Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 40 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 40/ मन्त्र 6
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    गिर्व॑णः पा॒हि नः॑ सु॒तं मधो॒र्धारा॑भिरज्यसे। इन्द्र॒ त्वादा॑त॒मिद्यशः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गिर्व॑णः । पा॒हि । नः॒ । सु॒तम् । मधोः॑ । धारा॑भिः । अ॒ज्य॒से॒ । इन्द्र॑ । त्वाऽदा॑तम् । इत् । यशः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गिर्वणः पाहि नः सुतं मधोर्धाराभिरज्यसे। इन्द्र त्वादातमिद्यशः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गिर्वणः। पाहि। नः। सुतम्। मधोः। धाराभिः। अज्यसे। इन्द्र। त्वाऽदातम्। इत्। यशः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 40; मन्त्र » 6
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे गिर्वण इन्द्र ! यत्त्वादातं यशोऽस्ति तेन मधोर्धाराभिश्च सह सुतं सोमं प्राप्तोऽस्माभिरज्यसे स त्वमस्मान् पाहि ॥६॥

    पदार्थः

    (गिर्वणः) यो गीर्भिर्वन्यते याच्यते तत्सम्बुद्धौ (पाहि) (नः) अस्मान् (सुतम्) (मधोः) मधुरादिगुणयुक्तस्य (धाराभिः) प्रवाहैः (अज्यसे) प्राप्यसे (इन्द्र) (त्वादातम्) त्वया गृहीतम् (इत्) एव (यशः) आरोग्यप्रदमुदकमन्नं धनं वा। यश इति उदकना०। निघं० १। १२। अन्ननामसु च। २। ७। धनना०। निघं० २। १०। ॥६॥

    भावार्थः

    हे राजन् ! यावत्पेयमन्नं धनं चास्मद्भवता स्वीकृतं तेन स्वस्याऽस्माकं च रक्षा विधेहि ॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे (गिर्वणः) वाणियों से याचना किये जाते (इन्द्र) तेजस्विन् ! जो (त्वादातम्, इत्) आपसे ग्रहण किया हुआ ही (यशः) रोगनाशक जल अन्न वा धन है उससे और (मधोः) मधुर आदि गुणों से युक्त वस्तु के (धाराभिः) प्रवाहों के साथ (सुतम्) उत्पन्न हुए (सोमम्) ओषधि आदि पदार्थ को पाये हुए हम लोगों से जाने जाते हो, वह आप (नः) हमारी (पाहि) रक्षा कीजिये ॥६॥

    भावार्थ

    हे राजन् ! जितना पीने योग्य वस्तु अन्न और धन हम लोगों का आपने स्वीकार किया है, उससे अपनी और हम लोगों की रक्षा कीजिये ॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पवित्र सोम

    पदार्थ

    [१] (गिर्वणः) = हे [गीर्भि: वननीय] ज्ञानवाणियों से उपासना योग्य प्रभो ! (नः) = हमारे (सुतम्) = इस उत्पन्न हुए-हुए सोम को (पाहि) = हमारे शरीरों में ही रक्षित करिए। आप इस (मधो:) = जीवन को मधुर बनानेवाले सोम की धाराभिः = धारणशक्तियों से ही अज्यसे-जाये जाते हैं (अञ्जु गतौ), अर्थात् जब हम सोम का रक्षण कर पाते हैं, तभी आपको प्राप्त होनेवाले होते हैं । [२] हे इन्द्र हमारे सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो ! (यशः) = यश (इत्) = निश्चय से (त्वादातम्) = आपद्वारा ही शुद्ध किया जाता है [दैप् शोधने] । 'यशो वै सोमः' [श० ४।२।४।९] सोम ही यश है । प्रभु के उपासन से यह शुद्ध बना रहता है इसमें वासनाओं के कारण उबाल नहीं आता। तभी तो इसका रक्षण सम्भव होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु की उपासना से सोम पवित्र बना रहता है। यह पवित्र सोम हमें प्रभु की प्राप्ति करानेवाला होता है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ऐश्वर्यों का पालक इन्द्र, प्रभु, उसकी उपासना।

    भावार्थ

    हे (गिर्वणः) वाणियों द्वारा स्तवन और याचना, प्रार्थना करने योग्य ! तू (नः) हमारे (सुतं) उत्पादित ऐश्वर्यमय राष्ट्र की (पाहि) रक्षा कर। तू (मधोः) जलवत् ज्ञान की (धाराभिः) धाराओं से (अज्यसे) स्नान या अभिषेक कराया जाता है, उससे हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! (यशः) यह सब यश, बल, वीर्य और अन्नादि ऐश्वर्य (त्वादातम्) तुझ से ही सुशोभित, तेरे द्वारा स्वीकृत, सुरक्षित हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः–१–४, ६–९ गायत्री। ५ निचृद्गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजा! आमचे जितके खान-पान, धन स्वीकारलेले आहेस त्याने स्वतःचे व आमचे रक्षण कर. ॥ ६ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, lord of honour, excellence and majesty, honoured by songs of celebration, served and pleased with streams of sweet soma in homage, pray protect and promote our soma-yajna of life and endeavour. By you alone is acknowledged the honour, joy and value of life and karma.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject of attributes and duties of a ruler and subjects goes on.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O Indra (opulent king)! you are glorified and solicited with speech, with whatever health giving drinks and food and with the streams or funds of sweetness and you are approached by us. Always protect us.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O King the food, drink and wealth have been accepted by you from us. Protect with that yourself and us.

    Foot Notes

    (गिर्वणाः ] यो गोभिर्वन्यते तत्सम्बुद्धौ। = He who is solicited with words. (अज्यसे) प्राप्यसे = Thou art approached. (यश:) आरोग्यप्रदमुदकमन्नं धनं वा । यश इति उदकनाम (N.G. 1 / 12 )। यश इति अन्ननाम (N.G. 2,7) यश इति अन्नानाम (N.G. 2,10) = Water, food or wealth which leads to good health.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top