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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 53 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 53/ मन्त्र 13
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    वि॒श्वामि॑त्रा अरासत॒ ब्रह्मेन्द्रा॑य व॒ज्रिणे॑। कर॒दिन्नः॑ सु॒राध॑सः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒श्वामि॑त्राः । अ॒रा॒स॒त॒ । ब्रह्म॑ । इन्द्रा॑य । व॒ज्रिणे॑ । कर॑त् । इत् । नः॒ । सु॒ऽराध॑सः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वामित्रा अरासत ब्रह्मेन्द्राय वज्रिणे। करदिन्नः सुराधसः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वामित्राः। अरासत। ब्रह्म। इन्द्राय। वज्रिणे। करत्। इत्। नः। सुऽराधसः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 53; मन्त्र » 13
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ प्रजाविषयमाह।

    अन्वयः

    हे विश्वामित्रा ! भवन्तो यो नः सुराधसः करत्तस्मै इद्वज्रिण इन्द्राय ब्रह्मारासत ॥१३॥

    पदार्थः

    (विश्वामित्राः) सर्वस्य सुहृदः (अरासत) रासन्ताम् (ब्रह्म) धनम् (इन्द्राय) राज्ञे (वज्रिणे) धनुर्वेदविदे (करत्) कुर्य्यात् (इत्) एव (नः) अस्मान् (सुराधसः) उत्तमधनयुक्तान् ॥१३॥

    भावार्थः

    यो राजा सर्वाः प्रजाः सुखसम्पन्नाः कुर्य्यात्तमेव प्रजाः परमैश्वर्य्ययुक्तं कुर्य्युः ॥१३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब प्रजा के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे (विश्वामित्राः) सबके मित्रो ! आप लोग जो (नः) हम लोगों को (सुराधसः) उत्तम धन से युक्त (करत्) करे उस (इत्) ही (वज्रिणे) धनुर्वेद के जाननेवाले (इन्द्राय) राजा के लिये (ब्रह्म) धन की (अरासत) वृद्धि करें ॥१३॥

    भावार्थ

    जो राजा संपूर्ण प्रजाओं को सुखयुक्त करे, उस ही को प्रजा अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त करें ॥१३॥

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    विषय

    'वज्री इन्द्र' का स्तवन

    पदार्थ

    [१] प्रभु विश्वामित्र हैं। प्रभु की उपासना से उपासक भी विश्वामित्र बनता है। ये (विश्वामित्राः) = सभी के साथ स्नेह करनेवाले पुरुष उस (वज्रिणे इन्द्राय) = (वज्रहस्त) = सब शत्रुओं के विद्रावक प्रभु के लिए ब्रह्म स्तोत्र को (अरासत) = उच्चरित करते हैं। प्रभु का स्तवन करते हुए ये भी 'वज्री व इन्द्र' बनते हैं। [२] ये विश्वामित्र (नः) = हमें भी अपने ज्ञानोपदेशों से (इत्) = निश्चयपूर्वक (सुराधसः) = उत्तम सफलतावाला (करत्) = करें ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम विश्वामित्र बनकर प्रभुस्तवन करें व औरों को भी ज्ञानोपदेश दें। ऋषिः – विश्वामित्रः ॥ देवता – इन्द्रः ॥ छन्दः - त्रिष्टुप् ॥ स्वरः - धैवतः ॥

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    विषय

    उत्तम राजा।

    भावार्थ

    (विश्वामित्राः) सबके मित्र लोग (वज्रिणे) बलवान् (इन्द्राय) ऐश्वर्यवान् पुरुष के (ब्रह्म) बड़े भारी धनैश्वर्य के विषय में (अरासत) स्तुति करते हैं। वह (नः) हमें (सुराधसः) उत्तम धनैश्वर्य से सम्पन्न (करद्) करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ १ इन्द्रापर्वतौ। २–१४, २१-२४ इन्द्रः। १५, १६ वाक्। १७—२० रथाङ्गानि देवताः॥ छन्दः- १, ५,९, २१ निचृत्त्रिष्टुप्। २, ६, ७, १४, १७, १९, २३, २४ त्रिष्टुप्। ३, ४, ८, १५ स्वराट् त्रिष्टुप्। ११ भुरिक् त्रिष्टुप्। १२,२२ अनुष्टुप्। २० भुरिगनुष्टुप्। १०,१६ निचृज्जगती। १३ निचृद्गायत्री। १८ निचृद् बृहती॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो राजा संपूर्ण प्रजेला सुखी करतो त्यालाच प्रजेने ऐश्वर्ययुक्त बनवावे. ॥ १३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Friends of the world, sing songs of exaltation and gratitude for Indra, lord of thunderous arm and power who blesses us with wealth and all round potential for success.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of a king and his relation and his subjects are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O friends of all ! you should give wealth (in the form of the taxes etc.) to that Indra (king) who makes us all endowed with good wealth, and who knows Dhanurveda or the science of archery (weaponry)

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The people should give wealth (in the form of taxes etc.) only to that king who makes them happy by all means at his disposal.

    Foot Notes

    (अरासत) रासन्ताम् । रासति दानकर्मा (NG 3, 20) = Give away. (सुराधसः) उत्तमधनयुक्तान् = Endowed with good wealth.

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