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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 36 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 36/ मन्त्र 8
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - ऋभवः छन्दः - स्वराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यू॒यम॒स्मभ्यं॑ धि॒षणा॑भ्य॒स्परि॑ वि॒द्वांसो॒ विश्वा॒ नर्या॑णि॒ भोज॑ना। द्यु॒मन्तं॒ वाजं॒ वृष॑शुष्ममुत्त॒ममा नो॑ र॒यिमृ॑भवस्तक्ष॒ता वयः॑ ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यू॒यम् । अ॒स्मभ्य॑म् । धि॒षणा॑भ्यः । परि॑ । वि॒द्वांसः॑ । विश्वा॑ । नर्या॑णि । भोज॑ना । द्यु॒ऽमन्त॑म् । वाज॑म् । वृष॑ऽशुष्मम् । उ॒त्ऽत॒मम् । आ । नः॒ । र॒यिम् । ऋ॒भ॒वः॒ । त॒क्ष॒त॒ । आ । वयः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यूयमस्मभ्यं धिषणाभ्यस्परि विद्वांसो विश्वा नर्याणि भोजना। द्युमन्तं वाजं वृषशुष्ममुत्तममा नो रयिमृभवस्तक्षता वयः ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यूयम्। अस्मभ्यम्। धिषणाभ्यः। परि। विद्वांसः। विश्वा। नर्याणि। भोजना। द्युऽमन्तम्। वाजम्। वृषऽशुष्मम्। उत्ऽतमम्। आ। नः। रयिम्। ऋभवः। तक्षत। आ। वयः ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 36; मन्त्र » 8
    अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वांस ऋभवो ! यूयमस्मभ्यं धिषणाभ्यो विश्वा नर्य्याणि भोजना द्युमन्तं वृषशुष्ममुत्तमं वाजं रयिं नो वयश्चातक्षत तेन सुखं पर्य्यावर्द्धयत ॥८॥

    पदार्थः

    (यूयम्) (अस्मभ्यम्) (धिषणाभ्यः) प्रज्ञाभ्यः (परि) सर्वतः (विद्वांसः) (विश्वा) सर्वाणि (नर्य्याणि) नृषु साधूनि नृभ्यो हितानि वा (भोजना) पालनान्यन्नानि वा (द्युमन्तम्) प्रकाशवन्तम् (वाजम्) विज्ञानम् (वृषशुष्मम्) वृषणां बलीनां बलम् (उत्तमम्) श्रेष्ठम् (आ) (नः) अस्मभ्यम् (रयिम्) धनम् (ऋभवः) मेधाविनः (तक्षत) विस्तृणुत (आ) (वयः) जीवनम् ॥८॥

    भावार्थः

    ये विद्वांसोऽध्यापनोपदेशाभ्यां मनुष्याणां प्रज्ञां वर्द्धयन्ति ते सर्वहितैषिणो विज्ञेयाः ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (विद्वांसः) विद्वानो (ऋभवः) बुद्धिमानो ! (यूयम्) आप लोग (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (धिषणाभ्यः) बुद्धियों से (विश्वा) सम्पूर्ण (नर्य्याणि) मनुष्यों में श्रेष्ठ वा मनुष्यों के लिये हितकारक (भोजना) पालन वा अन्न (द्युमन्तम्) प्रकाशवाले (वृषशुष्मम्) बलियों के बल और (उत्तमम्) श्रेष्ठ (वाजम्) विज्ञान और (रयिम्) धन का तथा (नः) हम लोगों के लिये (वयः) जीवन का (आ, तक्षत) विस्तार कीजिये, उससे सुख को (परि, आ) सब प्रकार से बढ़ाइये ॥८॥

    भावार्थ

    जो विद्वान् पढ़ाने और उपदेश करने से मनुष्यों की बुद्धि बढ़ाते हैं, वे सब के हितैषी जानने चाहिये ॥८॥

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    विषय

    सात्विक भोजन

    पदार्थ

    [१] प्रभु कहते हैं कि हे (विद्वांसः) = ज्ञानी पुरुषो! (यूयम्) = तुम (अस्मभ्यम्) = हमारी प्राप्ति के लिए (धिषणाभ्यः) = बुद्धियों के लिए व स्तुतियों के लिए (विश्वा) = सब नर्याणि नरहितकारी (भोजना) = भोजनों को (परितक्षत) = सम्पादित करो। ऐसे ही भोजनों का सेवन करो, जो कि तुम्हारा हित करनेवाले हों-जिन भोजनों के सेवन से बुद्धि भी उत्तम बने तथा प्रभु स्तवन की वृत्ति बने, अर्थात् राजस व तामस भोजनों को न करके सात्त्विक भोजनों को ही करो। [२] हे (ऋभव:) = ज्ञानदीप्त पुरुषो! (नः) = हमारे लिए (द्युमन्तं वाजम्) = प्रशस्तज्ञान से युक्त बल को आतक्षत सम्पादित करो। (वृषशुष्मम्) = सुखसेचक बलों से युक्त (उत्तमं रयिम्) = प्रशस्त धन को सम्पादित करो तथा [उत्तम] (वयः) = उत्कृष्ट जीवन की साधना करो। प्रभुप्राप्ति के लिए आवश्यक है कि हम [क] प्रशस्त ज्ञानवाले बल से युक्त हों, [ख] सुखसेचक बल से युक्त उत्तम धन से युक्त हों, [ग] उत्कृष्ट जीवनवाले बनें ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सात्त्विक आहार से सात्त्विक बुद्धिवाले बनकर हम प्रभु को प्राप्त करें।

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    विषय

    ऋभु, विम्वा वाज, आदि विद्वानों वीरों के कर्त्तव्य उनमें वेदोपदेश के स्थिर करने का उपदेश ।

    भावार्थ

    हे (विद्वांसः ऋभवः) विद्वान् महोदयो ! (यूयं) आप लोग (धिषणाभ्यः परि) बुद्धियों से विचार कर (विश्वा नर्याणि भोजनानि तक्षत) सब प्रकार के लोकोपकारक भोजनों और भोग्य पदार्थों का निर्माण करो। और (द्युमन्तं वाजं) तेजस्वी प्रकाशयुक्त ज्ञान, बल और (वृषं शुष्मम्) बलवान् पुरुषों के बल रूप (उत्तमं रयिम्) उत्तम ऐश्वर्य को भी तैयार करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ ऋभवो देवता ॥ छन्दः- १, ६, ८ स्वराट् त्रिष्टुप् । ९ त्रिष्टुप् । २, ३, ४, ५ विराट् जगती । ७ जगती ॥ नवर्चं सूक्तम् ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे विद्वान शिकविण्याने व उपदेश करण्याने माणसांची बुद्धी वाढवितात ते सर्वांचे हितकर्ते असतात, हे जाणावे. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Rbhus, scholars and scientists of high order, with your knowledge, art and wisdom, create and provide for us the food, energy and modes of care and comfort we need for the sustenance of humanity. Create and bring us the light of science and progress of technology, strength and power coupled with generosity, highest form of life’s wealth and health and age.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The role of technology is described.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O highly learned wisemen ! do you bestow upon us (for the development of) our intellect, all nourishments and food that are good for men and resplendent knowledge. That is the real strength of the powerful persons and thus let you increase our happiness from all sides.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

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    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The learned men should be considered as the among the intellectuals.

    Foot Notes

    (भोजना) पालनान्यन्नानिवा । (भोजनानि ) भुज-पालनाभ्यवव्यवहारयोः । = Nutrients or food. (वृषशुष्मम् ) वृषाणां बलीनां बलम् शुष्ममिति बलनाम (NG 2, 9)। = The mighty.

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