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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 35 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 35/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - ऋभवः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आग॑न्नृभू॒णामि॒ह र॑त्न॒धेय॒मभू॒त्सोम॑स्य॒ सुषु॑तस्य पी॒तिः। सु॒कृ॒त्यया॒ यत्स्व॑प॒स्यया॑ चँ॒ एकं॑ विच॒क्र च॑म॒सं च॑तु॒र्धा ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । अ॒ग॒न् । ऋ॒भू॒णाम् । इ॒ह । र॒त्न॒ऽधेय॑म् । अभू॑त् । सोम॑स्य । सुऽसु॑तस्य । पी॒तिः । सु॒ऽकृ॒त्यया॑ । यत् । सु॒ऽअ॒प॒स्यया॑ । च॒ । एक॑म् । वि॒ऽच॒क्र । च॒म॒सम् । च॒तुः॒ऽधा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आगन्नृभूणामिह रत्नधेयमभूत्सोमस्य सुषुतस्य पीतिः। सुकृत्यया यत्स्वपस्यया चँ एकं विचक्र चमसं चतुर्धा ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। अगन्। ऋभूणाम्। इह। रत्नऽधेयम्। अभूत्। सोमस्य। सुऽसुतस्य। पीतिः। सुऽकृत्यया। यत्। सुऽअपस्यया। च। एकम्। विऽचक्र। चमसम्। चतुःऽधा ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 35; मन्त्र » 2
    अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 5; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! भवन्तो सुकृत्यया स्वपस्यया यद्यमेकं चमसं चतुर्धा विचक्र येन सुषुतस्य सोमस्य पीतिरभूदिहर्भूणां रत्नधेयमागँस्तेन च गमनादिकार्य्याणि साध्नुत ॥२॥

    पदार्थः

    (आ) समन्तात् (अगन्) (ऋभूणाम्) मेधाविनाम् (इह) अस्मिन् संसारे (रत्नधेयम्) (अभूत्) भवेत् (सोमस्य) ऐश्वर्य्यस्य (सुषुतस्य) सुष्ठु निष्पादितस्य (पीतिः) पानम् (सुकृत्यया) शोभनक्रियया (यत्) यम् (स्वपस्यया) सुष्ठ्वपांसि कर्माणि तान्यात्मन इच्छया (च) (एकम्) (विचक्र) कुर्वन्ति (चमसम्) चमसं मेघमिव गर्जनावन्तं रथम् (चतुर्धा) अधऊर्ध्वतिर्यक्समगतियुक्तम् ॥२॥

    भावार्थः

    ये मनुष्याः सुष्ठुहस्तक्रिययोत्तमकर्मणा सर्वतो गमयितारं रथादिकं निर्ममते ते भोज्यपेयासङ्ख्यधनानि प्राप्नुवन्ति ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! आप (सुकृत्यया) सुन्दर क्रिया से (स्वपस्यया) वा सुन्दर कर्म्मों को अपनी इच्छा से (यत्) जिस (एकम्) एक (चमसम्) मेघ के सदृश गर्जना करनेवाले रथ को (चतुर्धा) नीचे, ऊपर, तिरछी और मध्यम गतिवाला (विचक्र) करते हैं जिससे (सुषुतस्य) उत्तम प्रकार उत्पन्न किये गये (सोमस्य) ऐश्वर्य्य का (पीतिः) पान (अभूत्) होवे और (इह) इस संसार में (ऋभूणाम्) बुद्धिमानों के (रत्नधेयम्) रत्न धरने के पात्ररूप जन को (आ, अगन्) सब प्रकार प्राप्त होवें (च) उसीसे गमन आदि कार्य्यों को सिद्ध करो ॥२॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य उत्तम हस्तक्रिया और उत्तम कर्म से सर्वत्र पहुँचानेवाले वाहन आदि को रचते हैं, वे खाने और पीने योग्य पदार्थ और असङ्ख्य धनों को प्राप्त होते हैं ॥२॥

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    विषय

    सुषुत सोम का पान

    पदार्थ

    [१] (इह) = इस जीवन में (ऋभूणाम्) = ज्ञानदीप्त पुरुषों को (रत्नधेयम्) = रत्नों का आधान रमणीय तत्त्वों की प्राप्ति (आगन्) = प्राप्त हो । (सुषुतस्य) = उत्तम सात्त्विक भोजनों से उत्पन्न (सोमस्य) = सोम का (पीति:) = पान (अभूत्) = हो। इस सोम के पान से ही तो रत्नों की स्थापना होती है। [२] यह सब तब होता है, (यत्) = जब कि ये ऋभु (सुकृत्यया) = उत्तम कर्मों द्वारा (च) = और (स्वपस्यया) = सदा उत्तम कर्मों की इच्छा से (एकं चमसम्) = इस एक शरीररूप पात्र को (चतुर्धा) = चार प्रकार से (विचक्र) = करते हैं। चार प्रकार से करने का भाव यह है कि ये इस शरीर से चलनेवाली जीवनयात्रा को चार भागों में बाँटकर पूरा करते हैं। ये चार भाग ही 'ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ व संन्यास' ये चार आश्रम हैं। इस प्रकार प्रत्येक आश्रम को सुन्दरता से निभाते हुए ये ऋभु सोम का रक्षण करते हैं और सोमरक्षण द्वारा रत्नों को प्राप्त करते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम शरीर द्वारा चारों आश्रमों का ठीक से पालन का निश्चय करें। सोमरक्षण करते हुए जीवन को रमणीय तत्त्वों से परिपूर्ण करें।

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    विषय

    चतुर्धा पुरुषार्थ, चतुर्धा आश्रम, चतुरंग सैन्य और चतुर्धा अन्न का निर्माण ।

    भावार्थ

    (यत्) जिस कारण से (सुकृत्यया स्वपस्यया) उत्तम आचरण और शोभन कर्मों को करने की प्रवृत्ति से ही विद्वान लोग (एकं चमसं) सुख प्राप्तिरूप एक पुरुषार्थ को ही (चतुर्धा) चार प्रकार का (वि चक्र) विभाग या परिणाम कर देते हैं। जैसे शिल्पी लोग एक ही रथ को उत्तम क्रिया कौशल से चार प्रकार का बना देते हैं जिससे यह रथ ऊपर, नीचे, बीच में और तिरछा भी गति कर सकता है । इससे (ऋभ्रूणाम्) सत्य के बल से समर्थ विद्वानों का (इह) इस जगत् में (रत्नधेयम् आ अगन्) ऐश्वर्य प्राप्त होता है । और (सु-सुतस्य सोमस्य) उत्तम रीति से उत्पादित ऐश्वर्य का (पीतिः) पान, उपभोग व पालन भी अन्न ओषध्यादि वा प्रजा के समान धर्मानुसार ही (अभूत्) हो । राजाओं का एक चमस अर्थात् उपभोगपात्र प्रजा वा राष्ट्र, वर्ण भेद से चार प्रकार हो जाता है, शत्रुसैन्य को निगल जाने वाला सैन्य रथ, गज, वाजि, पदाति भेद से चार प्रकार का चतुरंग हो जाता है, मेघ से उत्पन्न जल का रश्मियों द्वारा चार प्रकार का परिणाम होता है कन्द-मूल फूल फलादि जीव शरीर और जल, विद्युत्, अन्न, औषधि है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः॥ ऋभवो देवता॥ छन्द:– १, २, ४, ६, ७, ९ निचृत् त्रिष्टुप् । ८ त्रिष्टुप्। ३ भुरिक् पंक्तिः। ५ स्वराट् पंक्तिः॥ नवर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी माणसे उत्तम हस्तक्रिया व उत्तम कर्म करून सर्वत्र गमन करणारी वाहने निर्माण करतात ती खाण्या-पिण्यायोग्य पदार्थ व असंख्य धन प्राप्त करतात. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Let the jewel wealth of the Rbhus’ performance come and let the joy of the soma success distilled from nature be here for the people to share who deserve the prize, since with their admirable action and brilliant intelligence and will they have designed and manufactured one chariot fourfold in performance.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes and essentials of the learned persons are described.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! with your good means and methods and the inherent desire of doing good to others, you have built one cloud-like chariot. It has four kinds of movements-downward, upward, curved and straight, and that thus acquired wealth could be utilized well. Thus the retaining of wisemen is attained. Accomplish with it your travel and transport purposes.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The manufacturers of good vehicles enable the men to join their group at their will with dexterity and good actions. They are able to acquire abundant wealth and nice articles for eating, drinking and consumption.

    Foot Notes

    (सोमस्य ) ऐश्वर्य्यस्य । = Of wealth. (स्वपस्यया) सुष्ठवपांसि कर्माणि तान्यात्मन इच्छया । अप इति कर्मनाम (NG 2, 1)। = With the desire of doing good deeds. (चमसम्) चमसं मेघमिव गर्जनावन्तं रथम् । चमस इति मेघनाम (NG 1, 10) = Chariot or vehicle which makes sound like the cloud.

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