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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 8/ मन्त्र 4
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - अग्निः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    आ यः स्व१॒॑र्ण भा॒नुना॑ चि॒त्रो वि॒भात्य॒र्चिषा॑। अ॒ञ्जा॒नो अ॒जरै॑र॒भि॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । यः । स्वः॑ । न । भा॒नुना॑ । चि॒त्रः । वि॒ऽभाति॑ । अ॒र्चिषा॑ । अ॒ञ्जा॒नः । अ॒जरैः॑ । अ॒भि ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ यः स्व१र्ण भानुना चित्रो विभात्यर्चिषा। अञ्जानो अजरैरभि॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। यः। स्वः। न। भानुना। चित्रः। विऽभाति। अर्चिषा। अञ्जानः। अजरैः। अभि॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 8; मन्त्र » 4
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 29; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    यो विद्युद्रूपश्चित्रोऽजरैरभ्यञ्जानोऽग्निरर्चिषा भानुना स्वर्ना विभाति स सर्वैरन्वेषणीयः ॥४॥

    पदार्थः

    (आ) समन्तात् (यः) (स्वः) आदित्यः (न) इव (भानुना) प्रकाशेन (चित्रः) अद्भुतः (विभाति) प्रकाशते (अर्चिषा) पूजनीयेन (अञ्जानः) प्रकटीकुर्वन् (अजरैः) वयोहानिरहितैः (अभि) सर्वतः ॥४॥

    भावार्थः

    अग्निरयं सूक्ष्मपरमाणुरूपेषु पदार्थेषु सर्वदा स्वरूपेणावतिष्ठते काष्ठादिषु पदार्थवृद्धिह्रासादिना कदाचित् वर्द्धते कदाचिद्ध्रसते च ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    (यः) जो बिजुलीरूप (चित्रः) चित्र-विचित्र अद्भुत अग्नि (अजरैः) अविनाशी पदार्थों से (अभि,अञ्जानः) सब ओर से सब पदार्थों को प्रकट करता हुआ अग्नि (अर्चिषा) प्रशंसनीय (भानुना) प्रकाश से (स्वः) आदित्य के (न) समान (आ,विभाति) अच्छे प्रकार प्रकाशित होता है, वह सबको ढूँढने योग्य है ॥४॥

    भावार्थ

    अग्नि यह सूक्ष्म परमाणुरूप पदार्थों में सर्वदा अपने रूप के साथ रहता है। काष्ठ आदि में पदार्थों की वृद्धि और न्यूनता आदि से कोई समय बढ़ता और कभी कमती होता है ॥४॥

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    विषय

    १. (यः) = जो प्रभु (अर्चिषा) = ज्ञानाग्नि की ज्वालाओं से इस प्रकार (आविभाति) = सर्वतः दीस होते हैं, (न) = जैसे कि (भानुना) = किरणों की दीप्ति से (स्वः) = सूर्य चमकता है। आदित्य वर्ण तो वे हैं ही। इसी कारण वे प्रभु (चित्रः) = अद्भुत हैं अथवा [चायनीयः] पूजनीय आदरणीय हैं । २. ये प्रभु (अजरैः) = अपने न जीर्ण होनेवाले ज्ञान के प्रकाशों से (अभि अञ्जानः) = हमारे जीवनों को अन्दर बाहर से अलंकृत कर रहे हैं- हमें आन्तरिक व (बाह्य) दीप्ति प्राप्त कराके वे प्रभु हमें स्वलंकृत जीवनवाला बनाते हैं ।

    पदार्थ

    भावार्थ - वे प्रभु अपनी ज्ञानदीप्ति से सूर्य के समान चमकते हैं। हमारे जीवनों को सद्गुणों से अलंकृत करते हैं ।

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    विषय

    सूर्यवत् उत्तम नायक के कर्त्तव्यों का वर्णन ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार अग्नि ( स्वः न ) सूर्य के समान ( भानुना ) तेज़ से ( अर्चिषा ) ज्वाला से ( विभाति ) चमकता है और ( अजरैः अभि अञ्जानः ) अपने अविनाशी गुणों से चमकता रहता है उसी प्रकार ( यः ) जो पुरुष ( स्वः न ) सूर्य के समान ही ( चित्रः ) अति आश्चर्यकारी, ( अर्चिषा ) तेज से और ( भानुना ) प्रकाश से ( अजरैः ) अपने स्थायी गुणों से ( अञ्जानः ) अपने को प्रकट और सब के प्रति प्रिय रूप प्रकट करता हुआ ( आ विभाति ) सर्वत्र प्रकाशित होता है वह प्रशंसा योग्य है । ( ३ ) परमेश्वर ( चित्रः ) आश्चर्यमय है । सब के चित्तों और आत्माओं में रमण करने हारा होने से ‘चित्र’ है । वह अपने अजर, अविनाशी गुणों से प्रकाश से सूर्य के समान प्रकट होता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषि:॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः– १ गायत्री । २ निचृत् पिपीलिकामध्या गायत्री। ३, ५ निचृद्गायत्री। ४ विराड् गायत्री। ६ निचृदनुष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    अग्नी हा सूक्ष्म परमाणूरूपी पदार्थांमध्ये सदैव आपल्या स्वरूपाने उपस्थित असतो. काष्ठ इत्यादी पदार्थांमध्ये वृद्धी व ऱ्हास यांनी कधी वाढतो तर कधी कमी होतो. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni which gloriously shines and blazes for us with the light of the sun is wonderful and awe-inspiring with its beauty and splendour, manifesting itself through unaging forms, revealing them to our sight and experience.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The secrets of energy are highlighted.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    The energy is existent in electricity, power, fire, sun etc. With its eternal qualities, it is manifested in all the substances in the various forms, like good light, sunshine etc. We should discover its secret through pretty well procedures to brighten our lives.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    This energy in the minutest forms in many manifestations can be discovered in all the substances, like wood, hydro resources etc. It also regulates the growth and decline with the proportionate expansion and decline.

    Foot Notes

    (स्वः) आदित्य: = The Sun. (भानुना) प्रकाशेन = Because of light. (विभाति) प्रकाशते । = Science. (अञजान:) (प्रकटीकुर्वन) = Manifesting (अजरैः) वयोहानिरहितै: = Having` no loss of life and age, not decaying.

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