ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 46/ मन्त्र 2
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
म॒हाँ अ॑सि महिष॒ वृष्ण्ये॑भिर्धन॒स्पृदु॑ग्र॒ सह॑मानो अ॒न्यान्। एको॒ विश्व॑स्य॒ भुव॑नस्य॒ राजा॒ स यो॒धया॑ च क्ष॒यया॑ च॒ जना॑न्॥
स्वर सहित पद पाठम॒हान् । अ॒सि॒ । म॒हि॒ष॒ । वृष्ण्ये॑भिः । ध॒न॒ऽस्पृत् । उ॒ग्र॒ । सह॑मानः । अ॒न्यान् । एकः॑ । विश्व॑स्य । भुव॑नस्य । राजा॑ । सः । यो॒धया॑ । च॒ । क्ष॒यया॑ । च॒ । जना॑न् ॥
स्वर रहित मन्त्र
महाँ असि महिष वृष्ण्येभिर्धनस्पृदुग्र सहमानो अन्यान्। एको विश्वस्य भुवनस्य राजा स योधया च क्षयया च जनान्॥
स्वर रहित पद पाठमहान्। असि। महिष। वृष्ण्येभिः। धनऽस्पृत्। उग्र। सहमानः। अन्यान्। एकः। विश्वस्य। भुवनस्य। राजा। सः। योधया। च। क्षयया। च। जनान्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 46; मन्त्र » 2
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 10; मन्त्र » 2
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अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 10; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे महिषोग्र राजन् ! यतस्त्वं वृष्ण्येभिः सह महान् धनस्पृदेकोऽन्यान् सहमानो विश्वस्य भुवनस्य महान् राजासि स त्वं जनान् योधय च क्षयय शत्रून् पराजयं प्रापय सज्जनान् निवासय ॥२॥
पदार्थः
(महान्) महागुणविशिष्टः (असि) (महिष) पूजनीयतम (वृष्ण्येभिः) वृषेषु बलिष्ठेषु भवैर्गुणैः (धनस्पृत्) यो धनं स्पृणोति सेवते सः (उग्र) बलादियुक्त (सहमानः) (अन्यान्) शत्रून् (एकः) असहायः (विश्वस्य) समग्रस्य (भुवनस्य) भूताधिकरणस्य (राजा) प्रकाशमानः (सः) (योधय)। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (च) (क्षयय) क्षायय निवासय पराजयं प्रापय वा। अत्रापि संहितायामिति दीर्घः। (च) (जनान्) प्रसिद्धान् वीरान् ॥२॥
भावार्थः
ये शरीरात्मनोः पूर्णं बलं कृत्वा शत्रून् निवारयन्ति सज्जनान् सत्कृत्याऽऽनन्दन्ति ते महान्तो भवन्ति ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
हे (महिष) अत्यन्त आदर करने योग्य ! (उग्र) बल आदिकों से युक्त और (राजन्) प्रकाशित जिससे आप (वृष्ण्येभिः) बलवान् पुरुषों में उत्पन्न गुणों के साथ (महान्) श्रेष्ठ गुणों से युक्त और (धनस्पृत्) धन के सेवक (एकः) सहायरहित (अन्यान्) शत्रुओं को (सहमानः) सहते हुए (विश्वस्य) सम्पूर्ण (भुवनस्य) प्राणियों के निवास के स्थान के श्रेष्ठगुणों से युक्त (राजा) (असि) हैं (सः) वह आप (जनान्) प्रसिद्ध वीरों को (योधय) लड़ाइये शत्रुओं को (क्षयय) पराजय को पहुँचाइये (च) और सज्जनों को अपने देश में बसाइये ॥२॥
भावार्थ
जो लोग शरीर और आत्मा का पूर्ण बल करके शत्रुओं को निवारण करते और सज्जनों का सत्कार करके आनन्द देते हैं, वे श्रेष्ठ होते हैं ॥२॥
विषय
युद्ध द्वारा उत्तम निवास करानेवाले प्रभु
पदार्थ
[१] हे (महिष) = पूज्य प्रभो! आप (वृष्ण्येभिः) = शक्तियों से (अन्यान् सहमानः) = शत्रुओं का पराभव करते हुए (महान् असि) महान् हैं। (धनस्पृत्) = सब धनों के देनेवाले हैं [स्पृ=to grant] और (उग्रः) = तेजस्वी हैं। [२] आप (एकः) = अकेले ही (विश्वस्य भुवनस्य) = सारे ब्रह्माण्ड के व सब प्राणियों के राजा शासक व व्यवस्थापक हैं। (सः) = वे आप (जनान्) = शक्तियों का विकास करनेवाले इन भक्त लोगों को (योधया) = काम-क्रोध आदि शत्रुओं से युद्ध कराइये (च) = और शत्रुसंहार कराके (क्षयया) = उत्तम निवासवाला बनाइये [क्षि निवासे] । वस्तुतः प्रभु की शक्ति से शक्ति-सम्पन्न होकर ही हम शत्रुओं का विनाश कर पाते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु हमें वह शक्ति प्राप्त कराते हैं, जिससे कि हम काम-क्रोध आदि का विनाश करके उत्तम निवासवाले बनते हैं।
विषय
राजा के वीरोचित कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (महिष) महान् पूजनीय ! तू (धनस्पृत्) धनों, ऐश्वर्यों का सेवन करने वाला, हे (उग्र) बलवन् ! तू (वृष्ण्येभिः) बलवान् पुरुषों बलों और वीर्यो, पराक्रमों से (अन्यान् सहमानः) शत्रु जनों को पराजित करता हुआ (महान् असि) सबसे बड़ा होकर रह। (एकः) अकेला, अद्वितीय (विश्वस्य भुवनस्य राजा) समस्त भुवन,राष्ट्र का राजा हो। (सः) वह तू (जनान् योधय च) अपने मनुष्यों को शत्रुओं से और (क्षयय च) अपने राष्ट्र में बसा भी वा शत्रुओं का क्षय कर। (२) परमेश्वर पक्ष में—वह महान् है, महान् दानी होने से व्यापक एवं पूज्य होने से ‘महिष’ है। ऐश्वर्यवान् होने से ‘धनस्पृत्’ है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता॥ छन्द:-१ विराट् त्रिष्टुप्। २, ५ निचृत्त्रिष्टुप । ३, ४ त्रिष्टुप्। पञ्चर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक शरीर व आत्म्याचे बल पूर्ण करून शत्रूंचे निवारण करतात व सज्जनांचा सत्कार करून आनंद मिळवितात ते श्रेष्ठ असतात. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Great you are, adorable high, mighty winner of wealth with showers of generosity, fierce and potent, challenger and vanquisher of adversaries. You alone are the sole ruler of the world. Go, move the people, make them fight the adversities and settle them in peaceful homes.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of a ruler are stated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O adorable and mighty king ! you are great because of your virtues discernable only among the most powerful wealthy and magnificent persons. They overcome adversaries by your powers. You are radiant in the whole world. Therefore, urge upon your soldiers to fight with their foes by vanquishing them and give shelter (dwelling place) or rehabilitate to good men.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Having perfectly developed their physical and spiritual powers, those who keep their foes far away and make good men happy by honoring them, they become great.
Foot Notes
(महिष) पूजनीयतम । = The best among the adorable, the most respectable. (वृष्णयेभिः ) वृजेषु बलिष्ठेषु भवैगुर्णैः वृष-शक्ति प्रतिबन्धे (चुरा० ) । = On account of the virtues to be found among the mightiest persons. (क्षयय) क्षायय निवासय पराजयं प्रापय वा । अत्रापि संहितायामिति दीर्घः । = Give shelter to good men and destroy the wicked.
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