ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 40/ मन्त्र 5
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
द॒धि॒ष्वा ज॒ठरे॑ सु॒तं सोम॑मिन्द्र॒ वरे॑ण्यम्। तव॑ द्यु॒क्षास॒ इन्द॑वः॥
स्वर सहित पद पाठद॒धि॒ष्व । ज॒ठरे॑ । सु॒तम् । सोम॑म् । इ॒न्द्र॒ । वरे॑ण्यम् । तव॑ । द्यु॒क्षासः॑ । इन्द॑वः ॥
स्वर रहित मन्त्र
दधिष्वा जठरे सुतं सोममिन्द्र वरेण्यम्। तव द्युक्षास इन्दवः॥
स्वर रहित पद पाठदधिष्व। जठरे। सुतम्। सोमम्। इन्द्र। वरेण्यम्। तव। द्युक्षासः। इन्दवः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 40; मन्त्र » 5
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 1; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 1; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे इन्द्र ! ये तव द्युक्षास इन्दवः स्युस्तेषां सकाशाद्वरेण्यं सुतं सोमं जठरे त्वं दधिष्व ॥५॥
पदार्थः
(दधिष्व) धरस्व। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (जठरे) जायते सुखं यस्मात्तस्मिन्नुदरे (सुतम्) सुसंस्कृतम् (सोमम्) महौषधिविशिष्टमन्नम् (इन्द्र) पूर्णायुःकामुक (वरेण्यम्) स्वीकर्त्तुं भोक्तुमर्हम् (तव) (द्युक्षासः) दिवि प्रकाशे क्षियन्ति निवासयन्ति ते (इन्दवः) सस्नेहाः ॥५॥
भावार्थः
राजादिभिर्मनुष्यैः सर्वेषां पदार्थानां मध्यात्त एव पदार्था भोक्तव्याः पेयाश्च ये प्रज्ञायुर्बलानि वर्धयेयुः ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
हे (इन्द्र) पूर्ण अवस्था की कामना करनेवाले ! जो (तव) आपके (द्युक्षासः) प्रकाश में रहने (इन्दवः) और स्नेह करनेवाले होवें उनके समीप से (वरेण्यम्) भोग करने योग्य (सुतम्) उत्तम प्रकार बनाया (सोमम्) श्रेष्ठ औषधियों से युक्त अन्न को (जठरे) उत्पन्न हो सुख जिसमें उस पेट में आप (दधिष्व) धरो ॥५॥
भावार्थ
राजा आदि मनुष्यों को सम्पूर्ण पदार्थों के मध्य से उन्हीं पदार्थों का खान और पान करना चाहिये कि जो बुद्धि अवस्था और बल को निरन्तर बढ़ावें ॥५॥
विषय
ज्ञान व शक्ति [द्युक्षासः इन्दवः]
पदार्थ
[१] प्रभु जीव से कहते हैं कि हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष (वरेण्यम्) = वरने के योग्य (सुतं सोमम्) = उत्पन्न हुए-हुए इस सोम को जठरे-अपने जठर में ही अपने अन्दर ही (रधिष्व) = धारण कर । क्षणिक आनन्द की अपेक्षा सोमरक्षण की तपस्या ही श्रेष्ठ है । [२] ये सोमकण धारित होने पर (तव द्युक्षासः) = तेरी ज्ञानदीप्ति में निवास करनेवाले हैं- तुझे दीप्त ज्ञानवाला बनानेवाले हैं और (इन्दवः) = ये तुझे शक्तिशाली बनानेवाले हैं। सोम अंग-प्रत्यंग में व्याप्त होकर उन्हें (सुपुष्ट) = करते हैं और ज्ञानाग्नि का ईंधन बनकर उसे दीप्त करते हैं । इनसे बुद्धि तीव्र होती है ।
भावार्थ
भावार्थ- रक्षित सोमकण ज्ञानाग्नि को दीप्त करते हैं और हमें शक्ति-सम्पन्न बनाते हैं ।
विषय
पेट में अन्न को जैसे वैसे कोश में ऐश्वर्य को और विद्यागर्भ में शिष्य का रखने का उपदेश।
भावार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! तू (वरेण्यम्) श्रेष्ठ, (सुतम् सोमम्) उत्पन्न ऐश्वर्य और शासन को, उत्तम उत्पन्न अन्नादि को (जठरे) उदर और अपने शासन में (दधिप्व) रख, ये (इन्दवः) ऐश्वर्य (तव) तेरे ही (द्युक्षासः) प्रकाश या तेज को धारण करने वाले हैं या ये चमकने वाले ऐश्वर्य तेरे ही हैं। (२) राजा (सुतं सोमं) अभिषिक्त अधिकारी को भी अपने अधीन रक्खे। ये तेजस्वी श्रेष्ठ पुरुष भी उसी के अधीन रहें। (३) गुरु आचार्य माता के गर्भ के बालक के समान ही श्रेष्ठ शिष्य को अपने अधीन ‘विद्यागर्भ’ में रक्खे। इति प्रथमो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः–१–४, ६–९ गायत्री। ५ निचृद्गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
राजा इत्यादी माणसांनी सर्व पदार्थांपैकी त्याच पदार्थांचे खान-पान केले पाहिजे ज्यामुळे बुद्धी, आयु व बल निरंतर वाढेल. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, lover of life and health a long age, the soma distilled drop by drop in sunlight is selected for you. Take it, bear it in the stomach, and it will give you the vigour and joy of a full life.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Again the attributes and duties of the rulers and people are continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Indra (King! desirous of food prepared from good herbs, receive lute your body the effused excellent Soma (juice of invigorating herbs and plants) extracts by those, who are your loving friends and who keep you abreast in the light of knowledge.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
It is the duty of the rulers and other persons to take only those articles in eating and drinking which increase intellect, and span of life and strength.
Foot Notes
(दयुक्षास:) दिवि प्रकाशे क्षियन्ति निवासयन्ति ते = Those who keep you abreast of in the light of knowledge. (सोमम् ) महौषधविशिष्टमन्नम् = Food prepared from good (nourishing) herbs and plants etc. (इन्दव:) सस्नेहा:। = Loving friends.
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