Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 6 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 6/ मन्त्र 7
    ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    दि॒वश्चि॒दा ते॑ रुचयन्त रो॒का उ॒षो वि॑भा॒तीरनु॑ भासि पू॒र्वीः। अ॒पो यद॑ग्न उ॒शध॒ग्वने॑षु॒ होतु॑र्म॒न्द्रस्य॑ प॒नय॑न्त दे॒वाः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दि॒वः । चि॒त् । आ । ते॒ । रु॒च॒य॒न्त॒ । रो॒काः । उ॒षः । वि॒ऽभा॒तीः । अनु॑ । भा॒सि॒ । पू॒र्वीः । अ॒पः । यत् । अ॒ग्ने॒ । उ॒शध॑क् । वने॑षु । होतुः॑ । म॒न्द्रस्य॑ । प॒नय॑न्त । दे॒वाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दिवश्चिदा ते रुचयन्त रोका उषो विभातीरनु भासि पूर्वीः। अपो यदग्न उशधग्वनेषु होतुर्मन्द्रस्य पनयन्त देवाः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दिवः। चित्। आ। ते। रुचयन्त। रोकाः। उषः। विऽभातीः। अनु। भासि। पूर्वीः। अपः। यत्। अग्ने। उशधक्। वनेषु। होतुः। मन्द्रस्य। पनयन्त। देवाः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 6; मन्त्र » 7
    अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे अग्ने विद्वन् ! दिवश्चित्ते रोका आ रुचयन्त यथा सूर्यः पूर्वीर्विभातीरुषः प्रकाशयत्यपो वर्षयति तथा यद्यस्त्वं विद्यामनुभासि तस्य मन्द्रस्य तव होतुर्गुणान् यथा वनेषूशधगग्निर्वर्त्तते तथा देवाः पनयन्त ॥७॥

    पदार्थः

    (दिवः) प्रकाशात् (चित्) इव (आ) (ते) तव (रुचयन्त) रुचिमाचक्षते (रोकाः) रुचिकराः प्रकाशाः (उषः) उषसः (विभातीः) विशेषेण प्रकाशयन्तीः (अनु) (भासि) प्रकाशयसि (पूर्वीः) प्राचीनाः (अपः) जलानि (यत्) यः (अग्ने) विद्वन् (उशधक्) उशः कमनीयान्दहति येन सः (वनेषु) जङ्गलेषु (होतुः) दातुः (मन्द्रस्य) आनन्दप्रदस्य (पनयन्त) प्रशंसत (देवाः) विद्वांसः ॥७॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्याः सूर्य्यवत् प्रकाशका दुष्टानां दग्धारः श्रेष्ठानां स्तावका भवन्ति ते विद्युद्वत्कार्यसाधका भवन्ति ॥७॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (अग्ने) विद्वान् ! (दिवः) प्रकाश से लेकर (चित्) ही (ते) आपके (रोकाः) रुचि करनेवाले प्रकाश (आ, रुचयन्त) अच्छे प्रकार रुचते हैं जैसे सूर्य (पूर्वीः) प्राचीन (विभातीः) और विशेषता से प्रकाश होती हुई (उषः) प्रभातवेलाओं को प्रकाशित करता वा (अपः) जलों को वर्षाता है (यत्) जो आप विद्या के (अनुभासि) अनुकूलता से प्रकाशित होते हो उन (मन्द्रस्य) आनन्द देनेवाले (होतुः) दानशील (तव) आपके गुणों के जैसे (वनेषु) जंगलों में (उशधक्) मनोहर पदार्थों को जिससे जलाता वह अग्नि वर्त्तमान है वैसे (देवाः) विद्वान् जन (पनयन्त) प्रशंसित करो ॥७॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य सूर्य के समान प्रकाश कराने, दुष्टों को जलाने और श्रेष्ठों की स्तुति प्रशंसा करनेवाले होते हैं, वे बिजुली के समान कार्य के सिद्ध करनेवाले होते हैं ॥७॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    तस्य भासा सर्वमिदं विभाति

    पदार्थ

    [१] हे (अग्ने) परमात्मन् ! (ते रोका:) = तेरी दीप्तियाँ (दिवः चित्) = सूर्य से भी अधिक रुचयन्त चमकती हैं। 'दिवि सूर्यसहस्रस्य ० ' इन शब्दों में प्रभु की दीप्ति को हजारों सूर्यों की दीप्ति से भी अधिक ही कहा है। आप ही (विभाती:) = चमकती हुई (पूर्वी:) = इन पालन व पूरण करनेवाली (उष:) = उषाओं को (अनुभासि) = दीप्त करते हैं, अथवा इन उषाकालों में प्रभु का प्रकाश प्राप्त होता है। [२] हे अग्ने ! (यत्) = जब (वनेषु) = इन उपासकों में आप (अपः) = इन रेतः कणरूप जलों की (उशधक्) = कामना करते हैं चाहते हैं और जला देते हैं तब (देवा:) = ये देववृत्ति के लोग (होतु:) = सब कुछ देनेवाले (मन्द्रस्य) = आनन्दमय व स्तुत्य आपका (पनयन्त) = स्तवन करते हैं। 'रेत:कणों का उत्पन्न होना और उनका ज्ञानाग्नि का ईंधन बनना' यह प्रभुकृपा से ही होता है। जब ये रेतः कण विनष्ट न होकर शरीर में ही व्ययित होते हैं तो उस समय हमारी वृत्ति देववृत्ति बनती है। हम तब प्रभु का शंसन करनेवाले होते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ –'क्या सूर्य, क्या उषा' ये सब प्रभु की दीप्ति से दीत हैं। मानवहृदय को भी प्रभु ही दीप्त करते हैं। इसके लिये वे रेतः कणों को ज्ञानाग्नि का ईंधन बनाते हैं ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    विद्वान् का कर्तव्य।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) ज्ञानशील विद्वन् ! हे नायक ! (दिवः रोकाः चित्) सूर्य के प्रकाशों के समान (ते रोकाः) तेरे प्रकाश, तेरी रुचियें, कामनाएं (रुचयन्त) सबको अच्छी प्रतीत हों। सूर्य जिस प्रकार (विभातीः) विशेष रूप से चमकने वाली (पूर्वीः) अपने से पूर्व प्राप्त (उषः) उषाकालों के अनन्तर (अनुभाति) स्वयं प्रकाशित होता है उसी प्रकार हे विद्वन् ! तू भी (पूर्वीः) प्राचीन काल से प्राप्त, (विभातीः) विविध ज्ञानों का प्रकाश करने वाली (उषः) पापों का दाह करने वाली वेद वाणियों को (अनु भासि) प्राप्त करके सुशोभित हो। (यत् अपः अनुभाति) जिस प्रकार सूर्य या विद्युत् जलों को चमकाती है उसी प्रकार है विद्वन् ! तू भी (अपः) सत्कर्म करके (अनुभासि) प्रकाशित हो। (वनेषु उशधक्) जंगलों में जिस प्रकार अग्नि कमनीय हरे वृक्षों को भी जला देता है उसी प्रकार हे विद्वन् ! तु भी (वनेषु उशधक्) सेवन करने योग्य विषयों में कामना योग्य वासना को भस्म करने हारा हो। ऐसे (होतुः) ज्ञानप्रद, उत्तम पदार्थों के स्वीकर्ता, त्यागी (मन्द्रस्य) स्तुत्य, सबके हर्षजनक पुरुष के (अपः) कर्म की (देवाः) विद्वान् लोग सभी (पनयन्त) स्तुति करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः– १, ५ विराट् त्रिष्टुप। २, ७ त्रिष्टुप्। ३, ४, ८ निचृत् त्रिष्टुप्। १० भुरिक् त्रिष्टुप् । ६, ११ भुरिक् पङ्क्तिः। ९ स्वराट् पङ्क्तिः॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे सूर्याप्रमाणे प्रकाश करविणारी, दुष्टांना जाळणारी, श्रेष्ठांची स्तुती, प्रशंसा करणारी असतात ती विद्युतप्रमाणे कार्य सिद्ध करणारी असतात. ॥ ७ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Bright and blissful are your lights of heaven. You shine in the radiance of the eternal dawns of the morning. And as you blaze upon the forests with might and splendour and the vapours arise in steamy fragrance, divinities burst into song in praise of the cosmic sacrificer beaming with joy.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The theme of enlightened persons still continues.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned leader ! your splendor shines and spreads everywhere. The sun illuminates the resplendent ancient dawn and rains down the water. Moreover, there is fire in the forests burning many articles. Same way, the enlightened truthful persons praise you in abundance, when you shine after acquiring knowledge and wisdom, are liberal donor and bestower of Bliss.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those persons who are illuminators like the sun, destroyers of the wicked like the fire, and admirers of the righteous men, they become accomplishers of all good works like electricity.

    Foot Notes

    (रोकाः) रुचिकराः प्रकाशा:। = Charming light or splendor. (दिव:) प्रकाशात् । = From the light. (मन्द्रस्य ) आनन्दप्रदस्य। = Of the bestower of Bliss.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top