ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 84/ मन्त्र 4
एको॑ बहू॒नाम॑सि मन्यवीळि॒तो विशं॑विशं यु॒धये॒ सं शि॑शाधि । अकृ॑त्तरु॒क्त्वया॑ यु॒जा व॒यं द्यु॒मन्तं॒ घोषं॑ विज॒याय॑ कृण्महे ॥
स्वर सहित पद पाठएकः॑ । ब॒हू॒नाम् । अ॒सि॒ । म॒न्यो॒ इति॑ । ई॒ळि॒तः । विश॑म्ऽविशम् । यु॒धये॑ । सम् । शि॒शा॒धि॒ । अकृ॑त्तऽरुक् । त्वया॑ । यु॒जा । व॒यम् । द्यु॒ऽमन्त॑म् । घोष॑म् । वि॒ऽज॒याय॑ । कृ॒ण्म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एको बहूनामसि मन्यवीळितो विशंविशं युधये सं शिशाधि । अकृत्तरुक्त्वया युजा वयं द्युमन्तं घोषं विजयाय कृण्महे ॥
स्वर रहित पद पाठएकः । बहूनाम् । असि । मन्यो इति । ईळितः । विशम्ऽविशम् । युधये । सम् । शिशाधि । अकृत्तऽरुक् । त्वया । युजा । वयम् । द्युऽमन्तम् । घोषम् । विऽजयाय । कृण्महे ॥ १०.८४.४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 84; मन्त्र » 4
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
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अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(मन्यो) हे आत्मप्रभाववाले सेनानायक ! (बहूनाम्-एकः-असि) तू बहुत शत्रुओं का भी अकेला अभिभव करनेवाला है (ईडितः) प्रेरित किया हुआ (विशं विशम्) प्रत्येक सैनिक प्रजा को (सं शिशाधि) उत्साहित करता है (अकृत्तरुक्) तू अच्छिन्न तेजवाला है (वयं त्वया युजा) हम तुझे योक्ता-प्रेरक से प्रेरित हुए (विजयाय) विजय के लिए (द्युमन्तं घोषम्) तेजस्वी नाद को (कृण्महे) करते हैं ॥४॥
भावार्थ
सेनानायक बहुतेरे शत्रु को अपने वश में करनेवाला हो, प्रत्येक सैनिक को उभारनेवाले ऐसे नायक के साथ विजय प्राप्त किया जा सकता है ॥४॥
विषय
युद्ध के लिये सबको उत्साहित करे।
भावार्थ
हे (मन्यो) तेजस्विन् ! तू (बहूनाम्) बहुतों में से (एकः ईडितः असि) एक, अद्वितीय प्रशंसित और बहुतों का प्रेमपात्र है। तू (विशं-विशम्) प्रत्येक प्रजा को (युधये) युद्ध करने के लिये (सं शिशाधि) खूब उत्तेजित कर। उनको भी तीव्र, साहसी, उत्साही और प्रचण्ड कर। हे (अकृत्त-रुक्) कभी न नष्ट होने वाली कान्ति वाले, हे अन्यों की रुचि को विघात वा नष्ट न करने वाले ! (वयम्) हम (त्वया युजा) तुझ सहायक और तुझ प्रेरक से युक्त और प्रेरित होकर (विजयाय) विजय करने के लिये (द्युमन्तं घोषं कृण्महे) दीप्तियुक्त, शानदार घोष, गर्जन, सिंहनाद करते हैं। यह विजयघोष अध्यात्म में वही विजय लेना चाहिये जिसका वर्णन केन उपनिषद् में किया है। ब्रह्म देवेभ्यो विजिग्ये० इत्यादि। केन उप० खं०२।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मन्युस्तापस ऋषिः॥ मन्युर्देवता॥ छन्दः- १, ३ त्रिष्टुप्। २ भुरिक् त्रिष्टुप्। ४, ५ पादनिचृज्जगती। ६ आर्ची स्वराड़ जगती। ७ विराड़ जगती। सप्तर्चं सूक्तम्॥
विषय
विजय
पदार्थ
[१] हे (मन्यो) = ज्ञान ! (ईडितः) = उपासित हुआ हुआ (एक:) = अकेला ही (बहूनाम्) = काम- क्रोधादि बहुत से शत्रुओं का (असि) = पराभव करने में समर्थ है। वस्तुतः तू (विशंविशम्) = प्रत्येक प्रजा को (युधये) = इन कामादि शत्रुओं से युद्ध के लिए (सं शिशाधि) = सम्यक् तीक्ष्ण करता है। जब तक मनुष्य ज्ञानोपासना में नहीं चलता तब तक वह काम-क्रोध आदि को शत्रु के रूप में पहिचानता ही नहीं, उन्हें जीतने का तो प्रश्न ही नहीं पैदा होता। ज्ञान की आराधना के प्रारम्भ होते ही उसके ज्ञाननेत्र खुलते हैं और वह इन काम-क्रोधादि को शत्रुरूप में देखने लगता है। अब वह इनके साथ युद्ध की तैयारी करता है । [२] यह ज्ञान (अकृत्तरुक्) = अच्छिन्न कान्तिवाला है । हे निरन्तर दीप्तिवाले ज्ञान ! (त्वया युजा) = तुझ साथी के साथ (वयम्) = हम (विजयाय) = विजय के लिये (द्युमन्तं घोषम्) = ज्योतिर्मय स्तोत्रोच्चारणों को (कृण्महे) = करते हैं। जब हमारा स्तवन ज्ञानपूर्वक होता है तो यह स्तवन हमें कामादि पर विजय करने में समर्थ बनाता है ।
भावार्थ
भावार्थ - ज्ञान ही हमें कामादि शत्रुओं के उच्छेद के लिये समर्थ करता है। इस विजय के लिये हम ज्ञानपूर्वक स्तवन में प्रवृत्त होते हैं ।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(मन्यो) हे आत्मप्रभाववन् सेनानायक ! (बहूनाम्-एकः-असि) बहूनां शत्रूणामप्येकोऽभिभवसि (ईडितः विशं विशं संशिशाधि) त्वमध्येषितः सन् प्रजामात्रं प्रत्येकं सैनिकजनमुत्साहयसि (अकृत्तरुक्) त्वमिच्छन्नतेजस्कोऽसि (त्वया युजा वयम्) त्वया योक्त्रा प्रेरयित्रा प्रेरिता वयं (द्युमन्तं घोषं विजयाय कृण्महे) तेजस्विनं नादं विजयाय कुर्मः ॥४॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Manyu, you are the one unique among many, invoked and universally adored. Pray instruct, inspire, prepare and perfect every community to fight and win against negativity and adversity. Your lustre unimpaired and unchallengeable, with you as leader and inspirer, let us raise the blazing battle cry and raise the flag of victory flying sky high.
मराठी (1)
भावार्थ
सेनानायक अनेक शत्रूंना आपल्या वशमध्ये घेणारा असावा. प्रत्येक सैनिकाला उभारी देणाऱ्या अशा नायकाबरोबर विजय प्राप्त करता येतो. ॥४॥
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