ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 6/ मन्त्र 2
ऋषि: - सोमाहुतिर्भार्गवः
देवता - अग्निः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒या ते॑ अग्ने विधे॒मोर्जो॑ नपा॒दश्व॑मिष्टे। ए॒ना सू॒क्तेन॑ सुजात॥
स्वर सहित पद पाठअ॒या । ते॒ । अ॒ग्ने॒ । वि॒धे॒म॒ । ऊर्जः॑ । न॒पा॒त् । अश्व॑म्ऽइष्टे । ए॒ना । सु॒ऽउ॒क्तेन॑ । सु॒ऽजा॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अया ते अग्ने विधेमोर्जो नपादश्वमिष्टे। एना सूक्तेन सुजात॥
स्वर रहित पद पाठअया। ते। अग्ने। विधेम। ऊर्जः। नपात्। अश्वम्ऽइष्टे। एना। सुऽउक्तेन। सुऽजात॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
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अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्वद्गुणानाह।
अन्वयः
हे सुजाताऽश्वमिष्टे ऊर्जो नपादग्ने ते तवाग्नेरया समिधैना सूक्तेन च वयं विधेम ॥२॥
पदार्थः
(अया) अनया समिधा (ते) तव (अग्ने) पावक इव प्रकाशमान (विधेम) परिचरेम (ऊर्जः) पराक्रमस्य (नपात्) यो न पातयति तत्सम्बुद्धौ (अश्वमिष्टे) योऽश्वमिच्छति तत्सम्बुद्धौ। अत्र बहुलं छन्दसीति मुमागमः। (एना) एनेन (सूक्तेन) सुष्ठूक्तेन (सुजात) शोभनेषु प्रसिद्ध ॥२॥
भावार्थः
ये विद्यया साधनैरग्निं युक्त्या संप्रयुञ्जते ते वह्नेः पराक्रमेण स्वकार्याणि साद्धुं शक्नुवन्ति ॥२॥
हिन्दी (1)
विषय
अब विद्वानों के गुणों को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (सुजात) शोभन गुणों में प्रसिद्ध (अश्वमिष्टे) घोड़े के इच्छा करने और (ऊर्जः) बल को (नपात्) न पतन करानेवाले (अग्ने) अग्नि के समान प्रकाशमान (ते) आपके सम्बन्ध में जो (अग्निः) अग्नि है उसकी (अया) इस समिधा से और (सूक्तेन) उत्तमता से कहे हुए सूक्त से हम लोग (विधेम) सेवन करें ॥२॥
भावार्थ
जो विद्या और साधनों से अग्नि का युक्ति के साथ अच्छे प्रकार प्रयोग करते हैं, वे अग्नि के पराक्रम से अपने कामों को सिद्ध कर सकते हैं ॥२॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे विद्या व साधनांनी अग्नीचा युक्तीने चांगल्या प्रकारे प्रयोग करतात ते अग्नीच्या सामर्थ्याने आपले कार्य सिद्ध करतात. ॥ २ ॥
English (1)
Meaning
Agni, child as well as creator and preserver of energy and power, lover of speed and acceleration, brilliantly risen to eminence, with this offer and homage and by this song and celebration of light and fire, let us serve you and advance the yajnic development of knowledge and energy.
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