ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 84/ मन्त्र 3
सह॑स्व मन्यो अ॒भिमा॑तिम॒स्मे रु॒जन्मृ॒णन्प्र॑मृ॒णन्प्रेहि॒ शत्रू॑न् । उ॒ग्रं ते॒ पाजो॑ न॒न्वा रु॑रुध्रे व॒शी वशं॑ नयस एकज॒ त्वम् ॥
स्वर सहित पद पाठसह॑स्व । म॒न्यो॒ इति॑ । अ॒भिऽमा॑तिम् । अ॒स्मे इति॑ । रु॒जन् । मृ॒णन् । प्र॒ऽमृ॒णन् । प्र । इ॒हि॒ । शत्रू॑न् । उ॒ग्रम् । ते॒ । पाजः॑ । न॒नु । आ । रु॒रु॒ध्रे॒ । व॒शी । वश॑म् । न॒य॒से॒ । ए॒क॒ऽज॒ । त्वम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
सहस्व मन्यो अभिमातिमस्मे रुजन्मृणन्प्रमृणन्प्रेहि शत्रून् । उग्रं ते पाजो नन्वा रुरुध्रे वशी वशं नयस एकज त्वम् ॥
स्वर रहित पद पाठसहस्व । मन्यो इति । अभिऽमातिम् । अस्मे इति । रुजन् । मृणन् । प्रऽमृणन् । प्र । इहि । शत्रून् । उग्रम् । ते । पाजः । ननु । आ । रुरुध्रे । वशी । वशम् । नयसे । एकऽज । त्वम् ॥ १०.८४.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 84; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(मन्यो) हे आत्मप्रभाववाले सेनानी ! (अस्मे) हमारे (अभिमातिम्) अभिमानी शत्रु को (सहस्व) दबा (शत्रून्) शत्रुओं को (रुजन् मृणन् प्रमृणन्) पीड़ित करता हुआ, हिंसित करता हुआ और नष्ट करता हुआ (प्र इहि) परास्त कर परे धकेल (ते पाजः-उग्रम्) तेरा बल प्रतापकारी है (ननु-आ रुरुध्रे) अन्य जन क्या उसे रोक सकते हैं, यह सम्भव नहीं है (वशी) तू सब बलों का वश करनेवाला है, (एकज) हे अकेले ही उत्पन्न हुए ! (त्वं वशं नयसे) तू शत्रुओं को वश में लेता है ॥३॥
भावार्थ
सेनानायक ऐसा होना चाहिए, जो अभिमानी शत्रु को दबा दे, उसके बल पराक्रम को कोई न रोक सके, किन्तु वह ही शत्रु के बल को तथा शत्रु को अपने वश में लेनेवाला हो ॥३॥
विषय
वह सब को वश करे।
भावार्थ
हे (मन्यो) सब से मानने, आदर करने योग्य ! हे तेजस्विन् ! अस्मे अभिमातिं सहस्व) तू हमारे शत्रुओं को पराजित कर और (अस्मे शत्रून्) हमारे शत्रुओं को (मृणन् प्रमृणन्) नाश करता हुआ (प्र इहि) आगे बढ़। (ते उग्रं पाजः) तेरे भयंकर बल को भला (ननु आ रुरुध्रे) कब सम्भव है कि वे रोक सकें ? तू (एकजः वशी) एकमात्र प्रकट होकर, स्वयंभू होकर ही सब को वश करने वाला है, तू उनको (वशं नयसे) वश में कर लेता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मन्युस्तापस ऋषिः॥ मन्युर्देवता॥ छन्दः- १, ३ त्रिष्टुप्। २ भुरिक् त्रिष्टुप्। ४, ५ पादनिचृज्जगती। ६ आर्ची स्वराड़ जगती। ७ विराड़ जगती। सप्तर्चं सूक्तम्॥
विषय
अभिमान नासक 'मन्यु'
पदार्थ
[१] हे (मन्योः) = ज्ञान ! तू (अस्मे) = हमारे (अभिमातिम्) = अभिमानरूप शत्रु को (सहस्व) = कुचल डाल । (शत्रून्) = इन कामादि शत्रुओं को (रुजन्) = भग्न करते हुए (मृणन्) = कुचलते हुए और (प्रमृणन्) = एकदम मसलते हुए प्रेहि प्रकर्षेण आगे बढ़नेवाला हो। [२] (ते पाज:) = तेरी शक्ति (उग्रम्) = अत्यन्त तेजोमय है। यह (नु) = अब (न आरुरुध्रे) = रोकी नहीं जा सकती। इस शक्ति का पराभव किसी के लिये सम्भव नहीं । [३] (त्वम्) = तू (एकजम्) = अकेला ही वशी सब शत्रुओं से परास्त न होता हुआ वशं नयसे उन सब शत्रुओं को वशीभूत करता है। ज्ञान के होने पर अन्य आवश्यक साधन जुट ही जाते हैं और कामादि शत्रुओं का पराभव उतना कठिन नहीं रह जाता।
भावार्थ
भावार्थ- हम ज्ञानोपार्जन करके अभिमान को दूर करें। इस ज्ञान के द्वारा सब शत्रुओं को भस्म कर पायें ।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(मन्यो) हे आत्मप्रभाववन् सेनानीः ! (अस्मे-अभिमातिम्-सहस्व) अस्माकमभिमानिनं शत्रुं बाधस्व (शत्रून् रुजन् मृणन् प्रमृणन्) शत्रून् पीडयन् हिंसन् नाशयन् (प्र इहि) परास्तान् कुरु (ते पाजः-उग्रम्) तव बलं प्रतापकारि (ननु-आ रुरुध्रे) किन्नु खल्वन्ये रुन्धन्ति-इति न सम्भवति (वशी) त्वं बलस्य वशी (एकज) हे एक एव जात ! तस्मादेकजः (त्वं वशं नयसे) शत्रून् वशं नयसि ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O wrath of justice, rectitude and dispensation, arise, challenge our adversaries, breaking, smashing, eliminating the forces of negation. Blazing is your face and courage, none to obstruct and stay your advance. You are the master, all in control, leader of the forces of predominance, sole born of divinity without an equal.
मराठी (1)
भावार्थ
सेनानायक असा असला पाहिजे ज्याने शत्रूचे दमन करावे. त्याच्या बल पराक्रमाला कोणीही रोखू शकणार नाही तर तो शत्रूचे बल व शत्रूला आपल्या वशमध्ये घेणारा असावा. ॥३॥
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