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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 6/ मन्त्र 2
    ऋषि: - गाथिनो विश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आ रोद॑सी अपृणा॒ जाय॑मान उ॒त प्र रि॑क्था॒ अध॒ नु प्र॑यज्यो। दि॒वश्चि॑दग्ने महि॒ना पृ॑थि॒व्या व॒च्यन्तां॑ ते॒ वह्न॑यः स॒प्तजि॑ह्वाः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । रोद॑सी॒ इति॑ । अ॒पृ॒णाः॒ । जाय॑मानः । उ॒त । प्र । रि॒क्थाः॒ । अध॑ । नु । प्र॒य॒ज्यो॒ इति॑ प्रऽयज्यो । दे॒वः । चि॒त् । अ॒ग्ने॒ । म॒हि॒ना । पृ॒थि॒व्याः । व॒च्यन्ता॑म् । ते॒ । वह्न॑यः । स॒प्तऽजि॑ह्वाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ रोदसी अपृणा जायमान उत प्र रिक्था अध नु प्रयज्यो। दिवश्चिदग्ने महिना पृथिव्या वच्यन्तां ते वह्नयः सप्तजिह्वाः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। रोदसी इति। अपृणाः। जायमानः। उत। प्र। रिक्थाः। अध। नु। प्रयज्यो इति प्रऽयज्यो। देवः। चित्। अग्ने। महिना। पृथिव्याः। वच्यन्ताम्। ते। वह्नयः। सप्तऽजिह्वाः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
    अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 26; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे प्रयज्योऽग्ने दिवः पृथिव्या महिना सप्तजिह्वा वह्नयस्त्वया वच्यन्तां स त्वं जायमानः सन् रोदसी अपृणाः। उता प्ररिक्थाः अध ते चिन्नु सुखं भवेत् ॥२॥

    पदार्थः

    (आ) समन्तात् (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (अपृणाः) पिपर्ति (जायमानः) उत्पद्यमानः (उत्) अपि (प्र) (रिक्थाः) अतिरिणक्षि। अत्र वाच्छन्दसीति विकरणाभावः। (अध) अथ (नु) सद्यः (प्रयज्यो) यः प्रयजति तत्सम्बुद्धौ (दिवः) प्रकाशस्य (चित्) अपि (अग्ने) वह्निवद्विद्वन् (महिना) महिम्ना (पृथिव्याः) भूमेः (वच्यन्ताम्) उच्यन्ताम् (ते) तव (वह्नयः) वोढारः (सप्तजिह्वाः) काल्यादयः सप्त जिह्वा इव ज्वाला येषान्ते ॥२॥

    भावार्थः

    यथा सूर्य्यपृथिव्योरग्नेश्च महिमा वर्त्तते तथा योऽग्निविद्यां भूगर्भविद्यां च जानाति स सततं सुखी भवेत् ॥। २॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (प्रयज्यो) उत्तम यज्ञ करनेवाले (अग्ने) अग्नि के समान विद्वान् ! (दिवः) प्रकाश और (पृथिव्याः) भूमि के (महिना) महत्त्व से (सप्तजिह्वाः) काली आदि सात जिह्वा ज्वालावाले (वह्नयः) पदार्थ को देशान्तर में पहुँचानेवाले अग्नि तुम्हें (वच्यन्ताम्) कहने चाहिये और सो आप (जायमानः) उत्पन्न होते हुए (रोदसी) आकाश और पृथिवी को (अपृणाः) परिपूर्ण कीजिये (उत) और (आ, प्र, रिक्थाः) दोषों को सब ओर से अच्छे प्रकार दूर कीजिये (अध) इसके अनन्तर (ते) आपको (चित्) (तु) शीघ्र निश्चय करके सुख हो ॥२॥

    भावार्थ

    जैसे सूर्य, पृथिवी और अग्नि की महिमा वर्त्तमान है, वैसे जो अग्निविद्या और भूगर्भविद्या को जानता है, वह निरन्तर सुखी हो ॥२॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा सूर्य, पृथ्वी व अग्नीचा महिमा असतो तसे जो अग्निविद्या व भूगर्भविद्या जाणतो तो निरंतर सुखी होतो. ॥ २ ॥

    English (1)

    Meaning

    O fire of cosmic yajna rising from the vedi, fill the heaven and earth with fragrance, fertility and prosperity. O yajaka, eliminate the weaknesses, exhaust the possibilities of excellence, and then retire and call it a day. And with the glory of heaven and majesty of the earth, the seven flames of fire with tongues of gold would speak for you in words loud and bold ringing across the spaces.

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