ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 6/ मन्त्र 7
ऋषि: - सोमाहुतिर्भार्गवः
देवता - अग्निः
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒न्तर्ह्य॑ग्न॒ ईय॑से वि॒द्वान् जन्मो॒भया॑ कवे। दू॒तो जन्ये॑व॒ मित्र्यः॑॥
स्वर सहित पद पाठअ॒न्तः । हि । अ॒ग्ने॒ । ईय॑से । वि॒द्वान् । जन्म॑ । उ॒भया॑ । क॒वे॒ । दू॒तः । जन्या॑ऽइव । मित्र्यः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अन्तर्ह्यग्न ईयसे विद्वान् जन्मोभया कवे। दूतो जन्येव मित्र्यः॥
स्वर रहित पद पाठअन्तः। हि। अग्ने। ईयसे। विद्वान्। जन्म। उभया। कवे। दूतः। जन्याऽइव। मित्र्यः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 6; मन्त्र » 7
अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 27; मन्त्र » 7
Acknowledgment
अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 27; मन्त्र » 7
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथेश्वरविषयमाह।
अन्वयः
हे कवेऽग्ने विद्वाँस्त्वं हि मित्र्यो दूतो जन्येवान्तरीयस उभया जन्मकृत्यानि वेत्सि तस्मादस्माभिरुपास्योऽसि ॥७॥
पदार्थः
(अन्तः) मध्ये (हि) खलु (अग्ने) विद्युदिव स्वप्रकाशजगदीश्वर! (ईयसे) प्राप्नोसि (विद्वान्) सकलवित् (जन्म) जन्मानि (उभया) वर्त्तमानेन सह पूर्वापराणि (कवे) क्रान्तप्रज्ञ सर्वज्ञ (दूतः) सर्वतः समाचारप्रदः (जन्येव) जनेभ्यो हित इव (मित्र्यः) मित्रेषु साधुः ॥७॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। यथा सत्योपदेष्टा सत्यकारी सर्वस्य प्रियं प्रेप्सुः सुहृदाप्तो बाह्यमन्तरं विज्ञानं प्रदाय धर्मे नियच्छति तथाऽन्तर्बहिःस्थः परमेश्वरः सर्वेषां सर्वाणि कर्माणि विदित्वा फलं ददाति ॥७॥
हिन्दी (1)
विषय
अब ईश्वर के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (कवे) क्रम-क्रम से बुद्धि को विषयों में प्रविष्ट करनेवाले सर्वज्ञ (अग्ने) बिजुली के समान आप ही प्रकाशमान जगदीश्वर वा (विद्वान्) सब विषयों को जाननेवाले विद्वान् जन ! आप (हि) ही (मित्र्यः) मित्रों में साधु (दूतः) सबसे समाचार के देनेहारे (जन्येव) जनों के लिये हितकारी जैसे हो वैसे (अन्तः) हृदयाकाश के बीच (ईयसे) प्राप्त होते हो (उभया) वर्त्तमान के साथ अगले-पिछिले (जन्म) जन्म और कर्मों को जानते हो इससे हम लोगों के उपासना करने योग्य हो ॥७॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सत्य का उपदेश और सत्य का आचरण करनेवाला पुरुष सबके प्रिय पियारे काम को चाहनेवाला सबका मित्र शास्त्रज्ञ धर्मात्मा विद्वान् बाहर-भीतर विज्ञान देकर धर्म में नियत करता है, वैसे भीतर-बाहर स्थित परमेश्वर सबके समस्त कामों को जानकर फल देता है ॥७॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा सत्योपदेशक, सत्याचरणी, सर्वांचा प्रिय, सुहृद आप्त, प्रबल इच्छुक, धर्मात्मा, विद्वान शास्त्रज्ञ अंतर्बाह्य विज्ञान देऊन धर्मात नियत करतो, तसा अंतर्बाह्य परमेश्वर सर्वांचे कर्म जाणून फळ देतो. ॥ ७ ॥
English (1)
Meaning
Agni, omnipresent lord of light, you are ever present in the heart within. Lord of knowledge, poetic visionary of the universe, you know the birth and death of things past, present and future. Harbinger and giver of knowledge of life in existence, you are the friend of all living beings for the sake of entire humanity.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Dhiman
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal