Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 91 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 91/ मन्त्र 14
    ऋषि: - अरुणो वैतहव्यः देवता - अग्निः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    यस्मि॒न्नश्वा॑स ऋष॒भास॑ उ॒क्षणो॑ व॒शा मे॒षा अ॑वसृ॒ष्टास॒ आहु॑ताः । की॒ला॒ल॒पे सोम॑पृष्ठाय वे॒धसे॑ हृ॒दा म॒तिं ज॑नये॒ चारु॑म॒ग्नये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्मि॑न् । अश्वा॑सः । ऋ॒ष॒भासः॑ । उ॒क्षणः॑ । व॒शाः । मे॒षाः । अ॒व॒ऽसृ॒ष्टासः । आऽहु॑ताः । की॒ला॒ल॒ऽपे । सोम॑ऽपृष्ठाय । वे॒धसे॑ । हृ॒दा । म॒तिम् । ज॒न॒ये॒ । चारु॑म् । अ॒ग्नये॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्मिन्नश्वास ऋषभास उक्षणो वशा मेषा अवसृष्टास आहुताः । कीलालपे सोमपृष्ठाय वेधसे हृदा मतिं जनये चारुमग्नये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्मिन् । अश्वासः । ऋषभासः । उक्षणः । वशाः । मेषाः । अवऽसृष्टासः । आऽहुताः । कीलालऽपे । सोमऽपृष्ठाय । वेधसे । हृदा । मतिम् । जनये । चारुम् । अग्नये ॥ १०.९१.१४

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 91; मन्त्र » 14
    अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (यस्मिन्) जिस उपासना में लाये परमात्मा में अथवा जिसके आश्रय में (उक्षणः) सींचने में समर्थ (अश्वासः) घोड़े (ऋषभासः) वृषभ (वशाः) कमनीय दूध देनेवाली गौवें (मेषाः) ऊन देनेवाली भेड़ बकरियाँ (अवसृष्टासः) पर्याप्त (आहुताः) अभिप्राप्त (कीलालपे) उस अन्नरक्षक (सोमपृष्ठाय) सौम्य औषधीरस जैसा आनन्द स्पृष्ट किया है, आत्मा में भावित किया है जिसके आश्रय से, उस (वेधसे-अग्नये) उस विधाता परमात्मा के लिए (हृदा-चारुं मतिं जनये) हृदय से मन से अतिसुन्दर आस्तिक मति को मैं उत्पन्न करता हूँ ॥१४॥

    भावार्थ

    परमात्मा ने हमें बलवान् घोड़े वृषभ-साँड सुन्दर कमनीय दूध देनेवाली भेड़ बकरियाँ आवश्यकतानुसार प्रदान किये हैं तथा अन्न और रस जीवन के अन्दर समाने के लिये दिए हैं, उस परमात्मा की हृदय से मन से आस्तिक भाव के साथ स्तुति किया करें ॥१४॥

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (यस्मिन्) यस्मिन्नुपासिते परमात्मनि यदाश्रये वा (उक्षणः-अश्वासः) सेचनसमर्थाः अश्वाः (ऋषभासः) वृषभाः (वशाः) कमनीया दुग्ध-दात्र्यो गावः (मेषाः) ऊर्णप्रदाः-अजावयः (अवसृष्टासः) पर्याप्ताः (आहुताः) अभिहुताः-अभिगृहीताः प्राप्ता भवन्ति “आहुतं-अभिहुतम्” [निरु० २।२५] तस्मै (कीलालपे) अन्नरक्षकाय “कीलालम् अन्ननाम” [निघ० २।७] (सोमपृष्ठाय) सोमः सौम्यौषधिरस इवानन्दः पृष्ठः स्पृष्टीकृतो यस्मात् स तस्मै (वेधसे-अग्नये) विधात्रे परमात्मने (हृदा चारुं मतिं जनये) हृदयेन मनसा स्तुतिमास्तिकीं मतिं वा जनये-उत्पादयामि ॥१४॥

    English (1)

    Meaning

    With love and devotion at heart I create this song of thoughtful praise for the kind and gracious Agni under whose order and dispensation horses, virile bulls, cows, sheep and goats are created and range around freely and then are called back to the stalls.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्माने आम्हाला बलवान घोडे, बैल, सुंदर कमनीय दूध देणाऱ्या शेळ्या, लांडग्या प्रदान केलेल्या आहेत. अन्न व रस जीवनात सामावून घेण्यासाठी दिलेले आहेत. त्या परमात्म्याची हृदय, मन, आस्तिक भावाने स्तुती करावी. ॥१४॥

    Top