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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 5/ मन्त्र 2
    ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    प्रेद्व॒ग्निर्वा॑वृधे॒ स्तोमे॑भिर्गी॒र्भिः स्तो॑तॄ॒णां न॑म॒स्य॑ उ॒क्थैः। पू॒र्वीर्ऋ॒तस्य॑ सं॒दृश॑श्चका॒नः सं दू॒तो अ॑द्यौदु॒षसो॑ विरो॒के॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । इत् । ऊँ॒ इति॑ । अ॒ग्निः । व॒वृ॒धे॒ । स्तोमे॑भिः । गीः॒ऽभिः । स्तो॒तॄ॒णाम् । न॒म॒स्यः॑ । उ॒क्थैः । पू॒र्वीः । ऋ॒तस्य॑ । स॒म्ऽदृशः॑ । च॒का॒नः । सम् । दू॒तः । अ॒द्यौ॒त् । उ॒षसः॑ । वि॒ऽरो॒के ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रेद्वग्निर्वावृधे स्तोमेभिर्गीर्भिः स्तोतॄणां नमस्य उक्थैः। पूर्वीर्ऋतस्य संदृशश्चकानः सं दूतो अद्यौदुषसो विरोके॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। इत्। ऊँ इति। अग्निः। ववृधे। स्तोमेभिः। गीःऽभिः। स्तोतॄणाम्। नमस्यः। उक्थैः। पूर्वीः। ऋतस्य। सम्ऽदृशः। चकानः। सम्। दूतः। अद्यौत्। उषसः। विऽरोके॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
    अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 24; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    यथा दूतोऽग्निरिन्धनैः प्रववृधे तथा स्तोतॄणां स्तोमेभिर्गीर्भिरुक्थैर्नमस्यो वर्धते यथाग्निर्विरोके उषसोऽद्यौत्तथा संदृश ऋतस्य पूर्वीश्चकानो इदु विद्वान् संद्योतयति ॥२॥

    पदार्थः

    (प्र) प्रकृष्टे (इत्) एव (उ) वितर्के (अग्निः) पावकः (ववृधे) वर्धते (स्तोमेभिः) स्तुवन्ति सकला विद्या यैस्तैः (गीर्भिः) सुशिक्षिताभिर्वाग्भिः (स्तोतॄणाम्) अखिलविद्याप्रशंसकानाम् (नमस्यः) पूज्यः (उक्थैः) उचन्ति सर्वा विद्या येषु तैः (पूर्वीः) पूर्णा बह्व्यो विद्याः (ऋतस्य) सत्यस्य (संदृशः) सम्यग्द्रष्टुं योग्यस्य (चकानः) कामयमानः (सम्) सम्यक् (दूतः) यो दुनोति परितापयति सः (अद्यौत्) द्योतयति (उषसः) प्रभातान् (विरोके) अभिप्रीते प्रदीपने वा ॥२॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथेन्धनघृतादिना वह्निः प्रवृध्य प्रकाशयति तथा ब्रह्मचर्य्यविद्याभ्यासादिभिर्मनुष्याणा-मात्मानो ज्ञानविद्धा भूत्वा सनातनीविद्याः सर्वेभ्यो दत्वा पूज्यतमा जायन्ते ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    जैसे (दूतः) परिताप देनेवाला (अग्निः) अग्नि इन्धनों से (प्र, ववृधे) अच्छे प्रकार बढ़ता है वैसे (स्तोतॄणाम्) समस्त विद्या प्रशंसा करनेवालों के (स्तोमेभिः) उन व्यवहारों से जिनसे सब विद्याओं की स्तुति करते हैं (गीर्भिः) तथा सुशिक्षित वाणियों से (उक्थैः) और सब विद्याओं का सम्बन्ध जिनमें करते हैं उन व्यवहारों से (नमस्यः) जो सत्कार करने योग्य है वह बढ़ता है जैसे अग्नि (विरोके) सब ओर से जिनमें प्रीति है उस व्यवहार के वा प्रकाश के निमित्त (उषसः) प्रभात समयों को (अद्यौत्) प्रकाशित करता है वैसे (संदृशः) अच्छे प्रकार देखने को (ऋतस्य) सत्यसम्बन्धी (पूर्वीः) पूर्ण बहुत विद्या की (चकानः) कामना करता हुआ (इत्, उ) ही तर्क-वितर्क के साथ विद्वान् (सम्) अच्छे प्रकार प्रकाशित होता है ॥२॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे इन्धन और घृतादिकों से अग्नि प्रवृद्ध हो कर प्रकाशित होता, वैसे ब्रह्मचर्य और विद्याभ्यासादिकों से मनुष्यों के आत्मा ज्ञानवृद्ध हो कर सनातन विद्या सबको देकर पूज्यतम होते हैं ॥२॥

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    विषय

    प्रभुदर्शन के साधन–'स्तवन व स्वाध्याय'

    पदार्थ

    [१] (अग्निः) = वह अग्रणी प्रभु (स्तोमेभिः) = स्तुतियों द्वारा तथा (गीर्भिः) = ज्ञानवाणियों द्वारा (इत् उ) = निश्चय से (प्रवावृधे) = बढ़ता है, अर्थात् स्तुतियों व ज्ञानवाणियों द्वारा हम प्रभु के अधिकाधिक समीप होते हैं। वे प्रभु (स्तोतॄणाम्) = स्तोताओं के (उक्थैः) = स्तोत्रों से (नमस्य:) = पूजा योग्य हैं । [२] प्रभु पूजित होने पर (पूर्वी:) = पालन व पूरण करनेवाली (ऋतस्य) = ऋत की, जो ठीक है उसकी अथवा यज्ञ की (संदृशः) = दृष्टियों को (चकानः) = चाहता है व दीप्त करता है। हम प्रभु का पूजन करते हैं, प्रभु हमें ऋत का मार्ग दिखलाते हैं। यही प्रभु का सर्वमहान् अनुग्रह है। [३] (दूत:) = ये ज्ञान का सन्देश देनेवाले प्रभु (उषसः विरोके) = उषाकाल प्रकाशित होने पर (समद्यौत्) = हमारे हृदयों में दीप्त होते हैं। उषाकाल में हम प्रभु का ध्यान करें, तो उस समय एकाग्रता के कारण हम प्रभु के सन्देश को सुन पाते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभुपूजन के लिये स्तवन व स्वाध्याय साधन हैं। ये प्रभु हमें ऋत का मार्ग दिखाते हैं। उषाकाल पूजा का सर्वोत्तम काल है।

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    विषय

    पक्षान्तर में परमेश्वर का वर्णन अग्रणी नायक का वर्णन।

    भावार्थ

    (अग्निः स्तोमेभिः प्र वावृधे) जिस प्रकार भौतिक अग्नि काष्ठसमूहों से बहुत बढ़ता है उसी प्रकार (अग्निः) ज्ञानवान् पुरुष (स्तोमेभिः) विद्याओं का उपदेश करने वाले वेद के सूक्तों, (गीर्भिः) उत्तम वेद वाणियों से (प्र वावृधे) खूब अच्छी प्रकार बढ़ता है। और (स्तोतृणां) उत्तम विद्याओं को उत्तम उपदेष्टाओं के बीच में भी (उक्थैः) उत्तम वचनों से (नमस्यः) आदर करने योग्य होता है। वह (ऋतस्य) सत्य ज्ञान को (संदृशः) अच्छी प्रकार दिखलाने वाली (पूर्वीः) अपने से पूर्व के विद्वानों से उपदेश की गई, विद्याओं से पूर्ण, एवं सनातन से चली आईं वेद वाणियों या ज्ञान वाणियों को (चकानः) अभ्यास करना चाहता हुआ, (विरोके) विविध और विशेष रुचि के अनुसार स्वयं (दूतः) सेवा किया जाकर जिस प्रकार सूर्य (विरोके) विशेष प्रकाश से दीप्ति होकर (उषसः सम् अद्यौत्) उषा कालों को चमकाता है उसी प्रकार (उषसः) कामनाशील शिष्यजनों को (सम् अद्यौत्) अच्छी प्रकार प्रकाशित करता है। (२) परमेश्वर वह (अग्निः) ज्ञानमय सर्वप्रकाशक परमेश्वर वेद वाणियों, स्तुति वचनों द्वारा महान् है। वह स्तुति कर्मों के वचनों से स्तुत्य है। ज्ञानदर्शक सनातन वेद वाणियों को प्रकाशित करता हुआ वह पूज्य उपासित होकर प्रभातों को सूर्य के समान प्रकाशित करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः– १, २, ११ भुरिक् पंक्तिः। ३ पंक्तिः। ६ स्वराट् पंक्तिः। ४ त्रिष्टुप् । ५, ७, १० निचृत् त्रिष्टुप्। ८,९ विराट् त्रिष्टुप्॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे इंधन व घृत इत्यादींनी अग्नी प्रवृद्ध होऊन प्रकाशित होतो तसे ब्रह्मचर्य व विद्याभ्यासाने माणसांचे आत्मज्ञान वर्धित होऊन ते सर्वांना सनातन विद्या देऊन पूजनीय ठरतात. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Just as the adorable Agni grows in heat, light and power by the chant of songs and celebration of the devotees and then this harbinger of light adorns the morning with the bright and beautiful light of the dawn, so does the sagely scholar, dedicated to the light of eternal truth, shine in the lovely light of Revelation as the messenger of light and life divine for the people.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    More about the learned persons.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    The all burning fire magnified by the wood sticks and fuel, in the same manner an adorable person grows or progresses by the study of the hymns sung by the admirers (students) of all sciences by the way of ideal sermons and mantras denoting many kinds of knowledge. As the fire shines forth which at the glimmering of the dawn, so a learned leader, seeker of truth who is worthy of perceiving well, and perfect in sciences, illuminates all learned persons.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the fire illuminates all, magnified by the fuel and the ghee (clarified butter) etc., so those who kindle the souls of men by Brahmacharya and by acquiring of knowledge and impart knowledge of eternal sciences to the men, they became worthy of the highest reverence.

    Foot Notes

    (चकान:) कामयानः । चकमान:= कान्तिकर्मा (N.G. 2, 6) = Desiring. (दूतः) यो दुनोति परितापयति सः । = Fire which creates heat and burns. (पूर्वी:) पूर्णा वह्न यो विद्या: = Many perfect sciences. (विरोके ) अभिप्रीते प्रदीपने वा। = Possessing all-round happiness.

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