়িতা, যিনি (বিশ্বা) সমস্ত (ধামানি) স্থান (ভুবনানি) লোককে (বেদ) জানেন, (যঃ) যিনি (দেবানাম্) সমস্ত দিব্য পদার্থের (নামধাঃ) নাম ধারণকারী, (এক এব) এক ও অদ্বিতীয়; (তম্ সম্প্রশ্নম্) সেই প্রশ্নের যোগ্য অর্থাৎ জ্ঞানের মাধ্যমে জানার যোগ্য পরমেশ্বরই (অন্যা ভুবনা যন্তি) লোক লোকান্তরের আশ্রয়।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ পরমেশ্বর এই সমগ্র বিশ্বজগতের সৃষ্টিকর্তা ও সকল লোক লোকান্তরের প্রাণীদের আশ্রয়। পরমাত্মা মহাবিশ্বের সকল বস্তু ও প্রাণীর কর্মকাণ্ড জ্ঞাত আছেন। এজন্য আমাদের ধারক ও জ্ঞাতা পরমেশ্বরের সন্তুষ্টি লাভের জন্য তাঁকে প্রেম ও শ্রদ্ধা অর্পণপূর্বক উপাসনা করতে হবে। তাঁর উপাসনার জন্য আমরা তাঁকে ইন্দ্র, মিত্র, অগ্নি, বরুণ যে কোনো নামে ডাকতে পারি। কারণ তিনিই সকল দিব্য পদার্থের নাম ধারণকারী এক ও অদ্বিতীয় সত্তা।।২৫।।

     

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