Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 12 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 12/ मन्त्र 10
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यः शश्व॑तो॒ मह्येनो॒ दधा॑ना॒नम॑न्यमाना॒ञ्छर्वा॑ ज॒घान॑। यः शर्ध॑ते॒ नानु॒ददा॑ति शृ॒ध्यां यो दस्यो॑र्ह॒न्ता स ज॑नास॒ इन्द्रः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । शश्व॑तः । महि॑ । एनः॑ । दधा॑नान् । अम॑न्यमानान् । शर्वा॑ । ज॒घान॑ । यः । शर्ध॑ते । न । अ॒नु॒ऽददा॑ति । शृ॒ध्याम् । यः । दस्योः॑ । ह॒न्ता । सः । ज॒ना॒सः॒ । इन्द्रः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यः शश्वतो मह्येनो दधानानमन्यमानाञ्छर्वा जघान। यः शर्धते नानुददाति शृध्यां यो दस्योर्हन्ता स जनास इन्द्रः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः। शश्वतः। महि। एनः। दधानान्। अमन्यमानान्। शर्वा। जघान। यः। शर्धते। न। अनुऽददाति। शृध्याम्। यः। दस्योः। हन्ता। सः। जनासः। इन्द्रः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 12; मन्त्र » 10
    अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथेश्वरविषयमाह।

    अन्वयः

    हे जनासो विद्वांसो युष्माभिर्यः शश्वतो धरति मह्येनो दधानानमन्यमानान् पापिष्ठाञ्छर्वा जघान यः शर्द्धते शृध्यां नानुददाति या दस्योर्हन्ताऽस्ति स इन्द्रः सेवनीयः ॥१०॥

    पदार्थः

    (यः) परमेश्वरः (शश्वतः) अनादिस्वरूपान्पदार्थान् (महि) महत् (एनः) पापम् (दधानान्) धरतः (अमन्यमानान्) अज्ञानिनः शठान् (शर्वा) शासनवज्रेण (जघान) हन्ति (यः) (शर्द्धते) यः शर्द्धं करोति तस्मै (न) (अनुददाति) (शृध्याम्) शब्दकुत्साम् (यः) (दस्योः) परपदार्थहर्त्तुर्दुष्टस्य (हन्ता) (सः) (जनासः) (इन्द्रः) ॥१०॥

    भावार्थः

    यदि परमेश्वरो दुष्टाचारान्न ताडयेद्धार्मिकान्न सत्कुर्याद्दस्यून्न हन्यात्तर्हि न्यायव्यवस्था नश्येत् ॥१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (1)

    विषय

    अब ईश्वर विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (जनासः) विद्वान् मनुष्यो ! तुम लोगों को (यः) जो परमेश्वर (शश्वतः) अनादिस्वरूप पदार्थों को धारण करता (महि) अत्यन्त (एनः) पाप को (दधानान्) धारण किये हुए (अमन्यमानान्) अज्ञानी शठ पापियों को (शर्वा) शासनकारी वज्र से (जघान) मारता (यः) जो (शर्द्धते) कुत्सित निन्दित पापयुक्त शब्द करने अर्थात् उच्चारण करनेवाले के लिये (शृध्याम्) शब्द निन्दा न (अनुददाति) अनुकूलता से देता है और (यः) जो (दस्योः) दूसरे के पदार्थों को हरनेवाले दुष्ट का (हन्ता) मारनेवाला है (सः) वह (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् परमेश्वर सेवने योग्य है ॥१०॥

    भावार्थ

    जो परमेश्वर दुष्टाचारियों को न ताड़ना दे, धार्मिकों का सत्कार न करे और डाकुओं को न मारे तो न्यायव्यवस्था नष्ट हो जाय ॥१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जर परमेश्वर दुष्ट लोकांना मारणार नसेल, धार्मिकांचा सत्कार करणार नसेल, दुष्टांना नष्ट करणार नसेल तर त्याची न्यायव्यवस्था नष्ट होईल. ॥ १० ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    He who holds and governs the eternal constituents of existence, who with his power of justice and punishment destroys the disreputables taking recourse to great sins and crimes, who disapproves, scotches and silences the evil tongue of the maligner, and who eliminates the wicked exploiter: such, O people, is Indra.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top