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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 39 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 39/ मन्त्र 9
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    शु॒नं हु॑वेम म॒घवा॑न॒मिन्द्र॑म॒स्मिन्भरे॒ नृत॑मं॒ वाज॑सातौ। शृ॒ण्वन्त॑मु॒ग्रमू॒तये॑ स॒मत्सु॒ घ्नन्तं॑ वृ॒त्राणि॑ सं॒जितं॒ धना॑नाम्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शु॒नम् । हु॒वे॒म॒ । म॒घवा॑नम् । इन्द्र॑म् । अ॒स्मिन् । भरे॑ । नृऽत॑मम् । वाज॑ऽसातौ । शृ॒ण्वन्त॑म् । उ॒ग्रम् । ऊ॒तये॑ । स॒मत्ऽसु॑ । घ्नन्त॑म् । वृ॒त्राणि॑ । स॒म्ऽजित॑म् । धना॑नाम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ। शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शुनम्। हुवेम। मघवानम्। इन्द्रम्। अस्मिन्। भरे। नृऽतमम्। वाजऽसातौ। शृण्वन्तम्। उग्रम्। ऊतये। समत्ऽसु। घ्नन्तम्। वृत्राणि। सम्ऽजितम्। धनानाम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 39; मन्त्र » 9
    अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या यं वयमूतयेऽस्मिन् भरे नृतमं मघवानं वाजसातौ शृण्वन्तमिवोग्रं समत्सु घ्नन्तमिव धनानां सञ्जितमिन्द्रं विज्ञाय वृत्राणि शुनं च हुवेम तथैतं विज्ञाय सर्वमेतद्यूयं प्राप्नुत ॥९॥

    पदार्थः

    (शुनम्) सुखकारकं विज्ञानम् (हुवेम) स्वीकुर्याम (मघवानम्) बहुधनप्रदानकरम् (इन्द्रम्) विद्युतम् (अस्मिन्) (भरे) भरणीये संसारे (नृतमम्) अतिशयेन नायकम् (वाजसातौ) पदार्थानां विभागविद्यायाम् (शृण्वन्तम्) श्रोतारं न्यायाधीशं दण्डप्रदमिव (उग्रम्) तेजस्विभावम् (ऊतये) व्यवहारसिद्धिप्रवेशाय (समत्सु) सङ्ग्रामेषु (घ्नन्तम्) विद्यावन्तं शूरवीरमिव (वृत्राणि) धनानि (सञ्जितम्) सम्यक् जयति येन (धनानाम्) श्रियाम् ॥९॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। आप्ता विद्वांसो भूगर्भविद्युद्भूगोलखगोलसृष्टिस्थानां पदार्थानां विद्योपदेशेन पदार्थविद्याः प्रापय्य सर्वान्त्सततमुन्नयेयुरिति ॥९॥ अत्र विद्वद्गुणवर्णनं निन्दितजननिवारणं मैत्रीभावनमज्ञानं विहाय विद्याप्राप्तीच्छाकरणमत एतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यृग्संहितायां तृतीयाष्टके द्वितीयोऽध्यायः षड्विंशो वर्गस्तृतीये मण्डल एकोनचत्वारिंशत्तमं सूक्तञ्च समाप्तम् ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जिसको हम लोग (ऊतये) व्यवहारसिद्धि प्रवेश के लिये (अस्मिन्) इस (भरे) पालन करने योग्य संसार में (नृतमम्) अत्यन्त नायक (मघवानम्) बहुत धन के दान करने और (वाजसातौ) पदार्थों की विभाग विद्या में (शृण्वन्तम्) सुननेवाले न्यायाधीश दण्ड देनेवाले के सदृश (उग्रम्) तेजस्वीरूप और (समत्सु) संग्रामों में (घ्नन्तम्) विद्यावान् शूरवीर के सदृश (धनानाम्) लक्ष्मियों को (सञ्जितम्) शीघ्र जीतता है जिससे उस (इन्द्रम्) बिजुली रूप अग्नि को जानकर (वृत्राणि) धनों को और (शुनम्) सुखकारक विज्ञान को (हुवेम) स्वीकार करें वैसे इसको जानकर आप लोग प्राप्त हूजिये ॥९॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। यथार्थवक्ता विद्वान् लोग भूगर्भ बिजुली भूगोल खगोल सृष्टिस्थ पदार्थों की विद्या के उपदेश से पदार्थविद्याओं को प्राप्त कराके सबकी निरन्तर वृद्धि करें ॥९॥ इस सूक्त में विद्वानों के गुणों का वर्णन, निन्दित जनों का निवारण, मित्रता करना, अज्ञान का त्याग कर, विद्या की प्राप्ति की इच्छा करना इत्यादि विषय वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह समझना चाहिये ॥ यह ऋग्वेदसंहिता में तृतीय अष्टक में दूसरा अध्याय छब्बीसवाँ वर्ग और तृतीय मण्डल में उन्तालीसवाँ सूक्त समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    धनों के विजेता प्रभु

    पदार्थ

    मन्त्र की व्याख्या ३.३०.२२ पर द्रष्टव्य है । सम्पूर्ण सूक्त प्रभु-स्तवन से पवित्रता व ज्ञानवृद्धि का प्रतिपादन कर रहा है। प्रभु की उपासना द्वारा सोमरक्षण का महत्त्व अगले सूक्त में प्रतिपादित हुआ है -

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    विषय

    सूर्यवत् ज्ञान-प्रकाश की स्तुति।

    भावार्थ

    व्याख्या देखो सू० ३३। २२॥ इति षड्विंशो वर्गः। इति द्वितीयोऽध्यायः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता॥ छन्दः–१, ९ विराट् त्रिष्टुप्। ३–७ निचृत्त्रिष्टुप २,८ भुरिक् पङ्क्तिः॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. यथार्थवक्ता, विद्वान लोक भूगर्भ, विद्युत, भूगोल, खगोल व सृष्टीतील पदार्थ विद्येच्या उपदेशाने पदार्थविद्या प्राप्त करून सर्वांची निरंतर वृद्धी करतात. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    We invoke Indra, generous lord of light and majesty, and best of men and leaders, for success in this battle of life. He listens to our call and prayer, rises lustrous and blazing, for our protection and progress, destroying the forces of darkness and winning us the wealths of light and prosperity in our struggles for excellence.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes and functions of the enlightened are stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    For our wordily dealings we accept in this world Indra (electricity), which is the most important object. It gives much wealth (when properly utilized) in the course of analysis or classification of the articles. Splendid, like a judge, who listens attentively to the arguments of both the parties in a case and gives correct judgement. By the conquest or acquiring of abundant wealth, like a brave warrior slays enemies in the battle, and knowing its properties thoroughly, we gain riches and scientific knowledge. It leads to happiness. So you should also do.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    It is the duty of the absolutely truthful and faithful enlightened persons to lead all to prosperity and advancement by teaching them various sciences of Geology. Energy, Geography Astronomy etc. enabling them to acquire knowledge.

    Foot Notes

    (भरे) भरणीये संसारे। = In the world which is to be supported. (ऊतये ) व्यवहारसिद्धिप्रवेशाय । = For entry into the accomplishment of dealings. (वृत्राणि ) धनानी । वृत्रमिति धननाम (NG 2,10) = Wealth, riches (शुनम् ) सुखकारकं विज्ञानम् । शनमिति सुखनाम (NG 3,6) = Scientific knowledge that leads to happiness. (वाजसातौ) प्रदार्थानां विभग्विद्यायाम्। = In the science of the analysis or classification of the articles.

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