ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 90/ मन्त्र 5
तस्मा॑द्वि॒राळ॑जायत वि॒राजो॒ अधि॒ पूरु॑षः । स जा॒तो अत्य॑रिच्यत प॒श्चाद्भूमि॒मथो॑ पु॒रः ॥
स्वर सहित पद पाठतस्मा॑त् । वि॒राट् । अ॒जा॒य॒त॒ । वि॒ऽराजः॑ । अधि॑ । पुरु॑षः । सः । जा॒तः । अति॑ । अ॒रि॒च्य॒त॒ । प॒श्चात् । भूमि॑म् । अथो॒ इति॑ । पु॒रः ॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्माद्विराळजायत विराजो अधि पूरुषः । स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः ॥
स्वर रहित पद पाठतस्मात् । विराट् । अजायत । विऽराजः । अधि । पुरुषः । सः । जातः । अति । अरिच्यत । पश्चात् । भूमिम् । अथो इति । पुरः ॥ १०.९०.५
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 90; मन्त्र » 5
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 17; मन्त्र » 5
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अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 17; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ततः-विराट्-अजायत) उस परमात्मा से विविध पदार्थों के साथ राजमान संसार उत्पन्न हुआ (विराजः-अधि पूरुषः) उस विविध पदार्थों से राजमान संसार के ऊपर अधिष्ठाता पुरुष परमात्मा है (पश्चात् सः-जातः) पश्चात् वह विविध पदार्थों से राजमान संसार प्रकट हुआ, परमात्मा के अधीन (भूमिम्) जिसमें भूत उत्पन्न होते हैं, ऐसे उत्पत्तिस्थान लोक को (अथ पुरः) अनन्तर उस लोक पर देहनगरियों को (अति अरिच्यत) बाहर निकालता है-प्रकट करता है ॥५॥
भावार्थ
विविध पदार्थों से युक्त संसार को परमात्मा रचता है, उसके अधीनत्व में लोक-लोकान्तर उससे प्रकट होते हैं तथा लोक पर देह उत्पन्न होते हैं ॥५॥
विषय
विराट् की उत्पत्ति
पदार्थ
[१] (ततः) = उस निमित्त कारणभूत पुरुष से (विराट् अजायत) = एक देदीप्यमान पिण्ड आविर्भूत किया गया । इसी पिण्ड को मनु ने 'हैम अण्ड' नाम दिया है। यही सांख्य में 'महत्' शब्द से कहा गया है। [२] (विराजः अधि पूरुषः) = उस विराट् पिण्ड का अधिष्ठातृरूपेण वह पुरुष था । प्रभु की अध्यक्षता में ही प्रकृति चराचर जगत् को उत्पन्न करती है । [३] (सः) = वह विराट् पिण्ड (जातः) = उत्पन्न हुआ हुआ (अत्यरिच्यत) = संसार के किसी भी पदार्थ से अधिक दीप्तिवाला हुआ। मनु ने इसे 'सहस्रांशु सम प्रभ' = सूर्य के समान प्रभावाला कहा है। [४] (पश्चात्) = अब विराट् की उत्पत्ति के बाद (भूमिम्) = प्राणियों के निवास स्थानभूत लोकों को उस अध्यक्ष ने बनाया । प्राणियों के सशरीर होने से पहले इन लोकों का बनना आवश्यक ही है। [५] (अथ उ) = और अब, इन लोकों के बन जाने के पश्चात् (पुरः) = शरीर बनाये गये । शरीरों को 'पुर:' नाम इसलिए देते हैं कि 'पूर्यन्ते सप्त धातुभिः 'ये सप्त धातुओं से पूर्ण हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- पहले 'विराट्' की उत्पत्ति होती है। इस विराट् से लोक-लोकान्तर बनते हैं और फिर प्राणियों के शरीरों की उत्पत्ति होती है ।
विषय
ब्रह्माण्ड रूप विराट् के ऊपर पुरुष प्रभु।
भावार्थ
(तस्मात्) उससे (विराट् अजायत) विराट् अर्थात् ब्रह्माण्ड रूप महान् शरीर समस्त शरीरों का समष्टि देह विविध पदार्थों से प्रकाशित, उत्पन्न हुआ, (विराजः अधि पूरुषः) उस विराट् ब्रह्माण्डमय देह के ऊपर अध्यक्ष रूप से ‘पुरुष’ देह में आत्मा, वा नगर में राजा के तुल्य ब्रह्माण्ड में स्वामी के तुल्य वह परम पुरुष है। (स जातः) वह व्यक्त होकर (अति अरिच्यत) सब से बड़ा होता है। वा परमेश्वर समस्त प्राणियों से अतिरिक्त, सब से पृथक रहता है। (पश्चाद् भूमिम्) विराट् के प्रकट होने के उपरान्त, प्रभु ने भूमि को उत्पन्न किया (अथो पुरः) उसके अनन्तर नाना शरीर उत्पन्न किये। इति सप्तदशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्नारायणः॥ पुरुषो देवता॥ छन्दः–१–३, ७, १०, १२, निचृदनुष्टुप्। ४–६, ९, १४, १५ अनुष्टुप्। ८, ११ विराडनुष्टुप्। १६ विराट् त्रिष्टुप्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(ततः-विराट्-अजायत) ततः-परमात्मनः सकाशात्-विविधपदार्थैः सह राजमानः संसार उत्पन्नः (विराजः-अधि पूरुषः) विविधतया राजमानस्य संसारस्योपरि-अधिष्ठाता पुरुषः परमात्मा “अधि-उपरि अधिष्ठाता” [दयानन्दः] पश्चात् (सः-जगतः) पश्चात् स विराट् प्रकटीभूतः सन् परमात्मनोऽधिष्ठातृत्वे (भूमिम्-अथ पुरः-अति अरिच्यत) भवन्ति भूतानि यस्मिन् तदुत्पत्तिस्थानं लोकमनन्तरं देहपुरश्च व्यक्तीकरोति “रिचिर् विरेचने” [रुधादि०] ॥५॥
इंग्लिश (1)
Meaning
From Purusha arose Virat, the cosmic idea, the blue-print in terms of Prakrti. The Purusha manifests in the Virat and remains sovereign over it. Though manifested, it exceeds, transcends and then creates the universe and the world regions for forms of existence.
मराठी (1)
भावार्थ
विविध पदार्थांनी युक्त संसाराला परमात्मा रचतो. त्याच्या अधीन असलेले लोक लोकांतर त्याच्याकडून प्रकट होतात व त्यानंतर देह उत्पन्न होतात. ॥५॥
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