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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 7/ मन्त्र 2
    ऋषिः - सोमाहुतिर्भार्गवः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    मा नो॒ अरा॑तिरीशत दे॒वस्य॒ मर्त्य॑स्य च। पर्षि॒ तस्या॑ उ॒त द्वि॒षः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । नः॒ । अरा॑तिः । ई॒श॒त॒ । दे॒वस्य॑ । मर्त्य॑स्य । च॒ । पर्षि॑ । तस्याः॑ । उ॒त । द्वि॒षः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा नो अरातिरीशत देवस्य मर्त्यस्य च। पर्षि तस्या उत द्विषः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा। नः। अरातिः। ईशत। देवस्य। मर्त्यस्य। च। पर्षि। तस्याः। उत। द्विषः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 28; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे विद्वन्नो देवस्य मर्त्त्यस्य चारातिर्मेशत उतापि तस्या द्विषो नः पर्षि पारं नय ॥२॥

    पदार्थः

    (मा) (नः) अस्मान् (अरातिः) शत्रुः (ईशत) समर्थो भवेत् (देवस्य) विदुषः (मर्त्यस्य) अविदुषः (च) (पर्षि) पिपूरय (तस्याः) (उत) अपि (द्विषः) अप्रीतेः ॥२॥

    भावार्थः

    ये द्वेषं विहाय धार्मिकाणां विदुषामविदुषां च सङ्गेन सर्वेषु प्रीतिं जनयन्ति ते केनापि तिरस्कृता न जायन्ते ॥२॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे विद्वान् ! (नः) हम (देवस्थ) विद्वान् (मर्त्यस्य, च) और अविद्वान् का (अरातिः) शत्रुः (मा, ईशत) मत समर्थ हो (उत) और हम लोगों को और (तस्याः) उस (द्विषः) अप्रीतिवाले शत्रु के (पर्षि) पार पहुँचाइये ॥२॥

    भावार्थ

    जो द्वेष छोड़ धार्मिक विद्वानों की तथा अविद्वानों के साथ प्रीति उत्पन्न कराते हैं, वे किसी से तिरस्कार को नहीं प्राप्त होते हैं ॥२॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे द्वेष सोडून धार्मिक विद्वानांवर व अविद्वानांवर प्रेम करतात, ते कुणाकडून तिरस्कृत होत नाहीत. ॥ २ ॥

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Agni, generous and brilliant lord ruler of the world of life, let no one who is selfish, ungenerous, uncreative and graceless rule over us, whether we are learned and bright or just simple ordinary folk living as children of nature. Liberate us from him, purge us of the hateful and the envious within and without, and purge him too of hate and enmity.

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