ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 62/ मन्त्र 8
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - पूषा
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
तां जु॑षस्व॒ गिरं॒ मम॑ वाज॒यन्ती॑मवा॒ धिय॑म्। व॒धू॒युरि॑व॒ योष॑णाम्॥
स्वर सहित पद पाठताम् । जु॒ष॒स्व॒ । गिर॑म् । मम॑ । वा॒ज॒ऽयन्ती॑म् । अ॒व॒ । धिय॑म् । व॒धू॒युःऽइ॑व । योष॑णाम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तां जुषस्व गिरं मम वाजयन्तीमवा धियम्। वधूयुरिव योषणाम्॥
स्वर रहित पद पाठताम्। जुषस्व। गिरम्। मम। वाजऽयन्तीम्। अव। धियम्। वधूयुःऽइव। योषणाम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 62; मन्त्र » 8
अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 3
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अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अध्ययनविषयमाह।
अन्वयः
हे देव विद्वन् ! राजन् वा त्वं तां वाजयन्तीं मम गिरं योषणां वधूयुरिव जुषस्व धियञ्चाव ॥८॥
पदार्थः
(ताम्) (जुषस्व) सेवस्व (गिरम्) सत्यभाषणशास्त्रविज्ञानयुक्तां वाचम् (मम) (वाजयन्तीम्) सत्याऽसत्यविज्ञापयन्तीम् (अव) रक्ष। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (धियम्) प्रज्ञाम् (वधूयुरिव) आत्मनो वधूमिच्छन्निव (योषणाम्) स्वपत्नीम् ॥८॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्या यथा स्त्रीकामाः स्वां स्वां हृद्यां प्रियां पत्नीं रक्षन्ति सेवन्ते च तथैव शास्त्रान्वितां वाचं सेवित्वा प्रज्ञां सततं रक्षन्तु ॥८॥
हिन्दी (3)
विषय
अब अगले मन्त्र में पठन विषय को कहते हैं।
पदार्थ
हे देव विद्वन् वा राजन् ! आप (ताम्) उस (वाजयन्तीम्) सत्य और असत्य के जनानेवाली (मम) मेरी (गिरम्) सत्यभाषण और शास्त्र के विज्ञान से युक्त वाणी का जैसे (योषणाम्) निज स्त्री को (वधूयुरिव) अपनी स्त्री की इच्छा करनेवाला वैसे (जुषस्व) सेवन और (धियम्) बुद्धि की (अव) रक्षा करो ॥८॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्य लोग, जैसे स्त्री की कामना करनेवाले अपनी-अपनी प्रेमपात्र पत्नी की रक्षा और सेवा करते हैं, वैसे ही शास्त्र से युक्त वाणी का सेवन करके बुद्धि की निरन्तर सेवा करैं ॥८॥
विषय
'स्वाध्याय करना' तथा 'बुद्धि का रक्षण'
पदार्थ
[१] प्रभु जीव से कहते हैं कि (मम) = मेरी (ताम्) = उस प्रसिद्ध (गिरम्) = ज्ञानवाणी का (जुषस्व) = तू प्रीतिपूर्वक सेवन कर। वेदवाणी को प्रेमपूर्वक पढ़नेवाला बन । [२] (वाजयन्तीम्) = तुझे शक्तिशाली बनानेवाली (धियम्) = बुद्धि का (अव) = रक्षण कर। उस बुद्धि को तू धारण कर, जो तुझे शक्ति-सम्पन्न बनाए रखे। इस प्रकार इस बुद्धि का रक्षण कर (इव) = जैसे कि (वधूयुः) = वधू की कामनावाला पुरुष (योषणाम्) = अपनी पत्नी का रक्षण करता है । वस्तुतः यह बुद्धि ही तेरी पत्नी है, इसी में तेरी शक्ति निहित है, यही तुझे बलवान् बनाती है [वाजयन्ती] ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु के दो आदेश हैं- [क] वेदवाणी का अध्ययन करना, [ख] बुद्धि का रक्षण करना ।
विषय
वाणी का स्त्रीवत् स्वीकार
भावार्थ
(वधूयुः) वधू की कामना करने वाला पुरुष जिस प्रकार (वाजयन्ती) अन्न ऐश्वर्य को चाहने वाली (योषणाम्) स्त्री को प्रेम से स्वीकार करता है उसी प्रकार हे विद्वन् ! हे परमेश्वर ! (वाजयन्ती) ज्ञान, सत्यासत्य विवेक करने वाली (मम) मेरी (तां) उस (गिरं) वाणी और (धियं) धारणावती बुद्धि को मन्त्रमय, विचारमय भावना से (जुषस्व) प्रेम से स्वीकार कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्रः। १६–१८ विश्वामित्रो जमदग्निर्वा ऋषिः॥ १-३ इन्द्रावरुणौ। ४–६ बृहस्पतिः। ७-९ पूषा। १०-१२ सविता। १३–१५ सोमः। १६–१८ मित्रावरुणौ देवते॥ छन्दः- १ विराट् त्रिष्टुप्। २ त्रिष्टुप्। ३ निचृत्त्रिष्टुप्। ४, ५, १०, ११, १६ निचृद्गायत्री। ६ त्रिपाद्गायत्री। ७, ८, ९, १२, १३, १४, १५, १७, १८ गायत्री॥ अष्टदशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी स्त्रीची कामना करणारे आपापल्या पत्नीचा स्वीकार व रक्षण करतात तसेच शास्त्रयुक्त वाणीचे सेवन करून बुद्धीचे सदैव रक्षण करावे. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Please to accept, appreciate and cherish this song of mine, inspired, true and exciting, and protect the love, thought and beauty of imagination enshrined in it like a suitor’s courting his youthful lady love.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The benefits of study are highlighted.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned person or king endowed with divine virtues! please listen to my speech. It contains truth and the knowledge of the Shastras and tells the distinction between truth and untruth. It protects good intellect as a loving husband attentively listens to what his wife says, and protects her by all proper means.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As loving husbands invariably protect and serve their beloved wives, in the same manner, men should protect their good intellect constantly having acquired the knowledge of the Shastras.
Foot Notes
(वाजयन्तीम् ) सत्याऽसत्यै विज्ञापयन्तीम् = Telling the distinction between the truth and falsehood. (योषणान् ) स्वपत्नीम् । योषा वै पत्नी ( Stph 1, 3, 1, 18 ) योषैव योषणा । = One's own wife.
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