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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 12 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 12/ मन्त्र 3
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यो ह॒त्वाहि॒मरि॑णात्स॒प्त सिन्धू॒न्यो गा उ॒दाज॑दप॒धा ब॒लस्य॑। यो अश्म॑नोर॒न्तर॒ग्निं ज॒जान॑ सं॒वृक्स॒मत्सु॒ स ज॑नास॒ इन्द्रः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । ह॒त्वा । अहि॑म् । अरि॑णात् । स॒प्त । सिन्धू॑न् । यः । गाः । उ॒त्ऽआज॑त् । अ॒प॒ऽधा । व॒लस्य॑ । यः । अश्म॑नोः । अ॒न्तः । अ॒ग्निम् । ज॒जान॑ । स॒म्ऽवृक् । स॒मत्ऽसु॑ । सः । ज॒ना॒सः॒ । इन्द्रः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो हत्वाहिमरिणात्सप्त सिन्धून्यो गा उदाजदपधा बलस्य। यो अश्मनोरन्तरग्निं जजान संवृक्समत्सु स जनास इन्द्रः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः। हत्वा। अहिम्। अरिणात्। सप्त। सिन्धून्। यः। गाः। उत्ऽआजत्। अपऽधा। बलस्य। यः। अश्मनोः। अन्तः। अग्निम्। जजान। सम्ऽवृक्। समत्ऽसु। सः। जनासः। इन्द्रः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 12; मन्त्र » 3
    अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे जनासो योऽहिं हत्वा सप्त सिन्धूनरिणाद्यो गा उदाजद्यो बलस्यापधा योऽश्मनोरन्तरग्निं जजान समत्सु संवृगस्ति स इन्द्रोऽस्तीति वेद्यम् ॥३॥

    पदार्थः

    (यः) (हत्वा) (अहिम्) मेघम् (अरिणात्) गमयति सप्तविधान् (सिन्धून्) समुद्रान्नदीर्वा (यः) (गाः) पृथिवीः (उदाजत्) ऊर्ध्वं क्षिपति (अपधा) योऽपदधाति सः। अत्र सुपां सुलुगिति विभक्तेर्डादेशः। (बलस्य) (यः) (अश्मनोः) पाषाणयोर्मेघयोर्वा (अन्तः) मध्ये (अग्निम्) पावकम् (जजान) जनयति (संवृक्) यः सम्यग्वर्जयति सः (समत्सु) संग्रामेषु (सः) (जनासः) (इन्द्रः) ॥३॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या यः सूर्यलोको मेघं वर्षयित्वा समुद्रान् भरति सर्वान् भूगोलान् स्वं प्रत्याकर्षति स्वकिरणैर्मेघस्य सन्निहितस्य पाषाणस्य मध्ये उष्णताञ्जनयति सोऽग्निरस्तीति वेद्यम् ॥३॥

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    हिन्दी (5)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (जनासः) विद्वानो ! (यः) जो (अहिम्) मेघ को (हत्वा) मार (सप्त) सात प्रकार के (सिन्धून्) समुद्रों को वा नदियों को (अरिणात्) चलाता है (यः) जो (गाः) पृथिवियों को (उदाजत्) ऊपर प्रेरित करता अर्थात् एक के ऊपर एक को नियम से चला रहा (यः) जो (बलस्य) बल को (अपधा) धारण करनेवाला और जो (अश्मनः) पाषाणों वा मेघों के (अन्तः) बीच (अग्निम्) अग्नि को (जजान) उत्पन्न करता तथा (समत्सु) संग्रामो में (संवृक्) सब पदार्थों को अलग कराता है (सः) वह (इन्द्रः) इन्द्र नामक सूर्यलोक है यह जानना चाहिये ॥३॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जो सूर्यलोक मेघ को वर्षाकर समुद्रों को भरता है, सब भूगोलों को अपने प्रति खैंचता है, अपनी किरणों से मेघ और समीपस्थ पाषाण के बीच ऊष्मा को उत्पन्न करता है वह अग्निरूप है, यह जानना चाहिये ॥३॥

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    विषय

    सप्त सिन्धु

    पदार्थ

    १. (यः) = जो (अहिं) = हमारा विनाश करनेवाली [आहन्ति] वासना को (हत्वा) = विनष्ट करके (सप्त) = सात सर्पणशील (सिन्धून्) = ज्ञानप्रवाहों को (अरिणात्) = गतिमय करता है। वासना के विनष्ट होने पर सब ज्ञानेन्द्रियाँ ठीक प्रकार से कार्य करती हैं और इन इन्द्रियों से ज्ञानप्रवाह ठीक प्रकार से चलता है। 'कर्णाविमौ नासिके चक्षुषी मुखम्' इस मन्त्रभाग में दो कान दो नासिका छिद्र दो आँखें व मुख रूप सप्तर्षियों का उल्लेख है, ये सप्तर्षि इस मानव देह रूप आश्रम में अपने ज्ञानयज्ञ को निरन्तर चला रहे हैं। इस यज्ञ में वासना विध्वंस हो जाती है। इस वासना को प्रभु विनष्ट करते हैं । २. (यः) = जो (वलस्य) = ज्ञान पर परदे के रूप में आ जाने वाले [Veil] वल नामक असुरभाव के (अपधा) = दूर धारण द्वारा (उदाजत्) = प्रकर्षेण प्रेरित करता है। प्रभु वल या वृत्र को विनष्ट करके हमारे ज्ञान को दीप्त करते हैं । ३. (यः) = जो (अश्मनोः अन्तः) = [अश्मा इति मेघनाम नि० १.१०] दो बादलों के अन्दर परस्पर समीप आने पर (अग्निम्) = विद्युत् रूप अग्नि को जजान प्रकट करता है। जैसे दो पत्थरों के संघर्ष से आग प्रकट होती है, इसी प्रकार दो बादलों में विद्युत् । इसी प्रकार मानवजीवन में भी विद्या व श्रद्धा रूप दो पाषाणों में कर्मरूप अग्नि का प्रादुर्भाव होता है। इस अग्नि के प्रादुर्भाव द्वारा वे प्रभु (समत्सु) = अध्यात्म-संग्रामों में (संवृक्) = हमारे वासनारूप शत्रुओं को नष्ट करनेवाले हैं। हे (जनासः) = लोगो ! (सः) = वे ही (इन्द्रः) = परमैश्वर्यशाली प्रभु हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - वासना को विनष्ट करके ज्ञान-प्रवाहों के चलानेवाले वे प्रभु हैं। प्रभु ही अध्यात्म संग्रामों में हमारे वासनारूप शत्रुओं को विनष्ट करते हैं ।

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    Bhajan

    आज का वैदिक भजन 🙏 1134
    ओ३म् यो ह॒त्वाहि॒मरि॑णात्स॒प्त सिन्धू॒न्यो गा उ॒दाज॑दप॒धा व॒लस्य॑ ।
    यो अश्म॑नोर॒न्तर॒ग्निं ज॒जान॑ सं॒वृक्स॒मत्सु॒ स ज॑नास॒ इन्द्र॑: ॥
    ऋग्वेद 2/12/3

    बह रहा है सप्त सिन्धुओं का प्रवाह 
    मेघों का कर संहार देता जल को राह 
    वेगवती नदियों का यह जल का भण्डार 
    वह तो इन्द्र प्रभु का है असीम उपहार 
    नदियों में उमड़ता है लहरों का प्यार
    आओ हृदय से करें इन्द्र को नमस्कार
    बह रहा है सप्त सिन्धुओं का प्रवाह 
    मेघों का कर संहार देता जल को राह 

    कहाँ ऐसा दीर्घ पात्र जो लाकर रखें 
    जो गगन में असीम जल लेके उठे 
    ना तो लोक-लोकांतर में इन्द्र देव सा
    हुआ ना, ना होगा ऐसा दिव्यांश दातार
    बह रहा है सप्त सिन्धुओं का प्रवाह 
    मेघों का कर संहार देता जल को राह 

    जल लेकर सूर्य किरणें नभ में उड़े 
    बार-बार बरसे हरियाली खिले 
    इन्द्र के प्रति कृतज्ञ हम सब रहें 
    केवल कृतज्ञता का दे सकें उपहार 
    बह रहा है सप्त सिन्धुओं का प्रवाह 
    मेघों का कर संहार देता जल को राह 

    सूर्य चन्द्र की गौएं मेघ ले छुपा 
    मेघ का संहार कर गौएं ली छुड़ा 
    और फिर प्रकाश पुञ्ज प्रसरता चला 
    कौन करें उसके बिन प्रकाश का प्रसार
    बह रहा है सप्त सिन्धुओं का प्रवाह 
    मेघों का कर संहार देता जल को राह 

    मेघों के संघर्ष से विद्युत चमक उठे 
    धरती-गगन प्रकाश से उज्जवल करे
    विद्युत को क्यों ना हस्तगत कर लें?
    हे इन्द्र! तेरा बल है अनन्त अपार 
    बह रहा है सप्त सिन्धुओं का प्रवाह 
    मेघों का कर संहार देता जल को राह 

    संघर्षों युद्धों में इन्द्र है अजय 
    उसकी कृपाएँ बरसती हर समय 
    संकटों का कर सकता है वही विलय 
    इन्द्र सम्राट है ऐश्वर्यों का भण्डार ‌
    बह रहा है सप्त सिन्धुओं का प्रवाह 
    मेघों का कर संहार देता जल को राह 
    वेगवती नदियों का यह जल का भण्डार 
    वह तो इन्द्र प्रभु का है असीम उपहार 
    नदियों में उमड़ता है लहरों का प्यार
    आओ हृदय से करें इन्द्र को नमस्कार
    बह रहा है सप्त सिन्धुओं का प्रवाह 
    मेघों का कर संहार देता जल को राह 

    रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
    *रचना दिनाँक :- *   
    राग :- मांड
    गायन समय किसी भी समय, ताल दादरा 6 मात्रा
                          
    शीर्षक :- जो सब संघर्षों में विजयी होता है वही इन्द्र है। 🎧भजन ११३वां
    *तर्ज :- *
    00129-729 

    दिव्यांत = सुन्दर,आकर्षक
    गौएं = किरणें 
    हस्तगत = पा लेना
    विलय =
     

    Vyakhya

    प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇

    जो सब संघर्षों में विजयी होता है वही इन्द्र है।

    इन्द्र ही अपनी व्यवस्था से इस अहि= मेघ, बादल का संहार करके इन सप्तसिन्धु का प्रस्त्रवण करता है,जो इन बहने वाली सब नदियों का जल से लबा-लब भर कर बड़े वेग से बहता है, वह इन्द्र है ।और कौन है धरती पर दूसरा ऐसा जो इस महान कार्य को इस तरह कर सके! इन मनुष्यों के पास तो ना ही इतने बड़े पात्र हैं और ना ही इतनी बड़ी शक्ति है तथा न ही इतनी ऊंची सूझबूझ है कि जिससे वे इतने अधिक जल को ऊपर पहुंचा कर वर्षा करवा सकें। यह तो वह भगवान ही है जो सूर्य की तेजोमय रश्मियों से वाष्प रूप में ना जाने कितना जल ऊपर चढ़ा कर पुनः सब पर वर्षा कर सब धरती को हरा -भरा कर देता है ! हरियाली से धरती को ढक देता है, और सबके घरों को नाना विध खाद्य एवं पेय पदार्थों तथा अन्य अनेकों सुख सुविधाओं से भर देता है। हम मनुष्यों के पास सिवाय कृतज्ञता पूर्वक धन्यवाद के,और है भी क्या वस्तु जो हम उस भगवान को दे सकते हैं ।जो गौएं- सूर्य- चन्द्र आदि की रश्मियां सारे जग को अपने प्रकाश स्वरूप धवल दुग्धामृत से प्रकाशमान करती व तृप्त करती है उन गौओं- रश्मियों को बलासुर वृत्र मेघ ने अपने घेरे में लेकर छुपा रखा या रोक रखा था इन्द्र ने उस घेरे को तोड़कर उस मेघ को खोलकर बादल को बरसात कर पुनः उन गौओं अर्थात्  रश्मियों को बाहर निकाल दिया।अर्थात् उसने संसार को पुनः प्रकाश, तेजोरूप शक्ति-बल प्रदान करना आरम्भ कर दिया।
    वही महान इन्द्र है। जिसने दो पाषाणों में अग्नि को उत्पन्न किया है। वही भगवान है जिसने मेघों, बादलों में अग्नि-विद्युत को उत्पन्न किया है।उस इन्द्र परमेश्वर की एक बार की सशक्त अग्नि विद्युत को हम यदि हस्तगत कर सकें तो ना जाने कितने वर्षों तक धरती के प्राणियों को प्रकाश आदि मिल सके।ऐसा वह इन्द्र है।
    वह इन्द्र सभी प्रकार के संग्राम में सभी तरह के संघर्षों में युद्धों में लड़ाईयों में निश्चय ही जीतता है और अपनी राह में आने वाली सभी बाधाओं को सभी रुकावटों को हटाकर दूर परे फेंक देता है,

    🕉🧘‍♂️ईश भक्ति भजन
    भगवान् ग्रुप द्वारा🙏🎧
    🙏वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं🌹

     

    Today's Vedic Bhajan 1134🙏
     O3m who killed the serpent Marina and gave birth to the seven seas of Vala.
     He who gave birth to the fire within the stone in the woods is the Indra of the people.
     Rigveda 2/12/3

     The flow of the seven seas is flowing
     The clouds destroy the path of the waters
     This reservoir of water of swift rivers
     That is the infinite gift of Lord Indra
     The love of the waves floods the rivers
     Let us salute Indra with all our hearts
     The flow of the seven seas is flowing
     The clouds destroy the path of the waters

     Where is such a long vessel to bring
     who rose in the sky with boundless waters
     Otherwise, like Indra in the afterlife
     It has not happened, it will not happen, such a divine giver
     The flow of the seven seas is flowing
     The clouds destroy the path of the waters

     The sun rays flew in the sky with water
     Frequently rained greenery blossomed
     Let us all be grateful to Indra
     Only the gift of gratitude can give
     The flow of the seven seas is flowing
     The clouds destroy the path of the waters

     The cows of the sun and moon were hidden by the clouds
     He destroyed the cloud and saved the cows
     And then the light beam spread
     Who can spread the light without him?
     The flow of the seven seas is flowing
     The clouds destroy the path of the waters

     Lightning flashed from the clash of clouds
     Brighten the earth and sky with light
     Why not usurp electricity?
     O Indra!  Your strength is infinitely immense
     The flow of the seven seas is flowing
     The clouds destroy the path of the waters

     Composer and Voice :- Pujya Shri Lalit Mohan Sahni Ji – Mumbai
     *Date of Creation :- *
     Raag :- Mand
     Singing time any time, rhythm dadra 6 volume
                          
     Title:- He who is victorious in all struggles is Indra. 🎧Bhajan 113th
     *Tarj :- *
     Divyant = beautiful, attractive
     Gauen = rays
     hands-on = to get
     Merger =

     Message of Pujya Shri Lalit Sahni Ji regarding the presented bhajan :-- 👇👇

     🕉🧘 ♂️God devotional songs
     By God Group🙏🎧
     🙏Wishes to the Vedic listeners🌹

    1134 He who is victorious in struggles is Indra.

     Indra himself by his system destroys this Ahi= cloud, the cloud and discharges these seven Indus, which flows with great speed by filling all these flowing rivers with water, he is Indra. And who is on earth  Another one that can do this great work like this!  These men have neither large vessels nor great power nor high intelligence by which they can convey so much water upwards and make it rain.  This is the same God who raises up countless amounts of water in the form of vapor from the bright rays of the sun and then rains on everyone and makes the whole earth green!  It covers the earth with greenery, and fills everyone's homes with all kinds of food and drink and many other comforts.  We humans have nothing but grateful thanksgiving, and what else can we give to that God. The cows whose rays of the sun, moon, etc. illuminate and satisfy the whole world with their light-like white milk nectar  - The rays were hidden or stopped by Balasura Vritra cloud in his circle. Indra broke the circle and opened the cloud and rained the clouds and again brought out the cows, the rays  -Started to provide strength.
     That is the great Indra.  who has produced fire in two stones.  He is the same God who has created the fire and electricity in the clouds. If we can capture the once powerful fire and electricity of that Indra God, the creatures of the earth can get light etc. for many years. Such is that Indra  is.
     That Indra certainly wins in all kinds of struggles, in all kinds of struggles, in battles, in battles, and removes all obstacles in his path and throws them far beyond,

     🕉🧘 ♂️God devotional songs
     By God Group🙏🎧
     🙏Wishes to the Vedic listeners🌹

     

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    विषय

    बलवान् राजा, सभापति, जीवात्मा और परमेश्वर का वर्णन ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार सूर्य या वायु ( हत्वा ) आघात कर ( अहिम् ) मेघ को ( अरिणात् ) चलाता, ( सप्त सिन्धून् ) वेग से बहने वाले जलों को ( अरिणात् ) वेग से बहाता है ( गाः ) जीवों के निवास योग्य भूमि, मङ्गल आदि लोकों को ( उद् आजत् ) ऊपर आकाश में चला रहा है और ( वलस्य अपधा ) आकाश में स्थित, घेरने वाले वलयाकार आवरण को या मेघ को दूर हटा देता है, ( अश्मनो अन्तः अग्निं जजान ) घर्षण से पाषाणों के बीच अग्नि को उत्पन्न करता है वा व्यापक दो मेघों के बीच में वैद्युत् अग्नि को उत्पन्न करता है, ( संवृक् ) प्रतिद्वन्द्वी अन्धकार को दूर करता है उसी प्रकार ( यः ) जो ( अहिम् ) सर्वत्र व्यापक प्रकृति के जड़ परमाणुमय स्वरूप को ( हत्वा ) व्याप कर उनमें आघात या गति, या प्रथम स्पन्दन उत्पन्न करके ( अरिणात् ) उनमें गति या क्रिया उत्पन्न करता है और ( यः ) जो ( सप्त ) निरन्तर गति करने वाले ( सिन्धून् ) प्रकृति के त्रसरेणुमय अवयवों और प्राणों को भी ( अरिणात् ) चलाता है ( यः ) जो ( गाः ) वेद वाणियों को (उत् आज) उत्तम रीति से प्रकट करता है या ( गाः ) जो गौ, अर्थात् सूर्यों और पृथिवी आदि लोकों को ( उत् आजत् ) ऊपर आकाश में चला रहा है जो ( बलस्य अपधा ) घेरने वाले अज्ञान आवरण को दूर हटाता, ( यः ) जो ( अश्मनोः अन्तः ) परस्पर उपभोग करने वाले स्त्री पुरुष, नर मादा दोनों के बीच ( अग्निं ) अग्नि, जीव, चेतन को उत्पन्न करता है ( यः समत्सु ) जो एक साथ जीव परमेश्वर के सहयोग से उत्पन्न हर्षावसर में ( संवृक् ) समस्त दुखों को दूर करता है है ( जनासः ) विद्वान् जनों, वह ( इन्द्रः ) इस समस्त संसार का संचालक, द्रष्टा ‘इन्द्र’ है। इसी प्रकार जो राजा ( अहिम् ) सुकाबले पर आये शत्रु का नाश करे, वेगवान् ( सिन्धून् ) अश्वों को संचालित करे, भूमियों को शासन करे, शत्रु के घेरे को दूर करे ( अश्मनोः ) शस्त्रों से सुसज्जित सेनाओं के बीच में अपने ( अग्निम् ) अग्रणी नायक या ज्ञानवान् दूत को प्रकट करे, भेजे, जो ( समत्सु ) संग्रामों के बीच में ( संवृक् ) अच्छी प्रकार शत्रुओं को परास्त करे वह राजा ‘इन्द्र’ कहाने योग्य है । ( ३ ) अध्यात्म में—इन्द्र आत्मा ( अहिं ) शरीर को चलाता, ( सिन्धून् ) प्राणों और देहगत रुधिर नाड़ियों को चलाता, इन्द्रियों को प्रेरित करता, तामस आवरणों को जेर के समान दूर करता, ( अश्मनोः अन्तः अग्निम् ) दोनों प्रकार के इन्द्रियों के बीच उनके नायक रूप मन को प्रकट करता वह अच्छा, बाधक कारणों को दूर करने वाला है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः- १–५, १२–१५ त्रिष्टुप् । ६-८, १०, ११ निचृत् त्रिष्टुप । भुरिक् त्रिष्टुप । पंचदशर्चं सूक्तम् ॥

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    मन्त्रार्थ

    (यः-अहिं हत्वा सप्त सिन्धून-अरिणात्) जो मेघ का "अहिर्मेघनाम" [निघं० १।१०] हनन करके सात स्यन्दनशील नदियों जलधाराओं को सिन्धवः-नदीनाम" [निघं० १।१३] चलाता है- बहाता है "रिणाति गतिकर्मा" [नियं० २।१४] (यः-बलस्य-अपधा गाः-उदाजत्) जो मेघ "बलः-मेघनाम", [निघं० १।१०] को 'अपधायाः' भित्ति घेराबन्दी से सूर्यकिरणों को "गावः-रश्मिनाम" [निघं० १।१५] बाहिर निकाल देता है (यः-अश्मनो:-अन्तः-अग्नि जजान) जो दो मेघों के अन्दर उनके संघर्ष पर "अश्मा मेघनाम" [निघं० १।१०] ज्वलनरूप अग्नितत्त्व को उत्पन्न कर देता है (समत्सु संवृक्) संग्रामों में प्रयुक्त होकर या मेघ के साथ संघर्षो में "समत्सु संग्राम नाम" [निघ० २।१७] सम्यक् वधकर्ता है "वृणक्ति वधकर्मा" [निघ० २।२६] (जनासः सः-इन्द्रः) हे जनो! वह इन्द्र-विश्व में व्यापनशील विद्युद्देव है या परमात्मदेव है ॥३॥

    टिप्पणी

    "पक्षयुक्तान् पर्वतान्” (सायणः)

    विशेष

    ऋषि:-गृत्समदः (मेधावी प्रसन्न जन" गृत्स:-मेधाविनाम" [निव० ३।१५]) देवताः-इन्द्रः (अध्यात्म में व्यापक परमात्मा आधिदैविक क्षेत्र में सर्वत्र प्राप्त विद्युत्)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! जो सूर्यलोक मेघांची वृष्टी करून समुद्राला समृद्ध करतो व सर्व भूगोलाला आपल्याकडे आकर्षित करतो, आपल्या किरणांनी मेघ व जवळ असलेल्या पाषाणामध्ये उष्मा उत्पन्न करतो, तो अग्निरूप आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    People of the world, it is Indra who breaks the cloud into showers and makes the seven rivers and seven seas flow, who makes the moving stars and planets such as earth and satellites such as moon dance around in order, who wields and controls the entire energy of the universe, who creates the fire at the centre of the stone and the cloud and controls the making and breaking of the elements in the cosmic dynamics.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The subject of sun is further dealt.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O scholars ! this sun kills and penetrates through the clouds thereby with its rainwater fills oceans and rivers and activates the various earths upward. The sun also holds the energy traceable between the rocks and clouds and analyses and generates various substances in the battlefields. Know you the name and might of this Surya.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The sun creates rain and that rainwater fills the oceans. It also makes gravitation among the various planets and generates energy between the cloud and the rock.

    Foot Notes

    (अहिम्) मेघम् । = To the clouds. (अरिणात् ) गमयति । = Moves. ( उदाजत्) ऊर्ध्वं क्षिपति । = Throws upward. (अपधा) योऽपदधाति सः । अत्न सुपां सुलुगिति विभक्तोङ दिशः = One who upholds. (संवृक्) यः सम्यग्वर्जयति सः = Separates or analyses.( समत्सु ) संग्रामेषु = In the battlefields.

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