ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 36/ मन्त्र 7
श्रेष्ठं॑ वः॒ पेशो॒ अधि॑ धायि दर्श॒तं स्तोमो॑ वाजा ऋभव॒स्तं जु॑जुष्टन। धीरा॑सो॒ हि ष्ठा क॒वयो॑ विप॒श्चित॒स्तान्व॑ ए॒ना ब्रह्म॒णा वे॑दयामसि ॥७॥
स्वर सहित पद पाठश्रेष्ठ॑म् । वः॒ । पेशः॑ । अधि॑ । धा॒यि॒ । द॒र्श॒तम् । स्तोमः॑ । वा॒जाः॒ । ऋ॒भ॒वः॒ । तम् । जु॒जु॒ष्ट॒न॒ । धीरा॑सः । हि । स्थ । क॒वयः॑ । वि॒पः॒ऽचितः॑ । तान् । वः॒ । ए॒ना । ब्रह्म॑णा । आ । वे॒द॒या॒म॒सि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
श्रेष्ठं वः पेशो अधि धायि दर्शतं स्तोमो वाजा ऋभवस्तं जुजुष्टन। धीरासो हि ष्ठा कवयो विपश्चितस्तान्व एना ब्रह्मणा वेदयामसि ॥७॥
स्वर रहित पद पाठश्रेष्ठम्। वः। पेशः। अधि। धायि। दर्शतम्। स्तोमः। वाजाः। ऋभवः। तम्। जुजुष्टन। धीरासः। हि। स्थ। कवयः। विपःऽचितः। तान्। वः। एना। ब्रह्मणा। आ। वेदयामसि ॥७॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 36; मन्त्र » 7
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 2
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अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे वाजा ऋभवो ! यूयं येन वो श्रेष्ठं दर्शतं पेशः स्तोमोऽधिधायि ये हि धीरासः कवयो विपश्चित उपदेशकाः स्युर्यं यान् व एना ब्रह्मणाऽऽवेदयामसि तं तांश्च जुजुष्टनैतत्सङ्गेन विद्वांसः स्थ ॥७॥
पदार्थः
(श्रेष्ठम्) अतिशयेन प्रशस्यम् (वः) युष्माकम् (पेशः) सुन्दरं रूपं हिरण्यञ्च। पेश इति रूपनामसु पठितम्। (निघं०३.७) हिरण्यनामसु च। (निघं०१.२) (अधि) उपरि (धायि) ध्रियते (दर्शतम्) द्रष्टव्यम् (स्तोमः) प्रशंसा (वाजाः) प्राप्तसुशीला वेगवन्तः (ऋभवः) सूरयः (तम्) (जुजुष्टन) सेवध्वम् (धीरासः) योगिनो विचारवन्तः (हि) यतः (स्थ) भवत। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (कवयः) बहुदर्शिन उपदेशकाः (विपश्चितः) सदसद्विवेका विद्वांसः (तान्) (वः) युष्मान् (एना) एनेन (ब्रह्मणा) वेदेन (आ) (वेदयामसि) ज्ञापयामः ॥७॥
भावार्थः
ये विद्यार्थिनः श्रेष्ठानध्यापकान् विदुष आप्तान् संसेव्य शिक्षां गृह्णीयुस्ते विद्वांसः श्रीमन्तश्च भवेयुः ॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (वाजाः) उत्तम स्वभावयुक्त और वेगवाले (ऋभवः) बुद्धिमान् ! आप लोग जिसके (वः) आप लोगों के (श्रेष्ठम्) अत्यन्त प्रशंसा करने योग्य और (दर्शतम्) देखने योग्य (पेशः) सुन्दररूप और सुवर्ण तथा (स्तोमः) प्रशंसा (अधि) ऊपर (धायि) धारण की जाती है और जो (हि) जिससे (धीरासः) योगी विचारवाले (कवयः) बहुत शास्त्रों को देखे अर्थात विचारे हुए उपदेशक (विपश्चितः) सत्य और मिथ्या को पृथक् करनेवाले विद्वान् जन उपदेशक होवें जिसको और जिन (वः) आप लोगों को (एना) इस (ब्रह्मणा) वेद से (आ, वेदयामसि) जनाते हैं (तम्) उस और (तान्) उनकी (जुजुष्टन) सेवा करो अर्थात् उसमें और अपने में प्रीति करो इसके संग से विद्वान् (स्थ) होओ ॥७॥
भावार्थ
जो विद्यार्थी जन श्रेष्ठ अध्यापक और विद्वान् यथार्थवक्ता जनों की सेवा करके शिक्षा ग्रहण करें, वे विद्वान् और लक्ष्मीवान् होवें ॥७॥
विषय
धीर, कवि व विपश्चित्
पदार्थ
[१] गतमन्त्र में 'वचस्या' [स्तुति] का उल्लेख था। इस वचसा द्वारा (वः) = तुम्हारे में (श्रेष्ठम्) = अतिप्रशस्त (दर्शतम्) = दर्शनीय (पेश:) = रूप (अधिधायि) = अधिनिहित होता है। इस रूप का आधान करनेवाला यह (स्तोमः) = स्तुति वचन है। प्रभुस्तवन से जीवन प्रशस्त व सुन्दर बनता है। हे (वाजा:) = शक्तिशाली (ऋभवः) = ज्ञानदीप्त पुरुषो! (तं जुजुष्टन) = उस स्तोम का प्रीतिपूर्वक सेवन करो। [२] इस स्तोम का सेवन करते हुए तुम (हि) = निश्चय से (धीरास:) = धीर [ज्ञान में रमण करनेवाले] (कवयः) = क्रान्तदर्शी- वस्तुतत्त्व को देखनेवाले (विपश्चित:) = विद्वान् (ष्ठा) = [स्थ] होते हो । तान् उन व:- आपको एना ब्रह्मणा - इस ब्रह्म से [ब्रह्म वेदः] - वेद से प्रभुप्रदत्त ज्ञान की वाणियों से आवेदयामसि ज्ञानसम्पन्न करते हैं। यह ज्ञान ही वस्तुतः जीवन को सुन्दरतम रूप देता है। यह ज्ञान ही हमें 'धीर, कवि व विपश्चित्' बनाता है। [thinker, sober strongminded, learned]। =
भावार्थ
भावार्थ- प्रभुस्तवन से जीवन प्रशस्त बनता है। प्रशस्त जीवन का भाव है 'धीर, कवि व विपश्चित्' बनना ।
विषय
ऋभु, विम्वा वाज, आदि विद्वानों वीरों के कर्त्तव्य उनमें वेदोपदेश के स्थिर करने का उपदेश ।
भावार्थ
हे (वाजाः) बलवान् और बुद्धि में तीव्र वेग वाले शिष्य जनो ! हे (ऋभवः) सत्य-ज्ञान से प्रकाशित होने वालो ! जिसके द्वारा (वः) आप लोगों को (श्रेष्ठं पेशः) सबसे उत्तम स्वरूप (दर्शतं) दर्शनीय (धायि) धारण किया जाय और जिससे तुम्हारे बीच उत्तम, सर्वश्रेष्ठ (स्तोमः धायि) वेदोपदेश स्थिर किया जा सके, आप लोग (तं जुजुष्टन) उसकी प्रेम से सेवा किया करो । और जो लोग (धीरासः) धीर पुरुष, ध्यानवान् और (कवयः) विद्वान्, क्रान्तदर्शी (विपश्चितः) ज्ञानों कर्मों को जानने वाले मेधावी हैं (तान्) उनको लक्ष्य करके हम (वः) आप लोगों को (एना ब्रह्मणा) इस वेद ज्ञान, ब्रह्मचर्यादि के निमित्त (आवेदयामसि) बतलावें और आप लोग भी (धीरासः कवयः स्थ) वीर और विद्वान् हो जाओ ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ ऋभवो देवता ॥ छन्दः- १, ६, ८ स्वराट् त्रिष्टुप् । ९ त्रिष्टुप् । २, ३, ४, ५ विराट् जगती । ७ जगती ॥ नवर्चं सूक्तम् ।
मराठी (1)
भावार्थ
जे विद्यार्थी, श्रेष्ठ अध्यापक व विद्वान आप्त लोकांची सेवा करून शिक्षण ग्रहण करतात. ते विद्वान व श्रीमंत होतात. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Most distinguished and elevating is the form and position held by you, Rbhus, masters of art and science and pioneers of progress. Accept and appreciate the song of celebration. Stay constant, poets and visionaries, scholars of high wisdom. Such we recognise and honour you by this holy song of praise.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The application of technology in the society is stressed.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O active wisemen of good character and conduct! your form and golden appearance is excellent, agreeable and admirable because of your association with noble and highly educated persons. You also become Yogis of contemplative nature, far-sighted preacher and discreet scholars. Through the Vidya (learning), we tell you about the attributes of the enlightened persons. Serve them well and become like them.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those students who having approached and served the excellent teachers and most reliable truthful persons, receive education from them. They become great scholars and wealthy.
Foot Notes
(वाजाः) प्राप्तसुशीला वेगवन्तः । वाजाः is from वज-गतौ गतेस्त्रिष्वर्थेषु गत्यर्थमादाय वेगवन्तः इति व्याख्या प्राप्त्यर्थं चादायप्राप्तसुशीला इति व्याख्या | = Speedy or active, endowed with good character and conduct. (विपश्चितः) सदसद्विवेका विद्वांसः । = Discreet scholars. (धीरासः) योगिनो विचारवन्तः । धीरा प्रज्ञानवन्तो ध्यानवन्तः इति (NKT 4, 2, 9) (पेश:) सुन्दरं रूपं हिरण्यं च । पेश इति रूपनाम (NG 3, 7) हिरण्यनाम NG 1, 2) Yogis of contemplative nature.
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