ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 51/ मन्त्र 10
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - यवमध्यागायत्री
स्वरः - षड्जः
इ॒दं ह्यन्वोज॑सा सु॒तं रा॑धानां पते। पिबा॒ त्व१॒॑स्य गि॑र्वणः॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम् । हि । अनु॑ । ओज॑सा । सु॒तम् । रा॒धा॒ना॒म् । प॒ते॒ । पिब॑ । तु । अ॒स्य । गि॒र्व॒णः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते। पिबा त्व१स्य गिर्वणः॥
स्वर रहित पद पाठइदम्। हि। अनु। ओजसा। सुतम्। राधानाम्। पते। पिब। तु। अस्य। गिर्वणः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 51; मन्त्र » 10
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे गिर्वणो राधानां पते त्वमोजसाऽस्येदं सुतं तु पिब हि अनु पिपासयेदं पिब ॥१०॥
पदार्थः
(इदम्) (हि) खलु (अनु) (ओजसा) बलेन (सुतम्) साधितम् (राधानाम्) धनानाम् (पते) पालक (पिब)। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (तु) (अस्य) (गिर्वणः) यो गीर्यते याच्यते तत्सम्बुद्धौ ॥१०॥
भावार्थः
हे राजँस्त्वं हि सदैव धनैश्वर्य्यं रक्षित्वा प्राप्तं राज्यमन्वेक्षणेन वर्द्धयित्वा सुखी भव ॥१०॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
हे (गिर्वणः) प्रार्थित हुए (राधानाम्) धनों के (पते) पालन करनेवाले ! आप (ओजसा) बल से (अस्य) इसके (इदम्) इस (सुतम्) सिद्ध किये गये सोमलतारूप रस का (पिब) पान कीजिये (हि) निश्चय से और पान करने की इच्छा से इस सोमलता का पान करो ॥१०॥
भावार्थ
हे राजन् ! आप निश्चय सब काल में धन और ऐश्वर्य की रक्षा करके और जो प्राप्त राज्य उसकी देखभाल से वृद्धि करके सुखी होइये ॥१०॥
विषय
सोमरक्षण का साधन व फल
पदार्थ
[१] हे (राधानां पते) = सब सफलताओं के स्वामिन् प्रभो! (इदं) = यह सोम (हि) निश्चय से (ओजसा) = ओजस्विता के हेतु से (अनुसुतम्) = दिन-प्रतिदिन उत्पन्न किया गया है । हे (गिर्वणः) = स्तुति वाणियों द्वारा स्तवनीय प्रभो! आप (अस्य पिबातु) = इसका अवश्य पान करिए। [२] 'गिर्वणः' शब्द सोमपान के साधन का संकेत कर रहा है। मैं इन ज्ञान-वाणियों से प्रभु का स्तवन करता हूँ और सोम का रक्षण कर पाता हूँ। 'राधानां पते' यह सम्बोधन सोमपान के फल का संकेत करता है कि सोमरक्षण से सदा सफलता प्राप्त होगी।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु- स्तवन द्वारा मैं सोम का रक्षण करूँ और सोमरक्षण से सब कार्यों में सफलता प्राप्त करूँ ।
विषय
धनपति इन्द्र के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (गिर्वणः) उत्तम वाणियों द्वारा याचना, प्रार्थना और स्तुति करने योग्य ! हे ( राधानां पते) धनों के स्वामिन् ! तू (अस्य) इस राष्ट्र के (इदं) इस (सुतं) उत्पन्न ऐश्वर्य और प्रजाजन को (ओजसा) अपने बल पराक्रम से (पिब तु) ओषधि रस के समान उपभोग कर या पुत्र के समान अवश्य पालन किया कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः–४,७-९ त्रिष्टुप्। ५, ६ निचृत्त्रिष्टुप। १-३ निचृज्जगती। १०,११ यवमध्या गायत्री। १२ विराडगायत्री॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे राजा! तू निश्चयपूर्वक नेहमी धन व ऐश्वर्याचे रक्षण करून राज्याची देखभाल करून त्याला उन्नत करून सुखी हो. ॥ १० ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O lord and ruler of wealth, power and potential, drink the exciting soma of this generous yajamana, elaborately distilled with vigour and splendour and offered with the voice of homage and reverence.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of duties of the rulers is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O King! you are lord of the wealth (of all kings). You are to be praised and requested in good words. Enjoy this wealth acquired with great strength and drink thus Soma juice when feel thirsty.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O king! you should always enjoy happiness by protecting wealth and prosperity and by developing your kingdom under the constant vigilance.
Foot Notes
(राधानाम् ) धनानाम | राध इति धननाम (NG 2, 10) = Of wealth of all kinds. (ओजसा ) बलेन । ओज इति बलनाम (NG 2, 9) = With strength.
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