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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 38 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 38/ मन्त्र 5
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - सविता छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    नानौकां॑सि॒ दुर्यो॒ विश्व॒मायु॒र्वि ति॑ष्ठते प्रभ॒वः शोको॑ अ॒ग्नेः। ज्येष्ठं॑ मा॒ता सू॒नवे॑ भा॒गमाधा॒दन्व॑स्य॒ केत॑मिषि॒तं स॑वि॒त्रा॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नाना॑ । ओकां॑सि । दुर्यः॑ । विश्व॑म् । आयुः॑ । वि । ति॒ष्ठ॒ते॒ । प्र॒ऽभ॒वः । शोकः॑ । अ॒ग्नेः । ज्येष्ठ॑म् । मा॒ता । सू॒नवे॑ । भा॒गम् । आ । अ॒धा॒त् । अनु॑ । अ॒स्य॒ । केत॑म् । इ॒षि॒तम् । स॒वि॒त्रा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नानौकांसि दुर्यो विश्वमायुर्वि तिष्ठते प्रभवः शोको अग्नेः। ज्येष्ठं माता सूनवे भागमाधादन्वस्य केतमिषितं सवित्रा॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नाना। ओकांसि। दुर्यः। विश्वम्। आयुः। वि। तिष्ठते। प्रऽभवः। शोकः। अग्नेः। ज्येष्ठम्। माता। सूनवे। भागम्। आ। अधात्। अनु। अस्य। केतम्। इषितम्। सवित्रा॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 38; मन्त्र » 5
    अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या यत्र नाना दुर्य्य ओकांसि सन्ति यत्र सवित्रा सदाग्नेर्विश्वमायुर्वितिष्ठते प्रभवः शोकश्च भवति यत्र माता सूनवे ज्येष्ठं भागमन्वस्येषितं केतमाधात्तस्मिन् वाऽस्मिन् जगति यथावद्वर्त्तितव्यम् ॥५॥

    पदार्थः

    (नाना) अनेकानि (ओकांसि) समवेतानि गृहाणि (दुर्य्यः) द्वारवन्ति (विश्वम्) सर्वम् (आयुः) जीवनम् (वि) तिष्ठते (प्रभवः) उत्पत्तिः (शोकः) मरणम् (अग्नेः) विद्युदादिरूपात् (ज्येष्ठम्) प्रशस्यम् (माता) जननी (सूनवे) सन्तानाय (भागम्) भजनीयम् (अधात्) (अनु) (अस्य) सन्तानस्य (केतम्) विज्ञानम् (इषितम्) इष्टम् (सवित्रा) सूर्येण सह ॥५॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या यदि भवतां जन्मानि जातानि तर्हि मरणमपि भविष्यत्यत्र सर्वर्त्तुसुखानि गृहाणि विधाय विद्यावृद्धये पाठशाला निर्माय स्वकन्याः पुत्राँश्च विद्यासुशिक्षायुक्तान् कृत्वा पूर्णमायुर्भुक्त्वा यशो विस्तार्यम् ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो जहाँ (नाना) अनेक प्रकार के (दुर्य्यः) द्वारवान् (ओकांसि) घर हैं वा जहाँ (सवित्रा) सूर्य्यलोक के साथ (अग्नेः) बिजली आदि रूप अग्नि से (विश्वम्) समस्त (आयुः) जीवन को (वि,तिष्ठते) विशेषता से स्थिर करता है तथा (प्रभवः) उत्पत्ति और (शोकः) मरण भी होता है जहाँ (माता) जननी (सूनवे) सन्तान के लिये (ज्येष्ठम्) प्रशंसनीय (भागम्) भाग को और (अनु,अस्य) अनुकूल इस सन्तान को (इषितम्) इष्ट अभीष्ट चाहे हुये (केतम्) विज्ञान को (आ,अधात्) अच्छे प्रकार धारण करती उसमें वा इस जगत् में यथावत् वर्त्ताव करना चाहिये ॥५॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जो तुम्हारे जन्म हुए तो मरण भी होगा इसके बीच सब तुओं में सुख देनेवाले घरों को बनाकर विद्यावृद्धि के लिये पाठशालायें बनाये, अपने कन्या और पुत्रों को विद्या और उत्तम शिक्षायुक्त कर पूर्ण आयु को भोग के यश का विस्तार करना चाहिये ॥५॥

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    विषय

    अग्निहोत्र

    पदार्थ

    १. सूर्योदय के होने पर (नाना ओकांसि) = पृथक्-पृथक् घरों में (दुर्यः) = प्रत्येक घर का हित करनेवाला (अग्नेः प्रभवः शोकः) = अग्नि से उत्पन्न होनेवाला तेज (विश्वम् आयु:) = सम्पूर्ण जीवन में अर्थात् आजीवन (वितिष्ठते) = स्थित होता है। इस वाक्य में निम्न बाते स्पष्ट हैं-[क] अग्निहोत्र प्रत्येक घर में होना चाहिए। [ख] यह अग्निहोत्र की अग्नि का तेज घर के लिए रोगकृमि विनाश द्वारा अत्यन्त हितकर है। [ग] अग्निहोत्र जन्मभर करना ही चाहिए 'जरया ह्येवास्मान्मुच्यते मृत्युना वा' । २. इस अग्निहोत्र के होने से (माता) = पृथिवी-यह भूमिमाता (सूनवे) = अपने इस यज्ञशील पुत्र के लिए (ज्येष्ठं भागम्) = श्रेष्ठ सेवनीय अन्न को [भज सेवायाम्] (आधात्) = धारण करती है और (अनु) = इस सेवनीय अन्न के (पश्चात् सवित्रा) = इस कर्मों में प्रेरक सूर्य देव से (अस्य केतम्) = इस का ज्ञान (इषितम्) = प्रेरित किया जाता है, अर्थात् सूर्य इसके मस्तिष्क को उज्ज्वल बनाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सूर्योदय होने पर जब घर-घर में अग्निहोत्र होते हैं तो पृथिवी में उत्तम अन्न उत्पन्न होता है और सूर्य हमारी बुद्धि को बढ़ानेवाला होता है।

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    विषय

    सविता नाम तेजस्वी राजा के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार ( दुर्यः ) द्वारों में प्रवेश करने वाला ( अग्नेः ) अग्नि अर्थात् सूर्य का ( प्रभवः शोकः ) अधिक उज्ज्वल तेज ( नाना ओकांसि ) नाना धरों और लोकों में और ( विश्वम् आयुः ) समस्त अन्नों जीवनों को ( वितिष्ठते ) विशेष रूप से व्यापता है । उसी प्रकार ( अग्नेः ) अग्नि के तेज से चमकने वाला ( प्रभवः ) उत्तम, उत्कृष्ट सामर्थ्य से युक्त, समस्त जगत् का उत्पत्ति स्थान और ( शोकः ) तेज स्वरूप ( दुर्यः ) सब द्वारों मार्गों में व्यापक, सर्वत्र हितकारी परमेश्वर ( नाना ओकांसि ) बाला लोंको और ( विश्वम् आयुः ) समस्त जीवन युक्त जीव संसार को ( वितिष्ठते ) वश करता है। और जिस प्रकार ( माता ) माता ( सूनवे ) अपने पुत्र को ( ज्येष्ठं ) सबसे उत्तम ( भागम् ) सेवने योग्य अन्न, आदि पदार्थ ( आधात् ) देती है और ( सवित्रा ) उत्पादक पिता द्वारा ( अस्य ) इस पुत्र का ( केतम् अनु इषितं भवति ) ज्ञान शिक्षण आदि कार्य उसके बाद देना अभीष्ट होता है। उसी प्रकार ( माता ) सब जगत् को बनाने वाला परमेश्वर ( सूनवे ) उत्पन्न जीव संसार को ( ज्येष्ठं भागं ) सबसे उत्तम सेवने योग्य ऐश्वर्य प्रदान करता है । और ( सवित्रा ) उस सर्वोत्पादक परमेश्वर द्वारा ही ( अस्य ) इस जीव संसार को ( केतम् ) ज्ञान भी ( अनु इषितम् भवति ) निरन्तर अनुकूल रूप से प्रेरित होता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः॥ सविता देवता ॥ छन्दः– १, ५ निचृत् त्रिष्टुप् । २ त्रिष्टुप् ३, ४, ६, १०, ११ विराट् त्रिष्टुप् । ७,८ स्वराट् पङ्क्तिः ९ भुरिक् पङ्क्तिः ॥ एका दशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! तुम्हाला जन्म मिळाला म्हणजे मृत्यूही आहेच. त्या दरम्यान सर्व ऋतूंमध्ये सुख देणारी घरे बांधून विद्यावृद्धीसाठी पाठशाळा बांधाव्यात. आपल्या मुलामुलींना विद्या देऊन उत्तम शिक्षणयुक्त करावे व पूर्ण आयुष्य भोगून यश वाढवावे. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Many are the forms and abodes of life, many doors, exits and entrances, where universal life abides, the light and life of Agni, the birth and death of the flame, the lustre, the desire and passion of the will divine to live and to be. The mother bears the highest share of it for the son, the flower in bloom inspired by Savita, father creator in accordance with his law of existence.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The importance of the sun is emphasized.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! you should deal with one another properly in this world. There are various dwellings with many doors and where with the help of the sun and fire in the form of electricity etc. all the symptoms of life are maintained. In this world of birth and death, the mother imparts the best and the most acceptable knowledge to her issues.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men ! on having birth, you will have to pass away from the world one day or the other. You should build houses that are pleasant and are comfortable during all the seasons. You should establish schools for imparting of the knowledge to turn your sons and daughters well-educated and cultured to live up to the ripe old age (at least one hundred years) and should earn good reputation.

    Foot Notes

    (ओकांसि ) समवेतानि गृहाणि । ओक इति निवासनामीमोच्यते) NRT 3, 1, 3 = Dwellings. (दुर्य्य:) द्वारवन्ति । =Fixed with doors. (शोक: ) मरणम् । शोकादिजनके मरणमत्र शोकशब्देनोक्तम् = Death. (केतम् ) विज्ञानम् | केत इति प्रज्ञा नाम (NG 3 / 9) = Knowledge.

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