ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 92/ मन्त्र 2
इ॒मम॑ञ्ज॒स्पामु॒भये॑ अकृण्वत ध॒र्माण॑म॒ग्निं वि॒दथ॑स्य॒ साध॑नम् । अ॒क्तुं न य॒ह्वमु॒षस॑: पु॒रोहि॑तं॒ तनू॒नपा॑तमरु॒षस्य॑ निंसते ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मम् । अ॒ञ्जः॒ऽपाम् । उ॒भये॑ । अ॒कृ॒ण्व॒त॒ । ध॒र्माण॑म् । अ॒ग्निम् । वि॒दथ॑स्य । साध॑नम् । अ॒क्तुम् । न । य॒ह्वम् । उ॒षसः॑ । पु॒रःऽहि॑तम् । त॒नू॒ऽनपा॑तम् । अ॒रु॒षस्य॑ । निं॒स॒ते॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इममञ्जस्पामुभये अकृण्वत धर्माणमग्निं विदथस्य साधनम् । अक्तुं न यह्वमुषस: पुरोहितं तनूनपातमरुषस्य निंसते ॥
स्वर रहित पद पाठइमम् । अञ्जःऽपाम् । उभये । अकृण्वत । धर्माणम् । अग्निम् । विदथस्य । साधनम् । अक्तुम् । न । यह्वम् । उषसः । पुरःऽहितम् । तनू३ऽनपातम् । अरुषस्य । निंसते ॥ १०.९२.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 92; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इमम्-अञ्जस्पाम्) इस अनायास पालक (धर्माणम्) विश्व के धारक (विदथस्य साधनम्) अध्यात्मयज्ञ के साधक (अग्निम्) परमात्मा को (उभये) दोनों देव और मनुष्य या मुमुक्षु और साधारण जन (अकृण्वत) अपना इष्टदेव स्वीकार करते हैं (अक्तुं न यह्वम्-उषसः) जैसे स्वप्रकाश से जगत् को व्यक्त करनेवाले सूर्य को प्रातःकाल की उषाएँ दीप्तियें (पुरोहितम्) प्रथम से वर्तमान तथा (अरुषस्य तनूनपातम्) आरोचमान के चेतनस्वरूप से वर्तमान स्तोता के आत्मा को न गिरानेवाले (निंसते) चूमते हैं-आलिङ्गित करते हैं-आश्रित करते हैं ॥२॥
भावार्थ
परमात्मा अनायास ही विश्व का पालक है, उसे मुमुक्षु तथा साधारण जन अपना इष्टदेव मानें, उसका आश्रय लें, वह निष्पक्ष सबका कल्याणकारी है ॥२॥
विषय
सर्व रक्षक प्रभु
पदार्थ
[१] (इमम्) = इस (अञ्जस्पाम्) = [अञ्जसापाति] ठीक-ठीक रक्षण करनेवाले प्रभु को (उभये) = देव और मनुष्य दोनों ही, सकाम कर्म करनेवाले मर्त्य और निष्काम कर्म करनेवाले देव, (अकृण्वत) = अपने हृदयों में स्थापित करते हैं । उस प्रभु को जो (धर्माणम्) = धारण करनेवाले हैं, (अग्निम्) = आगे और आगे ले चलनेवाले हैं, (विदथस्य साधनम्) = ज्ञान को सिद्ध करनेवाले हैं । [२] जो प्रभु (उषसः अक्तुं न) = उषाकाल की प्रकाश की किरण के समान हैं। उस प्रभु के आविर्भूत होते ही हृदय प्रकाश से चमक उठता है । (यह्वम्) = जो महान् हैं, अथवा 'यातश्च हूतश्च' जो गाये जाते हैं और पुकारे जाते हैं. अन्ततोगत्वा सब उस प्रभु की ही शरण में जाते हैं। (पुरोहितम्) = जो प्रभु हमारे सामने [पुर: ] आदर्श के रूप से स्थापित हैं [ हितम्], अथवा जो सृष्टि से पहले ही विद्यमान हैं । (अरुषस्य) = [अ- रुष] क्रोधशून्य व्यक्ति के (तनू-न-पातम्) = शरीर को जो नहीं गिरने देनेवाले, उस प्रभु को सब देव व मनुष्य (निंसते) = [ चुम्बयन्ति आश्रयन्ते सा० ] आश्रय करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- वह प्रभु सबका रक्षक, सबके हृदय में निवास करता है, उसकी शरण में रहना चाहिये ।
विषय
जाठराग्निवत् चराचर का अत्ता और प्राणवत् प्रभु।
भावार्थ
(उभये) दोनों, ज्ञानी और अविद्वान जन, (इमम् अग्निम्) इस अग्नि के तुल्य प्रकाशस्वरूप (अंजः-पाम्) अन्न के रक्षक मेघ के तुल्य (अञ्जः-पाम्) ज्ञान, और प्रकाश के रक्षक वा अन्न को जाठराग्निवत् जगत् के भक्षण करने वाले ‘अत्तारूप’ (धर्माणम्) जगत् भर को धारण करने वाले (विदथस्य) ज्ञानमय यज्ञ का (साधनम्) साधन स्वीकार करते हैं। उसी (अक्तुम् न यह्वम्) तेजोमय सूर्य के तुल्य महान् (उषसः पुरोहितम्) प्रभातवेला के प्रकाशक, सर्गारम्भ के प्रकट करने वाले, तापदायक सूर्यादि के स्रष्टा, (पुरः-हितम्) सब के साक्षिवत्, (अरुषस्य) तेजोमय आत्मा के (तनून-पातं) प्राण के तुल्य शरीर को न गिरने देने वाले उस विश्वात्मा को विद्वान् लोग (निंसते) प्राप्त करते हैं। उस तक पहुंचते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः शार्यातो मानवः। विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः— १, ६, १२, १४ निचृज्जगती। २, ५, ८, १०, ११, १५ जगती। ३, ४, ९, १३ विराड् जगती। ७ पादनिचृज्जगती। पञ्चदशर्चं सूकम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इमम्-अञ्जस्पाम्) एतमञ्जसाऽनायासेन स्वभावेन पालकं (धर्माणम्) विश्वस्य धारकम् (विदथस्य साधनम्) अध्यात्मयज्ञस्य साधयितारं (अग्निम्) परमात्मानम् (उभये-अकृण्वत) उभये देवमनुष्याः, मुमुक्षवः साधारणजनाश्च स्वकीयेष्टदेवं स्वीकुर्वन्ति (अक्तुं न यह्वम्-उषसः) यथास्वप्रकाशेन जगतो व्यक्तीकर्त्तारं सूर्यमुषसः प्रातस्तन्य उषोनामिका दीप्तयो महान्तं (पुरोहितम्) पुरो वर्त्तमानं तथा (अरुषस्य तनूनपातम्) आरोचमानस्य चेतनत्वस्वरूपतो वर्त्तमानस्य स्तोतुरात्मानं न पातयितारम् ‘आत्मा वै तनूः’ [श० ६।७।२।६] (निंसते) चुम्बन्ति-आश्रयन्ति “निसते चुम्बति” [ऋ० १।१४४।१ दयानन्दः] ॥२॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Both humans and divines honour and adore this Agni, by nature energising life constantly, sustainer of the world and its dharma, accomplisher of yajna. They love and adore it like the mighty sun, harbinger of the dawn and child inviolable of the blazing cosmic energy.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा या विश्वाचा पालक आहे. त्याला मुमुक्षू व साधारण लोकांनी आपला इष्टदेव मानावे. त्याचा आश्रय घ्यावा. तो निष्पक्ष असून सर्वांचा कल्याणकर्ता आहे. ॥२॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal