ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 41/ मन्त्र 1
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - यवमध्या गायत्री
स्वरः - षड्जः
आ तू न॑ इन्द्र म॒द्र्य॑ग्घुवा॒नः सोम॑पीतये। हरि॑भ्यां याह्यद्रिवः॥
स्वर सहित पद पाठआ । तु । नः॒ । इ॒न्द्र॒ । म॒द्र्य॑क् । हु॒वा॒नः । सोम॑ऽपीतये । हरि॑ऽभ्याम् । या॒हि॒ । अ॒द्रि॒ऽवः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ तू न इन्द्र मद्र्यग्घुवानः सोमपीतये। हरिभ्यां याह्यद्रिवः॥
स्वर रहित पद पाठआ। तु। नः। इन्द्र। मद्र्यक्। हुवानः। सोमऽपीतये। हरिऽभ्याम्। याहि। अद्रिऽवः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 41; मन्त्र » 1
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
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अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथाग्निविषयमाह।
अन्वयः
हे अद्रिव इन्द्र ! त्वं सोमपीतये मद्र्यग्घुवानो हरिभ्यां नोऽस्मानायाहि वयन्तु भवन्तमायाम ॥१॥
पदार्थः
(आ) समन्तात् (तु)। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (नः) अस्मान् (इन्द्र) ऐश्वर्य्यकारक (मद्र्यक्) मामञ्चतीति मद्र्यक् (हुवानः) आहूतः (सोमपीतये) सोमः पीतो यस्मिंस्तस्मै (हरिभ्याम्) अश्वाभ्याम् (याहि) (अद्रिवः) मेघवान् सूर्य्य इव वर्त्तमान ॥१॥
भावार्थः
मनुष्यैरुत्सवेषु परस्परेषामाह्वानं कृत्वाऽन्नपानादिभिः सत्कारः कर्त्तव्यः ॥१॥
हिन्दी (1)
विषय
अब नव ऋचावाले एकतालीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में अग्नि के विषय को कहते हैं।
पदार्थ
हे (अद्रिवः) मेघों से युक्त सूर्य्य के तुल्य वर्त्तमान (इन्द्र) ऐश्वर्य्य के करनेवाले ! आप (सोमपीतये) सोमलतारूप औषध का रस पीया जाय जिस कर्म में उसके लिये (मद्र्यक्) मेरी पूजा अर्थात् उपासना करनेवाला (हुवानः) पुकारा गया जन (हरिभ्याम्) घोड़ों से (नः) हम लोगों को (आ) सब प्रकार (याहि) प्राप्त हो और हम लोग (तु) शीघ्र आपको प्राप्त होवें ॥१॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि शुभ कार्य्य आदि के उत्सवों में परस्पर एक दूसरे का आह्वान करके अन्न और जल आदिकों से सत्कार करें ॥१॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात विद्वान माणसांचे गुणवर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.
भावार्थ
माणसांनी उत्सव इत्यादीमध्ये परस्परांना आमंत्रित करून अन्न व जल इत्यादींनी सत्कार करावा. ॥ १ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Come lord of clouds and mountains, Indra, illustrious as the sun, invoked and invited, come straight to us, wholly without reserve, come for a drink of soma by horses fast as wings of the winds.
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