ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 34/ मन्त्र 8
स॒जोष॑स आदि॒त्यैर्मा॑दयध्वं स॒जोष॑स ऋभवः॒ पर्व॑तेभिः। स॒जोष॑सो॒ दैव्ये॑ना सवि॒त्रा स॒जोष॑सः॒ सिन्धु॑भी रत्न॒धेभिः॑ ॥८॥
स्वर सहित पद पाठस॒ऽजोष॑सः । आ॒दि॒त्यैः । मा॒द॒य॒ध्व॒म् । स॒ऽजोष॑सः । ऋ॒भ॒वः॒ । पर्व॑तेभिः । स॒ऽजोष॑सः । दैव्ये॑न । स॒वि॒त्रा । स॒ऽजोष॑सः । सिन्धु॑ऽभिः । र॒त्न॒ऽधेभिः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सजोषस आदित्यैर्मादयध्वं सजोषस ऋभवः पर्वतेभिः। सजोषसो दैव्येना सवित्रा सजोषसः सिन्धुभी रत्नधेभिः ॥८॥
स्वर रहित पद पाठसऽजोषसः। आदित्यैः। मादयध्वम्। सऽजोषसः। ऋभवः। पर्वतेभिः। सऽजोषसः। दैव्येन। सवित्रा। सऽजोषसः। सिन्धुऽभिः। रत्नऽधेभिः ॥८॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 34; मन्त्र » 8
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 4; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 4; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे ऋभवो ! यूयमादित्यैः सह सजोषसः पर्वतेभिः सह सजोषसः दैव्येना सवित्रा सह सजोषसो रत्नधेभिः सिन्धुभिः सह सजोषसः सन्तोऽस्मान् मादयध्वम् ॥८॥
पदार्थः
(सजोषसः) समानोत्तमगुणकर्मस्वभावसेविनः (आदित्यैः) कृताष्टाचत्वारिंशद् ब्रह्मचर्य्यविद्यैः (मादयध्वम्) परस्परानानन्दयत (सजोषसः) (ऋभवः) मेधाविनः (पर्वतेभिः) मेघैः सह (सजोषसः) (दैव्येन) दिव्यस्वरूपेण। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (सवित्रा) विद्युद्रूपेण (सजोषसः) (सिन्धुभिः) नदीभिः समुद्रैर्वा (रत्नधेभिः) ये रत्नानि द्रव्याणि दधति तैः ॥८॥
भावार्थः
ये मनुष्याः पूर्णविद्यैः सह सङ्गत्य पदार्थविद्यां गृह्णन्ति ते विमानादीनि निर्माय मेघमण्डले तत ऊर्ध्वं वा समुद्रेषु नदीषु च सुखेन विहर्त्तुमर्हन्ति ॥८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (ऋभवः) बुद्धिमानो ! आप लोग (आदित्यैः) अड़तालीस वर्ष पर्यन्त ब्रह्मचर्य्य और विद्या का ग्रहण जिन्होंने किया उनके साथ (सजोषसः) समान उत्तम गुण, कर्म, स्वभाव के सेवन करने और (पर्वतेभिः) मेघों के साथ (सजोषसः) समान उत्तम गुण, कर्म, स्वभाव के सेवन करने और (दैव्येन) उत्तम स्वरूपवाले (सवित्रा) बिजुलीरूप के साथ (सजोषसः) तुल्य प्रीति सेवन करने (रत्नधेभिः) रत्नों को धारण करनेवाले (सिन्धुभिः) नदी वा समुद्रों के साथ (सजोषसः) उत्तम गुण, कर्म, स्वभाव के सेवन करनेवाले हुए आप हम लोगों को परस्पर (मादयध्वम्) आनन्दित कीजिये ॥८॥
भावार्थ
जो मनुष्य पूर्ण विद्वानों के साथ मेल करके पदार्थविद्या का ग्रहण करते हैं, वे विमान आदि को रचके मेघमण्डल वा उससे ऊपर समुद्र और नदियों में सुख से विहार करने के योग्य होते हैं ॥८॥
विषय
[१] (आदित्यैः) = जिन्हें प्रकृति जीव व परमात्मा तीनों का ज्ञान है, उन आदित्य विद्वानों के साथ (सजोषसः) = संगत हुए हुए तुम (मादयध्वम्) = आनन्द का अनुभव करो। [२] इसी प्रकार (ऋभव:) = हे ज्ञान से दीप्त पुरुषो! तुम (पर्वतेभि:) = [पर्व पूरणे] अपना पूरण करनेवाले न्यूनताओं से रहित पुरुषों से (सजोषस:) = संगत हुए हुए आनन्दित होओ। [३] (सवित्रा दैव्येन) = [देव एव दैव्यम्, स्वार्थे ष्यञ्] उस सर्वप्रेरक दिव्य गुणों के पुञ्ज प्रभु से (सजोषस:) = संगत हुए उसकी उपासना में बैठे हुए तुम आनन्दित होओ। [४] (रत्नधेभिः) = सब रमणीय ज्ञानों का आधान करनेवाले (सिन्धुभिः) = ज्ञान के समुद्रभूत इन चार वेदों से (सजोषसः) = संगत हुए हुए, अर्थात् इनका स्वाध्याय करते हुए तुम आनन्दित होओ।
पदार्थ
भावार्थ- हमें 'प्रकृति, जीव, परमात्मा' का ज्ञान देनेवाले विद्वानों का और सब न्यूनताओं को दूर करनेवाले प्रभुभक्तों का संग प्राप्त हो । प्रभुभक्तों के संग से हम भी प्रभु की उपासना में बैठनेवाले बनें और आदित्यों का सम्पर्क हमें भी स्वाध्याय की रुचिवाला बनाए ।
विषय
विद्वानों और शिल्पज्ञों के कर्त्तव्य
भावार्थ
हे (ऋभवः) विद्वान्, महान् पुरुषो ! आप लोग (आदित्यैः सजोषसः मादयध्वम्) सूर्य के समान तेजस्वी, परस्पर आदान-प्रति-दान में कुशल व्यापारियों वा ‘अदिति’ अर्थात् पृथिवी के स्वामियों वा १२ मासों के सुखों से युक्त होकर आनन्द-लाभ करो। आप लोग (पर्वतेभिः) पर्वतों के समान अचल और मेघों के तुल्य उदार, दानशील, शस्त्रवर्षी वीरों के साथ (सजोषसः मादयध्वम्) समान प्रीतियुक्त होकर हर्षित होओ। आप लोग (दैव्येन सवित्रा सजोषसः मादयध्वम्) देव, प्रकाशमान पिण्डों के बीच उत्तम प्रकाशयुक्त सविता सूर्य के तुल्य ज्ञान के अभिलाषुक शिष्यों के हितकारी, आचार्य वा तेजस्वी विद्वान् के साथ प्रीतियुक्त होकर प्रसन्न रहो। और आप लोग (रत्नधेभिः सिन्धुभिः सजोषसः मादयध्वम्) समुद्रों के समान रत्नों के धारण और प्रदान करने वाले उत्तम गम्भीर पुरुषों से प्रीतियुक्त आनन्दित होकर रहो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ ऋभवो देवता ॥ छन्दः– १ विराट् त्रिष्टुप् । २ भुरिक् त्रिष्टुप । ४, ६, ७, ८, ९ निचृत् त्रिष्टुप् । १० त्रिष्टुप् । ३,११ स्वराट् पंक्तिः । ५ भुरिक् पंक्तिः ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे पूर्ण विद्वानांचा संग करून पदार्थ विद्येचे ग्रहण करतात ती विमान इत्यादीची निर्मिती करून मेघमंडलात किंवा समुद्र व नद्यांमध्ये सुखाने विहार करतात. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Rbhus, scientists and intellectuals, create joy and rejoice: Rejoice with the Adityas, scholars of the top order of brilliance in accord with the various phases of the sun, rejoice in harmony with the clouds and the mountains, rejoice together with the divine energy of nature and the life-sustaining light of the sun, and rejoice in confluence with the flowing rivers and the rolling seas and the treasures of the jewel wealth of nature, and share the joy with us too.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of genius persons are stated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O genius persons ! you should live in association with those who have observed Brahmacharya up to the age of 48 years and are resembling with you in fine virtues, action and temperament. These associates should be kind like clouds in their qualities actions and temperaments, and also comparable with power. Endowed with jewels and acting like rivers and oceans, they should delight us on account of their virtues actions and temperament.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The persons who were always in association with fully learned persons, they are capable to manufacture aircrafts and ships, and thus succeed to fly in the sky and navigate in ocean and rivers.
Foot Notes
(सजोषसः) समानोत्तम गुणकर्मस्वभावसेविनः । = Bearing similar virtues, actions and temperament. (आअश्विनौः) कृताष्टाचत्वारिंशद् ब्रह्मचर्य्य- विद्यैः । = By those who have observed Brahmacharya up to the age of 48. (मादयध्वम् ) परस्परानानन्दयत । = Delight mutually. (पर्वतेभिः) मेघैः सह। = By the clouds. ( सविता ) विद्युद्रपेण । = By electricity.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal