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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 43 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 43/ मन्त्र 1
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    आ या॑ह्य॒र्वाङुप॑ वन्धुरे॒ष्ठास्तवेदनु॑ प्र॒दिवः॑ सोम॒पेय॑म्। प्रि॒या सखा॑या॒ वि मु॒चोप॑ ब॒र्हिस्त्वामि॒मे ह॑व्य॒वाहो॑ हवन्ते॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । या॒हि॒ । अ॒र्वाङ् । उप॑ । व॒न्धु॒रे॒ऽस्थाः । तव॑ । इत् । अनु॑ । प्र॒ऽदिवः॑ । सो॒म॒ऽपेय॑म् । प्रि॒या । सखा॑या । वि । मु॒च॒ । उप॑ । ब॒र्हिः । त्वाम् । इ॒मे । ह॒व्य॒ऽवाहः॑ । ह॒व॒न्ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ याह्यर्वाङुप वन्धुरेष्ठास्तवेदनु प्रदिवः सोमपेयम्। प्रिया सखाया वि मुचोप बर्हिस्त्वामिमे हव्यवाहो हवन्ते॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। याहि। अर्वाङ्। उप। वन्धुरेऽस्थाः। तव। इत्। अनु। प्रऽदिवः। सोमऽपेयम्। प्रिया। सखाया। वि। मुच। उप। बर्हिः। त्वाम्। इमे। हव्यऽवाहः। हवन्ते॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 43; मन्त्र » 1
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 7; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वद्विषयमाह।

    अन्वयः

    हे विद्वंस्त्वमर्वाङ् सन् यस्तव वन्धुरेष्ठा रथोऽस्ति तेन प्रदिवः सोमपेयमुपायाहि यौ प्रिया सखायाऽध्यापकोपदेशकौ तावुपायाहि। यद्बर्हिस्त्वामन्विमे तद्विमुच यान् हव्यवाह उपहवन्ते तैस्सहेद्दुःखं विमुच ॥१॥

    पदार्थः

    (आ) (याहि) आगच्छ (अर्वाङ्) अर्वाचीनः (उप) (वन्धुरेष्ठाः) यो वन्धुरे बन्धने तिष्ठति सः (तव) (इत्) एव (अनु) पश्चात् (प्रदिवः) प्रकृष्टो द्यौः प्रकाशो येषान्ते (सोमपेयम्) सोमश्चासौ पेयश्च तम् (प्रिया) प्रसन्नताकरौ (सखाया) सखायौ अध्यापकोपदेशकौ (वि) (मुच) त्यज (उप) समीपे (बर्हिः) अन्तरिक्षे (त्वाम्) (इमे) (हव्यवाहः) ये हव्यं वहन्ति ते (हवन्ते) गृह्णन्ति ॥१॥

    भावार्थः

    ये विद्याप्रकाशं प्राप्य विमानादीनि यानानि निर्माय तत्राऽग्न्यादिकं प्रयुज्यान्तरिक्षे गच्छन्ति ते प्रियाचारान् सखीन् प्राप्येव दारिद्र्यमुच्छिन्दन्ति ॥१॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    अब आठ ऋचावाले तैंतालीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों के विषय को कहते हैं।

    पदार्थ

    हे विद्वज्जन ! आप (अर्वाङ्) नीचे के स्थल में वर्त्तमान होकर जो (तव) आपके (वन्धुरेष्ठाः) बन्धन में वर्त्तमान रथ है उससे (प्रदिवः) उत्तम प्रकाशवाले (सोमपेयम्) पीने योग्य सोमलता के रस के (उप, आ, याहि) समीप आइये और जो (प्रिया) प्रसन्नता के करनेवाले (सखाया) मित्र अध्यापक और उपदेशक हैं उनके समीप प्राप्त हूजिये। जो (बर्हिः) अन्तरिक्ष में (त्वाम्) आपके (अनु) पीछे (इमे) ये हैं उनका (वि, मुच) त्याग कीजिये, जिनको (हव्यवाहः) हवन सामग्री धारण करनेवाले (उप, हवन्ते) ग्रहण करते हैं उनके साथ (इत्) ही दुःख का त्याग कीजिये ॥१॥

    भावार्थ

    जो लोग विद्या के प्रकाश को प्राप्त हो विमानादि वाहनों को निर्माण और उसमें अग्नि आदि का प्रयोग करके अन्तरिक्ष में जाते हैं, वे प्रिय आचरण करनेवाले मित्रों को प्राप्त होकर दारिद्र्य का नाश करते हैं ॥१॥

    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात विद्वान, सखी, सोमपान इत्यादींच्या गुणांचे वर्णन करण्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणावे.

    भावार्थ

    जे लोक विद्येमुळे विमान इत्यादी वाहने निर्माण करून त्यात अग्नी इत्यादीचा प्रयोग करतात व अंतरिक्षात जातात ते प्रिय मित्रांना प्राप्त करून दारिद्र्याचा नाश करतात. ॥ १ ॥

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, lord of honour and power, riding your chariot, come to us for a drink of soma, brilliant and exhilarating, distilled from the light of the sun. Leave your favourite horses behind. These yajakas bearing fragrant offers of homage invite you to the yajna vedi.

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