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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 96 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 96/ मन्त्र 2
    ऋषिः - बरुः सर्वहरिर्वैन्द्रः देवता - हरिस्तुतिः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    हरिं॒ हि योनि॑म॒भि ये स॒मस्व॑रन्हि॒न्वन्तो॒ हरी॑ दि॒व्यं यथा॒ सद॑: । आ यं पृ॒णन्ति॒ हरि॑भि॒र्न धे॒नव॒ इन्द्रा॑य शू॒षं हरि॑वन्तमर्चत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    हरि॑म् । हि । योनि॑म् । अ॒भि । ये । स॒म्ऽअस्व॑रन् । हि॒न्वन्तः॑ । हरी॒ इति॑ । दि॒व्यम् । यथा॑ । सदः॑ । आ । यम् । पृ॒णन्ति॑ । हरि॑ऽभिः । न । धे॒नवः॑ । इन्द्रा॑य । शू॒षम् । हरि॑ऽवन्तम् । अ॒र्च॒त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हरिं हि योनिमभि ये समस्वरन्हिन्वन्तो हरी दिव्यं यथा सद: । आ यं पृणन्ति हरिभिर्न धेनव इन्द्राय शूषं हरिवन्तमर्चत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    हरिम् । हि । योनिम् । अभि । ये । सम्ऽअस्वरन् । हिन्वन्तः । हरी इति । दिव्यम् । यथा । सदः । आ । यम् । पृणन्ति । हरिऽभिः । न । धेनवः । इन्द्राय । शूषम् । हरिऽवन्तम् । अर्चत ॥ १०.९६.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 96; मन्त्र » 2
    अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 5; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (ये) जो स्तुति करनेवाले (हरिम्) आहरण करने योग्य-प्राप्त करने योग्य (योनिं हि) आनन्दगृह मोक्ष को (अभि-समस्वरन्) अभिप्राप्त करने को घोषित करते हैं, उसे हम प्राप्त करें। (यथा) जैसे (दिव्यं सदः) दिव्य सदन-अमर सदन (हरी) परमात्मा के प्रापणसाधनों को (हिन्वन्तः) प्रेरित करते हुए (यम्) जिस परमात्मा को (हरिभिः) ग्रहण करने योग्य मनुष्यों के द्वारा प्रेरित (धेनवः-न) स्तुतियाँ गौओं की भाँति (पृणन्ति) तृप्त करती हैं (इन्द्राय) उस इन्द्र परमात्मा (हरिवन्तम्) दुःखहारक गुणवाले (शूषम्) बलस्वरूप को (अर्चत) स्तुति में लाओ ॥२॥

    भावार्थ

    स्तुति करनेवाले विद्वान् जन आनन्दसदन मोक्ष है, ऐसा घोषित करते हैं, उसे प्राप्त करना चाहिये, उसकी प्राप्ति के साधन हैं स्तुति और उपासना, इसलिए स्तुतियों द्वारा और उपासना द्वारा परमात्मा की अर्चना करनी चाहिये ॥२॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ये) ये स्तोतारः (हरिं योनिं हि-अभि समस्वरन्) आहरणयोग्यं प्राप्तव्यमानन्दगृहं मोक्षम् “योनिर्गृहनाम [निघ० ३।४] अभ्याप्तुं घोषयन्ति तं वयं प्राप्नुयाम हि “स्वृ शब्दे” [भ्वादि०] (यथा दिव्यं सदः) मोक्षः खलु दिव्यं सदनम्-अमानुषमनश्वरं सदनम् (हरी हिन्वन्तः) परमात्मनः प्रापणसाधनभूते स्तवनोपासिते ऋक्सामे “ऋक्सामे वै हरी” [श० ४।४।३।६] प्रेरयन्तः (यं हरिभिः-न धेनवः पृणन्ति) यं परमात्मानं ग्रहीतृभिर्मनुष्यैः प्रेरिताः स्तुतयः-गाव इव तृप्यन्ति (इन्द्राय हरिवन्तं शूषम्-अर्चत) “इन्द्रम् इन्द्राय” व्यत्ययेन चतुर्थी-दुःखहारकगुणवन्तं बलरूपं अर्चत ॥२॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    You, who in concert adore and exalt Hari, omnipotent original cause of the universe as he pervades the divine spatial home, whom hymns of Veda and rays of the sun please and fulfil with their vibrations and radiations as cows fulfil the yajna with ghrta and milk, whose powers of Rtam and Satyam with their centrifugal and centripetal forces you praise, please study and honour that power of his which bears the burden of the world of nature and humanity. Do so for the sake of the honour and excellence of life on the way forward.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    स्तुती करणारे विद्वान लोक मोक्ष आनंदसदन आहे, असे मानतात व घोषणा करतात, की तो प्राप्त केला पाहिजे. त्याच्या प्राप्तीची साधने स्तुती व उपासना आहे. त्यासाठी स्तुती व उपासनेद्वारे परमेश्वराची अर्चना केली पाहिजे. ॥२॥

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