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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 34 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 34/ मन्त्र 10
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - ऋभवः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ये गोम॑न्तं॒ वाज॑वन्तं सु॒वीरं॑ र॒यिं ध॒त्थ वसु॑मन्तं पुरु॒क्षुम्। ते अ॑ग्रे॒पा ऋ॑भवो मन्दसा॒ना अ॒स्मे ध॑त्त॒ ये च॑ रा॒तिं गृ॒णन्ति॑ ॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । गोऽम॑न्तम् । वाज॑ऽवन्तम् । सु॒ऽवीर॑म् । र॒यिम् । ध॒त्थ । वसु॑ऽमन्तम् । पु॒रु॒ऽक्षुम् । ते । अ॒ग्रे॒ऽपाः । ऋ॒भ॒वः॒ । म॒न्द॒सा॒नाः । अ॒स्मे इति॑ । ध॒त्त॒ । ये । च॒ । रा॒तिम् । गृ॒णन्ति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये गोमन्तं वाजवन्तं सुवीरं रयिं धत्थ वसुमन्तं पुरुक्षुम्। ते अग्रेपा ऋभवो मन्दसाना अस्मे धत्त ये च रातिं गृणन्ति ॥१०॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये। गोऽमन्तम्। वाजऽवन्तम्। सुऽवीरम्। रयिम्। धत्थ। वसुऽमन्तम्। पुरुऽक्षुम्। ते। अग्रेऽपाः। ऋभवः। मन्दसानाः। अस्मे इति। धत्त। ये। च। रातिम्। गृणन्ति ॥१०॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 34; मन्त्र » 10
    अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 4; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे ऋभवो ! ये गोमन्तं वाजवन्तं वसुमन्तं पुरुक्षुं सुवीरं रयिं येऽग्रेपा मन्दसाना ये चाऽस्मे रातिं गृणन्ति ते यूयमेतदस्मे धत्थैतेनास्मासु सुखं धत्त ॥१०॥

    पदार्थः

    (ये) (गोमन्तम्) बह्व्यो गावो विद्यन्ते यस्मिँस्तं बहुराज्ययुक्तम् (वाजवन्तम्) बह्वन्नविज्ञानसाधकम् (सुवीरम्) उत्तमवीरप्रापकम् (रयिम्) धनम् (धत्थ) (वसुमन्तम्) बहुविधद्रव्यसहितम् (पुरुक्षुम्) बहुधनधान्यसहितम् (ते) (अग्रेपाः) पुरस्ताद्रक्षकाः (ऋभवः) विपश्चितः (मन्दसानाः) आनन्दन्तः (अस्मे) धत्त (ये) (च) (रातिम्) दानम् (गृणन्ति) स्तुवन्ति ॥१०॥

    भावार्थः

    हे विद्वांसो ! यूयं येभ्यः साध्यजन्यसुखं प्राप्याऽन्येभ्यो दत्थ ते सुपात्रेभ्यो दानं दातुं प्रशंसन्ति ॥१०॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (ऋभवः) विद्वानो ! (ये) जो (गोमन्तम्) बहुत गौओं से युक्त (वाजवन्तम्) बहुत अन्न और विज्ञान के साधनेवाले और (वसुमन्तम्) अनेक प्रकार द्रव्यों तथा (पुरुक्षुम्) बहुत धन और धान्य के सहित (सुवीरम्) श्रेष्ठ वीरों के प्राप्त करानेवाले (रयिम्) धन को (ये) जो (अग्रेपाः) पहिले रक्षा करनेवाले (मन्दसानाः) आनन्द करते हुए (च) और जो (अस्मे) हम लोगों के लिये (रातिम्) दान की (गृणन्ति) स्तुति करते हैं (ते) वे आप लोग इसको हम लोगों के लिये (धत्थ) धारण करो और इससे हम लोगों में सुख को (धत्त) धारण करो ॥१०॥

    भावार्थ

    हे विद्वानो ! आप लोग जिनके लिये सिद्ध करने योग्य पदार्थ से उत्पन्न सुख को प्राप्त होकर अन्य जनों के लिये देते हैं, वे सुपात्रों के लिये दान देने की प्रशंसा करते हैं ॥१०॥

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    विषय

    ते अग्रेपाः ऋभव: मंदसानाः

    पदार्थ

    [१] (ते) = वे (अग्रेपा:) = सर्वप्रथम सोमपान करनेवाले (ऋभवः) = ज्ञानदीप्त (मंदसाना:) = स्तोता होते हैं, (ये) = जो (रयिम्) = धन को (धत्थ) = धारण करते हैं। जो धन (गोमन्तम्) = प्रशस्त ज्ञानेन्द्रियोंवाला है, (वाजवन्तम्) = प्रशस्त शक्तिवाला है, (सुवीरम्) = उत्तम वीरता व उत्तम सन्तानोंवाला है, वसुमन्तम्निवास के लिए आवश्यक सब तत्त्वोंवाला है तथा (पुरुक्षुम्) = [क्षु = Food] पालक व पूरक भोजनवाला है। वस्तुतः यह धन ही इन्हें [क] सोमपान द्वारा सशक्त शरीरवाला बनाता है, [ख] ज्ञान की दीप्ति प्राप्त कराता है और [ग] स्तुति की वृत्तिवाला बनाता है। [२] (अस्मे) = हमारे लिए ऐसे ही धन को (धत्त) = धारण करो। उनके लिए धन को धारण करो (ये च) = और जो (रातिं गृणन्ति) = दान की स्तुति करते हैं दान की वृत्तिवाले होते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम सोमपान करनेवाले ज्ञानदीप्त स्तोता बनें । प्रशस्त धनों को प्राप्त करें और उन्हें देनेवाले हों।

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    विषय

    ऋभु नाम से कहाने योग्य जनों का वर्णन ।

    भावार्थ

    (ये) जो लोग (गोमन्तम्) गौ आदि पशु और पृथ्वी आदि से युक्त (वाजवन्तं) अन्नादि से युक्त, (सुवीरम्) उत्तम वीर रक्षकों से युक्त और (वसुमन्तम्) उत्तम बसने बसाने वाले राजा प्रजादि जीव वर्गो से युक्त (पुरुक्षुम्) बहुत से अन्न सस्यादि से सम्पन्न (रयिम्) ऐश्वर्य को (धत्थ) आप लोग धारण करते हैं (ते) वे आप लोग (ऋभवः) उत्तम, सत्य ज्ञान और न्याय से प्रकाशित होने वाले हो । और (ये च रातिं गृणन्ति) जो दानधर्म का उपदेश करते हैं या दानशील प्रजा शिष्यादि को सदुपदेश करते हैं । वे आप लोग (अ-ग्रेपाः) आगे से रक्षा करने वाले प्रमुख (मन्दसानाः) स्वयं आनन्द प्रसन्न और औरों को आनन्दित करते हुए (अस्मे) हमारे निमित्त (रयिं धत्त) ऐश्वर्य प्रदान करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ ऋभवो देवता ॥ छन्दः– १ विराट् त्रिष्टुप् । २ भुरिक् त्रिष्टुप । ४, ६, ७, ८, ९ निचृत् त्रिष्टुप् । १० त्रिष्टुप् । ३,११ स्वराट् पंक्तिः । ५ भुरिक् पंक्तिः ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे विद्वानांनो ! तुम्ही पदार्थांपासून सुख मिळवून इतरांना देता व ते सुपात्रासाठी असल्यामुळे त्याची प्रशंसा होते. ॥ १० ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Those who create, bear and bring life’s wealth full of cows and horses, food and energy, knowledge and speed of progress, all round prosperity, all round sustenance and security, and a brave new generation, and who create, praise and celebrate all such wealth of the world, such Rbhus, heroic scholars, leaders and pioneers, happy creators of joy, may bear and bring such wealth, honour and prosperity for us.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The subject of genius persons is detailed.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O genius persons! you hold delight for us, because they are owners of huge stocks of food grains, possess knowledge of sciences, are holders of various substances and wealth, commander of brave soldiers and protector of wealth giving it priority. They admire us for our donations.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O genius persons! you give away your own worthwhile pleasures and are thus admired for your donations giving them to the right persons.

    Foot Notes

    (गोमन्तम् ) वह व्यो गावो विद्यन्ते यस्मिस्तं बहुराज्ययुक्तम् = To the state with owners of cattle- wealth. (वाजयन्तम् ) वह्नन्नविज्ञान साधकम् = Grower of plenty of foodgrains and knowledge. (सुवीरम् ) उत्तमवीरांणा प्रापकम् । = Commander of brave soldiers. (वसुमन्तम्) = बहुविधद्रव्यसहितम् | = Along with varies substances. (अग्ने..)पुरस्ताद्रक्षकाः। = Leading in protection. (रातिम्) दानम् | = To donation.

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