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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 40 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 40/ मन्त्र 2
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    इन्द्र॑ क्रतु॒विदं॑ सु॒तं सोमं॑ हर्य पुरुष्टुत। पिबा वृ॑षस्व॒ तातृ॑पिम्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑ । क्र॒तु॒ऽविद॑म् । सु॒तम् । सोम॑म् । ह॒र्य॒ । पु॒रु॒ऽस्तु॒त॒ । पिब॑ । आ । वृ॒ष॒स्व॒ । ततृ॑पिम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र क्रतुविदं सुतं सोमं हर्य पुरुष्टुत। पिबा वृषस्व तातृपिम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र। क्रतुऽविदम्। सुतम्। सोमम्। हर्य। पुरुऽस्तुत। पिब। आ। वृषस्व। ततृपिम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 40; मन्त्र » 2
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 1; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे पुरुष्टुतेन्द्र ! त्वं तातृपिं क्रतुविदं सुतं सोमं हर्य्य पिब तेनाऽऽवृषस्व ॥२॥

    पदार्थः

    (इन्द्र) विद्यैश्वर्य्यमिच्छुक (क्रतुविदम्) क्रतुः प्रज्ञा तां विन्दति येन तम् (सुतम्) सुसंस्कारैर्निष्पादितम् (सोमम्) ओषधिगणम् (हर्य्य) कामयस्व (पुरुष्टुत) बहुभिः प्रशंसित (पिब) (आ) (वृषस्व) वृष इव बलिष्ठो भव (तातृपिम्) अतिशयेन तृप्तिकरम् ॥२॥

    भावार्थः

    हे राजन् ! भवान् प्रज्ञावर्द्धकं भोजनं पानं च कृत्वा तृप्तो भूत्वा बलारोग्यबुद्धिविनयान् वर्द्धय ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे (पुरुष्टुत) बहुतों से प्रशंसित (इन्द्र) विद्या और ऐश्वर्य्य की इच्छा करनेवाले ! आप (तातृपिम्) अत्यन्त तृप्ति करने और (क्रतुविदम्) यज्ञ के सिद्ध करनेवाले और (सुतम्) उत्तम संस्कारों से उत्पन्न (सोमम्) ओषधियों के समूह की (हर्य्य) कामना और (पिब) पान करो उससे (आ, वृषस्व) बल के सदृश बलिष्ठ होओ ॥२॥

    भावार्थ

    हे राजन् ! आप बुद्धि के बढ़ानेवाले खाने तथा पीने योग्य वस्तु का भोजन और पान कर तृप्त होकर बल आरोग्य बुद्धि और नम्रता को बढ़ाइये ॥२॥

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    विषय

    'शक्ति व प्रज्ञान' देनेवाला सोम

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो ! इस (क्रतुविदम्) = शक्ति व प्रज्ञान के प्रापक [विद् लाभे] (सुतं सोमम्) = उत्पन्न हुए हुए सोम को (हर्य) = [पातुं कामयस्य] पीने की कामना करिए। आपके अनुग्रह से यह उत्पन्न हुआ हुआ सोम हमारे शरीरों में ही सुरक्षित रहे । [२] इस (तातृपिम्) = अत्यन्त प्रीतिजनक सोम को, हे (पुरुष्टुत) = अत्यन्त स्तुति किये जानेवाले प्रभो! (पिब) = शरीर के अन्दर ही व्याप्त करिए और (आवृषस्व) = इसे हमारे शरीर में ही सिक्त करिए। आपके अनुग्रह से यह सोम शरीर का ही अंग बनता हुआ, इस को अत्यन्त शक्तिशाली बनानेवाला हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम का रक्षण हमें शक्तिशाली व प्रज्ञावान् बनाए ।

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    विषय

    प्रशस्त पुरुषों के लिये अन्न भोजन का उपदेश।

    भावार्थ

    हे (पुरुस्तुत इन्द्र) बहुतों से प्रशंसित ! हे ऐश्वर्य के इच्छुक ! तू (सुतं) उत्पन्न हुए (क्रतुविदं) क्रियाशक्ति और बुद्धि को प्राप्त कराने वाले (सोमं) ओषधि अन्नादि को (हर्य) चाह। और (तातृपिम्) तृप्त करने वाले प्रिय अन्नादि रस का (पिब) पान कर (वृषस्व) और बलवान् हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः–१–४, ६–९ गायत्री। ५ निचृद्गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजा! तू बुद्धी वाढविणारे खानपान करून तृप्त होऊन बल, आरोग्य, बुद्धी, नम्रता वाढव. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, lover of life and excellence, sung and celebrated by many, cherish the nectar-sweet of soma distilled and inspiring for the completion of yajna. Drink of the delight of life to the lees, to your heart’s content, grow strong and vigorous, and shower the blessings of divinity on the celebrants.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties and attributes of rulers and subjects are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O Indra (King) ! you are desirous of the great wealth of knowledge and are praised by many. Desire and drink the exhilarating juice of various nourishing herbs, which has been well-prepared. It confers intellectual power. Drink it and be strong like a bull.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O King! take the food and drink that Soma juice that increases intellect. Having drunk it to your satisfaction, augment your strength, health, intellect and humility.

    Foot Notes

    (क्रतुविदम) क्रतुः प्रज्ञा तां विन्दति येन तम्।क्रतुरीति प्रज्ञानाम (N G 3.9)। = Conferrer of intellect. (हर्य्य) कामयस्व । हर्य्यं -गति कान्तोयोः (भ्वा) कान्तिःकामना। =Desire. (वृषस्व) वृष इव बलिष्ठो भव। = Be strong like a bull.

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