ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 85/ मन्त्र 1
ऋषिः - सूर्या सावित्री
देवता - सोमः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
स॒त्येनोत्त॑भिता॒ भूमि॒: सूर्ये॒णोत्त॑भिता॒ द्यौः । ऋ॒तेना॑दि॒त्यास्ति॑ष्ठन्ति दि॒वि सोमो॒ अधि॑ श्रि॒तः ॥
स्वर सहित पद पाठस॒त्येन॑ । उत्त॑भिता । भूमिः॑ । सूर्ये॑ण । उत्त॑भिता । द्यौः । ऋ॒तेन॑ । आ॒दि॒त्याः । ति॒ष्ठ॒न्ति॒ । दि॒वि । सोमः॑ । अधि॑ । श्रि॒तः ॥
स्वर रहित मन्त्र
सत्येनोत्तभिता भूमि: सूर्येणोत्तभिता द्यौः । ऋतेनादित्यास्तिष्ठन्ति दिवि सोमो अधि श्रितः ॥
स्वर रहित पद पाठसत्येन । उत्तभिता । भूमिः । सूर्येण । उत्तभिता । द्यौः । ऋतेन । आदित्याः । तिष्ठन्ति । दिवि । सोमः । अधि । श्रितः ॥ १०.८५.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 85; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 20; मन्त्र » 1
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अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 20; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (1)
विषय
इस सूक्त में सूर्य द्वारा लोकों को प्रकाश देना, चन्द्रमा ओषधियों में रस प्रेरित करता है, नववधू का विवाह, उसका प्रकार, वधू के कर्त्तव्य, गृहस्थ आचार विशेषरूप से हैं।
पदार्थ
(भूमिः) पृथिवीरूप में भूभक्ति-भूभागरूप (सत्येन) उसके अन्दर वर्तमान अग्नि द्वारा (उत्तभिता) कठिन-ठोस की गई है, प्रकाशरूप नक्षत्रतारावली (सूर्येण) प्रकाशपिण्ड सूर्य के द्वारा उदीप्त की गई (आदित्याः-ऋतेन-तिष्ठन्ति) आदान शक्तिवाली किरणें या मास सूर्य के द्वारा स्थिर होते हैं (सोमः) सोम्य उत्पादक धर्म (दिवि) सूर्य के आश्रय में (अधिश्रितः) अधिष्ठित है ॥१॥
भावार्थ
पृथिवी को ठोस बनानेवाला पृथिवी के अन्दर का अग्नि है, जो पृथिवी के सूक्ष्म अंशों को अपनी और खींच रहा है, द्युलोक-नक्षत्र तारामण्डल को सूर्य चमकाता है, किरणें या मास सूर्य को आश्रित करते हैं और सोम गुणवाला उत्पादन धर्म सूर्य को आश्रय बनाता है ॥१॥
संस्कृत (1)
विषयः
अस्मिन् सूक्ते सूर्यः सर्वान् लोकान् प्रकाशयति, चन्द्रमा ओषधिषु रसं प्रेरयति पुनश्च नववध्वा विवाहस्तत्प्रकारस्तत्र च वध्वाः कर्तव्यानि गृहस्थाचारश्चापि विशिष्टतया वर्ण्यन्ते।
पदार्थः
(भूमिः सत्येन-उत्तभिता) पृथिवीरूपे भूभक्तिः खल्वग्निना “अग्निमुपदिशन् वाचेदं सत्यमिति” [जै० १।१३] “कल्माषग्रीवो रक्षिता” कठिनीकृता “उत्तम्भनम्-उत्कृष्टं प्रतिबन्धनम्” (यजु० ४।३६ दयानन्दः) (द्यौः सूर्येण उत्तभिता) प्रकाशात्मिका नक्षत्रतारामयी सृष्टिः सूर्येण प्रकाशपिण्डेव खलूद्द्योतिता (आदित्याः-ऋतेन तिष्ठति) आदानशक्तिमन्तः किरणाः “आदित्याः किरणाः” [अथर्व० १४।१।२ भाष्यभूमिका-दयानन्दः] यद्वा मासाः सूर्येण “ऋतेन सूर्येण” [यजु० १४।११ भाष्यभूमिका दयानन्दः] स्थिरीभवन्ति (सोमः-दिवि-अधिश्रितः) सोमः सोम्य उत्पादकधर्मः सूर्येऽधिष्ठितः ॥१॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma (1-5), Surya vivaha (6-16), Devah (17), Somarkau (18), Chandrama (19), Marriage (20-28), Vadhuvasa samsparsha ninda (29-30), Yakshma nashanam dampatyoh (31) Surya Savitri (32-47) Devatah; Savitri Surya Rshi The earth is sustained by the force of its own identity within the truth of divine law, the heaven is sustained by the sun within the same truth of divine law, the Adityas are sustained by Rtam, the natural law of Divinity, and Soma is sustained in the highest heaven of the same law.
मराठी (1)
भावार्थ
पृथ्वीला स्थूल बनविणारा पृथ्वीतील अग्नी आहे. जो पृथ्वीतील सूक्ष्म अंशांना आपल्याकडे ओढून घेत आहे. द्युलोक-नक्षत्रतारा मंडलाला सूर्य प्रकाशित करतो. सूर्याच्या प्रकाशाने चमकतो. किरणे किंवा मास सूर्याच्या आश्रयाने राहतात व सोम गुणाचा उत्पादक धर्म सूर्याच्या आश्रयाने अधिष्ठित आहे. ॥१॥
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