ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 35/ मन्त्र 4
किं॒मयः॑ स्विच्चम॒स ए॒ष आ॑स॒ यं काव्ये॑न च॒तुरो॑ विच॒क्र। अथा॑ सुनुध्वं॒ सव॑नं॒ मदा॑य पा॒त ऋ॑भवो॒ मधु॑नः सो॒म्यस्य॑ ॥४॥
स्वर सहित पद पाठकि॒म्ऽमयः॑ । स्वि॒त् । च॒म॒सः । ए॒षः । आ॒स॒ । यम् । काव्ये॑न । च॒तुरः॑ । वि॒ऽच॒क्र । अथ॑ । सु॒नु॒ध्व॒म् । सव॑नम् । मदा॑य । पा॒त । ऋ॒भ॒वः॒ । मधु॑नः । सो॒म्यस्य॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
किंमयः स्विच्चमस एष आस यं काव्येन चतुरो विचक्र। अथा सुनुध्वं सवनं मदाय पात ऋभवो मधुनः सोम्यस्य ॥४॥
स्वर रहित पद पाठकिम्ऽमयः। स्वित्। चमसः। एषः। आस। यम्। काव्येन। चतुरः। विऽचक्र। अथ। सुनुध्वम्। सवनम्। मदाय। पात। ऋभवः। मधुनः। सोम्यस्य ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 35; मन्त्र » 4
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 5; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 5; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे ऋभव ! एष चमसः स्वित्किंमय आस यं काव्येन चतुरो यूयं विचक्र मदाय मधुनः सोम्यस्य सवनं सुनुध्वमथैतत्पात ॥४॥
पदार्थः
(किंमयः) यः किं मिनोति सः (स्वित्) प्रश्ने (चमसः) आचामति येन सः (एषः) (आस) (यम्) (काव्येन) कविना निर्मितेन विधिना (चतुरः) एतत्सङ्ख्याकान् (विचक्र) विदधति (अथ) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (सुनुध्वम्) निष्पादयत (सवनम्) कार्य्यसिद्ध्यर्थं कर्म (मदाय) आनन्दाय (पात) रक्षत (ऋभवः) मेधाविनः (मधुनः) ज्ञानजन्यस्य (सोम्यस्य) सोमैश्वर्य्ये साधोः ॥४॥
भावार्थः
कर्म्मसाधनानि कीदृशानि किंमयानि भवन्तीति पृच्छ्यते यद्यद्विद्यायुक्तिभ्यां निर्मितं स्यात् तत्तत्साधनं कार्य्यसिद्धिकरं भवतीत्युत्तरम् ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (ऋभवः) बुद्धिमानो ! (एषः) यह (चमसः) यज्ञपात्र जिससे कि आचमन करता है (स्वित्) सो क्या (किंमयः) किसी को फेंकता (आस) हुआ है (यम्) जिसको (काव्येन) कवियों के बनाये गये कर्म से (चतुरः) चार भाग आप लोग (विचक्र) विधान करते हैं और (मदाय) आनन्द के लिये (मधुनः) ज्ञान से उत्पन्न (सोमस्य) ऐश्वर्य्य में श्रेष्ठ पदार्थ के (सवनम्) कार्य्य की सिद्धि करनेवाले को (सुनुध्वम्) उत्पन्न करो (अथ) इसके अनन्तर इसकी (पात) रक्षा करो ॥४॥
भावार्थ
कार्य्यों के साधन कैसे और काहे के बने हुए होते हैं, यह पूछा जाता है। जो-जो विद्या और युक्ति से बनाया गया हो, वह-वह साधन कार्य्य की सिद्धि करनेवाला होता है, यह उत्तर है ॥४॥
विषय
सोम्य मधु का रक्षण
पदार्थ
[१] (एषः चमस:) = यह शरीरूप (पात्र यम्) = जिसको (काव्येन) = वेदज्ञान द्वारा (चतुरः) = विचक्र आपने चार आश्रमों में बाँटकर बिताने का निश्चय किया, वह (स्वित्) = निश्चय से (किंमय: आस) = आनन्द के प्राचुर्यवाला हुआ है। वेद में मानव जीवन को चार मंजिलों में बाँटकर बिताने का उपदेश हुआ है। जब हम उस प्रभु के महान् काव्य वेद के अनुसार जीवन को इस प्रकार चार भागों में बाँटकर चलते हैं, तो जीवन आनन्दमय बना रहता है। [२] (ऋभव:) = हे ऋभुओ ! तुम (मदाय) = जीवन को उल्लासमय बनाने के लिए (सवनम्) = [सूयते इति] सोम को सुनुध्वम् अपने अन्दर उत्पन्न करो। और इस (सोम्यस्य) = सोमसम्बन्धी सोम से उत्पन्न हुए हुए (मधुनः) = माधुर्य का (पात) = रक्षण करो। हम शरीर में सोम को उत्पन्न करें और इस सोम को सुरक्षित रखते हुए जीवन को मधुर बनाएँ ।
भावार्थ
भावार्थ- जीवन की चारों मंजिलों को सुन्दरता से बिताने से जीवनयात्रा अच्छी निभती हैइसको अच्छा बनाने के लिए ही हम सोम [वीर्य शक्ति] का उत्पादन व रक्षण करें।
विषय
ऋभुओं के चमस का रूप ।
भावार्थ
चमस का स्वरूप—(एषः चमसः) यह पूर्वोक्त ‘चमस’ (किंमयः स्वित्) किस पदार्थ का बना हुआ (आस) है (यं) जिसको (काव्येन) क्रान्तदर्शी विद्वानों का कौशल (चतुरः) चार रूपों में (वि चक्र) विभक्त या परिणत कर देता है । हे (ऋभवः) ज्ञानवान् पुरुषो ! आप लोग (मदाय) आनन्द लाभ के लिये, (सवनं) उत्तम ऐश्वर्य, कार्यसिध्यर्थ कर्म, यज्ञ, अपत्यादि (सुनुध्वं) उत्पन्न करो और (मधुनः सोम्यस्य पात) सोम, परमानन्द से युक्त मधुर ब्रह्म रस वा अन्नादि का पान, उपभोग करो। प्रश्न—यह पूर्वोक्त चमस किस पदार्थ का बना ? कैसा है ? उत्तर—चमस ‘किं-मय’ है अर्थात् तुच्छ बल को उखाड़ फेंकने वाला सैन्य, तुच्छ अज्ञान का नाशक ज्ञानस्वरूप, ‘किं’ प्रश्न के योग्य ब्रह्म ज्ञान का उपदेशप्रद ‘वेद’ है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः॥ ऋभवो देवता॥ छन्द:– १, २, ४, ६, ७, ९ निचृत् त्रिष्टुप् । ८ त्रिष्टुप्। ३ भुरिक् पंक्तिः। ५ स्वराट् पंक्तिः॥ नवर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
कार्याची साधने कशी व का बनलेली असतात हे विचारले जाते. जे जे विद्या व युक्तीने तयार केलेले असते ते ते साधन कार्य सिद्धी करणारे असते, हे उत्तर आहे. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
What in truth is this cup of life which, with your wisdom, you analyse, specify and realise as four-in-one? O sages of vision and imagination, distil the soma- essence of it for the joy of life and drink as well as protect and promote the nectar sweet of honey.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The qualities of the enlightened further explained.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O wisemen ! what kind of Chamasa i.e. the Purushartha Chatushtaya is the means of enjoyment? And how this process of wisdom you divide into four? For the enjoyment of delight, accomplish the work undertaken by you. It leads. you to prosperity consciously and protects well.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The question is what are the means for the accomplishment Of work and what are these made of? The answer is that who are blessed with determination, knowledge and reason, it leads to the accomplishment of the work. They are the surest means of achieving the aim.
Foot Notes
(सवनम् ) कार्य्यसिद्धयर्थ कर्म । = The action that leads to the accomplishment of the work. (मधुन:) ज्ञानजन्यस्य । = Born of knowledge. (चमस:) आचामति येन सः । = By which a man enjoys happiness.
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