ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 12/ मन्त्र 12
यः स॒प्तर॑श्मिर्वृष॒भस्तुवि॑ष्मान॒वासृ॑ज॒त्सर्त॑वे स॒प्त सिन्धू॑न्। यो रौ॑हि॒णमस्फु॑र॒द्वज्र॑बाहु॒र्द्यामा॒रोह॑न्तं॒ स ज॑नास॒ इन्द्रः॑॥
स्वर सहित पद पाठयः । स॒प्तऽर॑श्मिः । वृ॒ष॒भः । तुवि॑ष्मान् । अ॒व॒ऽअसृ॑जत् । सर्त॑वे । स॒प्त । सिन्धू॑न् । यः । रौ॒हि॒णम् । अस्फु॑रत् । वज्र॑ऽबाहुः । द्याम् । आ॒ऽरोह॑न्तम् । सः । ज॒ना॒सः॒ । इन्द्रः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यः सप्तरश्मिर्वृषभस्तुविष्मानवासृजत्सर्तवे सप्त सिन्धून्। यो रौहिणमस्फुरद्वज्रबाहुर्द्यामारोहन्तं स जनास इन्द्रः॥
स्वर रहित पद पाठयः। सप्तऽरश्मिः। वृषभः। तुविष्मान्। अवऽअसृजत्। सर्तवे। सप्त। सिन्धून्। यः। रौहिणम्। अस्फुरत्। वज्रऽबाहुः। द्याम्। आऽरोहन्तम्। सः। जनासः। इन्द्रः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 12; मन्त्र » 12
अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे जनासो युष्माभिर्यः सप्तरश्मिर्वृषभस्तुविष्मान्त्सविता सप्त सिन्धून् सर्त्तवे वासृजत् यो वज्रबाहुर्द्यामारोहन्तं रौहिणमस्फुरत्स इन्द्रः प्रज्ञापनीयः ॥१२॥
पदार्थः
(यः) (सप्तरश्मिः) सप्तविधा रश्मयो यस्य सः (वृषभः) मेघशक्तिनिरोधकः (तुविष्मान्) बहुबलाकर्षणयुक्तः (अवासृजत्) अवसर्जति (सर्त्तवे) गन्तुम् (सप्त) सप्तविधान् (सिन्धून्) नदान् (यः) (रौहिणम्) रोहणशीलं मेघम् (अस्फुरत्) स्फुरति संचालयति वा (वज्रबाहुः) बाहुरिव वज्रः किरणसमूहो यस्य (द्याम्) प्रकाशम् (आरोहन्तम्) (सः) (जनासः) (इन्द्रः) ॥१२॥
भावार्थः
यस्मिन् रक्तादिवर्णाः सप्तप्रकाराः किरणाः सन्ति स एव सूर्य्यलोको वृष्टिद्वारा नदीनदानापूरयति पुनरूर्ध्वं जलमाकृश्य धरति पुनर्वर्षति एवमेवेश्वरनियोगेनेदं चक्रं प्रवर्त्तते ॥१२॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (जनासः) मनुष्यो ! तुमको (यः) जो (सप्तरश्मिः) सात प्रकार की किरणों से युक्त (वृषभः) मेघ की शक्ति को रोकनेवाला (तुविष्मान्) बहुत बल से खींचने की शक्ति से युक्त सूर्य्यलोक (सप्त,सिन्धून्) सात सिन्धुओं को (सर्त्तवे) चलने अर्थात् बहने के लिये (अवासृजत्) उत्पन्न करता अर्थात् जल आदि पदार्थों से परिपूर्ण करता है (यः) जो (वज्रबाहुः) भुजा के तुल्य किरण समूहवाला (द्याम्) प्रकाश को (आरोहन्तम्) चढ़ते हुए (रौहिणम्) चढ़ने के शीलवाले मेघ को (अस्फुरत्) फुरती देता वा चलाता है (सः) वह (इन्द्रः) सूर्यलोक सबको बताने के योग्य है ॥१२॥
भावार्थ
जिसमें रक्तादि वर्णयुक्त सात प्रकार के किरण विद्यमान हैं, वही सूर्यलोक वर्षाद्वारा नदी और नदों को अच्छे प्रकार परिपूर्ण करता और फिर ऊपर को जल खींच के धारण करता, फिर वर्षाता है, ऐसे ही ईश्वर के आज्ञारूप नियम से यह संसारचक्र वर्त्तमान है ॥१२॥
मराठी (1)
भावार्थ
ज्यात रक्तवर्णयुक्त सात प्रकारचे किरण विद्यमान आहेत तोच सूर्यलोक वृष्टीद्वारे नदी व नद यांना चांगल्या प्रकारे परिपूर्ण करतो व पुन्हा जल ओढून धारण करतो, पुन्हा वर्षाव करतो. अशा प्रकारेच ईश्वरी आज्ञारूपी नियमाने हे संसारचक्र विद्यमान आहे. ॥ १२ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Who shines bright with seven-colour rays of light, mightily generous, immensely full of energy and power, and, breaking the clouds to rain showers, releases the seven floods of water, rivers and seas rolling and flowing, and who energises the moon and the cloud ascending towards the sun under the Rohini asterism, that, dear people, is Indra, the Sun, mighty with his arms of thunder and adamant.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal