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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 43 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 43/ मन्त्र 8
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    शु॒नं हु॑वेम म॒घवा॑न॒मिन्द्र॑म॒स्मिन्भरे॒ नृत॑मं॒ वाज॑सातौ। शृ॒ण्वन्त॑मु॒ग्रमू॒तये॑ स॒मत्सु॒ घ्नन्तं॑ वृ॒त्राणि॑ सं॒जितं॒ धना॑नाम्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शु॒नम् । हु॒वे॒म॒ । म॒घवा॑नम् । इन्द्र॑म् । अ॒स्मिन् । भरे॑ । नृऽत॑मम् । वाज॑ऽसातौ । शृ॒ण्वन्त॑म् । उ॒ग्रम् । ऊ॒तये॑ । स॒मत्ऽसु॑ । घ्नन्त॑म् । वृ॒त्राणि॑ । स॒म्ऽजित॑म् । धना॑नाम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ। शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शुनम्। हुवेम। मघवानम्। इन्द्रम्। अस्मिन्। भरे। नृऽतमम्। वाजऽसातौ। शृण्वन्तम्। उग्रम्। ऊतये। समत्ऽसु। घ्नन्तम्। वृत्राणि। सम्ऽजितम्। धनानाम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 43; मन्त्र » 8
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 7; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यथाऽस्मिन् वाजसातौ भर ऊतये समत्सु घ्नन्तं धनानां सञ्जितं वृत्राणि शृण्वन्तमुग्रं मघवानं नृतममिन्द्रं प्राप्य शुनं हुवेम तथैतं प्राप्याऽऽनन्दं लभध्वम् ॥८॥

    पदार्थः

    (शुनम्) महौषधिसेवनजन्यं सुखम् (हुवेम) आदद्याम (मघवानम्) सकलविद्याजनितारम् (इन्द्रम्) अविद्यादिक्लेशविदर्त्तारम् (अस्मिन्) (भरे) देवासुरविद्वदविद्वत्सङ्ग्रामे (नृतमम्) अतिशयेन विद्यायाः प्रापकम् (वाजसातौ) ज्ञानाऽज्ञानयोर्विभागे (शृण्वन्तम्) सम्यक् परीक्षां कुर्वन्तम् (उग्रम्) उत्कृष्टस्वभावम् (ऊतये) विद्यादिशुभगुणप्रवेशाय (समत्सु) धार्मिकाऽधार्मिकविरोधाख्येषु युद्धेषु (घ्नन्तम्) विरोधं विनाशयन्तम् (वृत्राणि) धनानि (सञ्जितम्) जयशीलम् (धनानाम्) ऐश्वर्य्याणाम् ॥८॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्विद्वच्छरणं प्राप्याऽविद्यादारिद्र्ये हत्वा विद्याश्रियौ जनयित्वा सततमानन्दो वर्द्धनीय इति ॥८॥ अत्रेन्द्रविद्वत्सखिसोमपानादिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति त्रिचत्वारिंशत्तमं सूक्तं सप्तमो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे (अस्मिन्) इस (वाजसातौ) ज्ञान और अज्ञान के विभाग और (भरे) विद्वान् और अविद्वान् के संग्राम में (ऊतये) विद्या आदि उत्तम गुणों में प्रवेश होने के लिये (समत्सु) धार्मिक और अधार्मिकों के विरोध नामक युद्धों में (घ्नन्तम्) विरोध को नाश करते हुए (धनानाम्) ऐश्वर्य्यों के (सञ्जितम्) जीतने का स्वभाव रखनेवाले (वृत्राणि) धनों की (शृण्वन्तम्) उत्तम प्रकार परीक्षा करते हुए (उग्रम्) उत्तम स्वभावयुक्त (मघवानम्) संपूर्ण विद्याओं के उत्पन्न करने (नृतमम्) अतिशय करके विद्या के प्राप्त कराने और (इन्द्रम्) अविद्या आदि क्लेशों के नाश करनेवाले को प्राप्त होकर (शुनम्) महौषधियों के सेवन से उत्पन्न हुए सुख को (हुवेम) ग्रहण करें, वैसे इसको प्राप्त होकर आनन्द को प्राप्त हूजिये ॥८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों के शरण को पहुँच कर अविद्या और दारिद्र्य का नाश तथा विद्या और लक्ष्मी को उत्पन्न कर निरन्तर आनन्द बढ़ावें ॥८॥ इस सूक्त में विद्वान् सखि और सोमपानादिकों के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह तेंतालीसवाँ सूक्त और सातवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    मघवान् प्रभु को पुकारना

    पदार्थ

    मन्त्र व्याख्या ३.३०.२२ पर द्रष्टव्य है । सम्पूर्ण सूक्त सोमरक्षण के महत्त्व का ही प्रतिपादन कर रहा है। अगले सूक्त का भी विषय यही है -

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी विद्वानांना शरण जाऊन अविद्या व दारिद्र्याचा नाश करावा व विद्या आणि लक्ष्मी उत्पन्न करून निरंतर आनंद वाढवावा. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    We invoke, invite and call upon Indra, lord creator and giver of knowledge, best of the leaders of humanity, in this battle between the learned and the ignorant, for success in discrimination between knowledge of truth and ignorance, for initiation and completion of our search for knowledge and in our battles between the good and evil forces. We call upon Indra, destroyer of conflict, winner of wealth and knowledge, sympathetic listener and lustrous lord of judgement and discrimination, and above all commander of wealth, power and honour for the good of humanity.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject of friends and well wishers is continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! we enjoy happiness (like that by drinking the Soma/juice of the powerful herbs and drugs etc.) by approaching a highly learned person. He is giver of the knowledge of all sciences, destroyer of all miseries of ignorance etc., conveys wisdom to all being the best among leaders. In making distinction between knowledge and ignorance, the battle between the learned and ignorant persons, destroys all adversaries in the disputes between the righteous and un-righteous men. Such a man is conqueror of all wealth. listening to all attentively and then examining well. He is fierce to the wicked and man of exalted nature. We approach him for inculcating the virtues like knowledge and humility. You should also enjoy happiness by approaching such a noble and splendid person.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    It is the duty of men to seek blessings or shelter of the enlightened persons in order to eliminate ignorance and poverty, to generate knowledge and wealth and to increase constant bliss.

    Foot Notes

    (इन्द्रम् ) अविद्या दिक्लेशविदर्त्तारम् = The destroyer of the miseries (like ignorance, egotism, attachment, aversion and fear of death). (भरे ) देवासुरविद विद्वत्सङ्ग्रामे । भरे इति संग्रामनाम (NG 2, 17 ) = In the battle between good and bad, the learned and the ignorant. (वाजसातौ ) ज्ञानाज्ञानयोर्विभागे । वाजसातौ इति संग्राम नाम (NG 2, 17 ) = The discrimination between knowledge and ignorance. (वृत्राणि) धनानि । वृत्रमिति धननाम (NG 2,10) = Riches, wealth.

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