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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 62/ मन्त्र 16
    ऋषिः - विश्वामित्रो जमदग्निर्वा देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    आ नो॑ मित्रावरुणा घृ॒तैर्गव्यू॑तिमुक्षतम्। मध्वा॒ रजां॑सि सुक्रतू॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । नः॒ । मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒ । घृ॒तैः । गव्यू॑तिम् । उ॒क्ष॒त॒म् । मध्वा॑ । रजां॑सि । सु॒क्र॒तू॒ इति॑ सुऽक्रतू ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ नो मित्रावरुणा घृतैर्गव्यूतिमुक्षतम्। मध्वा रजांसि सुक्रतू॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। नः। मित्रावरुणा। घृतैः। गव्यूतिम्। उक्षतम्। मध्वा। रजांसि। सुक्रतू इति सुऽक्रतू॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 62; मन्त्र » 16
    अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 11; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अध्यापकोपदेशकविषयमाह।

    अन्वयः

    यौ सुक्रतू मित्रावरुणा घृतैर्गव्यूतिं रजांसि सिञ्चत इव मध्वा नोऽस्मानोक्षतं तौ वयं प्राणवत्प्रियौ मन्यामहे ॥१६॥

    पदार्थः

    (आ) (नः) अस्मभ्यम् (मित्रावरुणा) प्राणोदानवदध्यापकोपदेशकौ (घृतैः) उदकादिभिः (गव्यूतिम्) क्रोशद्वयम् (उक्षतम्) सिञ्चतम् (मध्वा) माधुर्येण (रजांसि) लोकान् (सूक्रतू) उत्तमप्रज्ञौ सत्कर्माणौ वा ॥१६॥

    भावार्थः

    यावध्यापकोपदेशकोपदिष्टप्राणविद्यां विज्ञाय लोकलोकान्तरव्यवहारेण सर्वदेशेषु गमनागमनौ संसाधयतस्तौ जलवन्निर्मलान्तःकरणौ विज्ञातव्यौ ॥१६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब अगले मन्त्र में अध्यापक और उपदेशक के विषय को कहते हैं।

    पदार्थ

    जो (सुक्रतू) उत्तम बुद्धि वा श्रेष्ठ कर्मवाले (मित्रावरुणा) प्राण और उदान वायु के सदृश अध्यापक और उपदेशक (घृतैः) जल आदिकों से (गव्यूतिम्) दो कोस (रजांसि) लोकों को सिञ्चनेवाले के सदृश (मध्वा) मधुरता से (नः) हमलोगों के लिये (आ, उक्षतम्) सींचनेवाले हैं, उन दोनों को हम लोग प्राणों के सदृश प्रिय मानते हैं ॥१६॥

    भावार्थ

    जो पढ़ाने और उपदेश देनेवाले से उपदेश की गई प्राण अर्थात् पवनसम्बन्धी विद्या को जानकर लोक-लोकान्तर अर्थात् एकदेश से दूसरे देश के व्यवहार से सम्पूर्ण देशों में जाना आना सिद्ध करते हैं, वे जल के सदृश शुद्ध अन्तःकरणवाले जानने योग्य हैं ॥१६॥

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    विषय

    दीप्त ज्ञान+मधुर कर्म

    पदार्थ

    [१] 'मित्र' स्नेह का देवता है और 'वरुण' पापनिवारण का। हे (मित्रावरुणा) = मित्र और वरुण (नः) = हमारी (गव्यूतिम्) = इन्द्रियरूप गौओं के प्रचार क्षेत्र को (घृतैः) = मलों के क्षरण व ज्ञानदीप्तियों से (आ उक्षतम्) = समन्तात् सिक्त करिए। हृदय में 'ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध' न हों तथा हृदय पाप की भावना से रहित हो, तो शरीर व मन जहाँ मलों से रहित रहते हैं, वहाँ बुद्धि सूक्ष्म होकर ज्ञान दीप्त हो उठता है। [२] हे (सुक्रतू) शोभन कर्मोंवाले मित्र वरुणो ! आप (रजांसि) = हमारे सब कर्मों को [रजः कर्मणि भारत] (मध्वा) = माधुर्य से सिक्त करिए। हमारे कर्म मधुरता लिए हुए हों। कहीं भी हमारे कर्मों में उग्रता न हो।

    भावार्थ

    भावार्थ- स्नेह व निष्पापता होने पर हमारा ज्ञान दीप्त होता है और हमारे कर्म मधुरता लिये हुए होते हैं ।

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    विषय

    मित्र वरुण अर्थात् स्त्री पुरुषों को उपदेश।

    भावार्थ

    हे (मित्रावरुणा) परस्पर स्नेह करने और एक दूसरे का वरण करने वाले विवाहित उत्तम स्त्री पुरुषो ! आप दोनों (नः) हमारे बीच में (सुक्रतू) उत्तम कर्म और ज्ञान को करते हुए (घृतैः) जलों के समान स्नेहयुक्त आचार विचारों से (गव्यूतिम्) ज्ञान वाणियों के सत्संग को और (मध्वा) मधुर वचनों से (रजांसि) लोकों को (उक्षतम्) सेवन करो। भूमि को जल से सेंचो, स्नेहों से सत्संगों को और मधुर वचन से सामान्य जनों के साथ वर्ताव करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्रः। १६–१८ विश्वामित्रो जमदग्निर्वा ऋषिः॥ १-३ इन्द्रावरुणौ। ४–६ बृहस्पतिः। ७-९ पूषा। १०-१२ सविता। १३–१५ सोमः। १६–१८ मित्रावरुणौ देवते॥ छन्दः- १ विराट् त्रिष्टुप्। २ त्रिष्टुप्। ३ निचृत्त्रिष्टुप्। ४, ५, १०, ११, १६ निचृद्गायत्री। ६ त्रिपाद्गायत्री। ७, ८, ९, १२, १३, १४, १५, १७, १८ गायत्री॥ अष्टदशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे अध्यापक व उपदेशक यांनी उपदेश केलेली प्राणविद्या अर्थात् वायूविद्या जाणून लोकलोकान्तरी अर्थात् एका देशातून दुसऱ्या देशात जाणे-येणे करतात ते जलाप्रमाणे शुद्ध अंतःकरणयुक्त असतात. ॥ १६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May Mitra and Varuna, sun and shower, heat and cold, fire and water, and friends of the nation inspired with justice and rectitude, fertilise and energise our lands and environment with waters and yajnic enrichments, protect and promote our cows and other cattle wealth, develop our milk products, and make the earth flow with streams of milk and honey. May all these powers do good to humanity, our lands and our homes.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of the teachers and preachers are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    The teachers and preachers, indeed, are like Prana and Udăna (Vital breaths). They are men of good intellect and actions and sprinkle on us and on the world (fulfilling) sweetness, like the water showers paths and land. We endear them like the Pranas.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those persons who acquire the knowledge of the science are taught by good teachers and preachers. They go abroad and return after having dealings with different parts of the world. They are taken as men of pure heart like water.

    Foot Notes

    (मित्रावरुणा) प्राणोदानाविवाध्यापकोपदेशकौ । प्राणीदानौ वे मित्रावरुणौ ( Stph 1, 8, 3) प्राणोदान १ मित्रावरुणौ(Stph 3, 2, 2, 13) = Teachers and preachers who are like Prana and Udāna. (धृतै:) उदकादिभिः । घृतमित्युदकनाम (NG 1, 12 ) = With waters etc.

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