ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 37/ मन्त्र 4
पीवो॑अश्वाः शु॒चद्र॑था॒ हि भू॒तायः॑शिप्रा वाजिनः सुनि॒ष्काः। इन्द्र॑स्य सूनो शवसो नपा॒तोऽनु॑ वश्चेत्यग्रि॒यं मदा॑य ॥४॥
स्वर सहित पद पाठपीवः॑ऽअश्वाः । शु॒चत्ऽऽर॑थाः । हि । भू॒त । आयः॑ऽशिप्राः । वा॒जि॒नः॒ । सु॒ऽनि॒ष्काः । इन्द्र॑स्य । सू॒नः॒ । श॒व॒सः॒ । न॒पा॒तः॒ । अनु॑ । वः॒ । चे॒ति॒ । अ॒ग्रि॒यम् । मदा॑य ॥
स्वर रहित मन्त्र
पीवोअश्वाः शुचद्रथा हि भूतायःशिप्रा वाजिनः सुनिष्काः। इन्द्रस्य सूनो शवसो नपातोऽनु वश्चेत्यग्रियं मदाय ॥४॥
स्वर रहित पद पाठपीवःऽअश्वाः। शुचत्ऽरथाः। हि। भूत। अयःऽशिप्राः। वाजिनः। सुऽनिष्काः। इन्द्रस्य। सूनो इति। शवसः। नपातः। अनु। वः। चेति। अग्रियम्। मदाय ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 37; मन्त्र » 4
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे पीवोअश्वाः शुचद्रथा अयःशिप्राः सुनिष्का वाजिनो यूयं हि विजयिनो भूत। हे नपातः शवस इन्द्रस्य सूनो ! त्वं मदायाग्रियं पुरुषार्थं कुरु यथाऽस्माभिर्वः सुखमनु चेति तथा युष्माभिरस्मत्सुखवृद्धिः प्रयत्येत ॥४॥
पदार्थः
(पीवोअश्वाः) पीवसः स्थूला अश्वा येषान्ते (शुचद्रथाः) शुचन्तः पवित्रा रथा यानानि येषान्ते (हि) यतः (भूत) भवत (अयःशिप्राः) अय इव शिप्रे हनूनासिके येषामश्वानां तद्वन्तः (वाजिनः) वेगवन्तः (सुनिष्काः) शोभनानि निष्कानि सुवर्णमयान्याभूषणानि येषान्ते (इन्द्रस्य) परमैश्वर्य्यवतो राज्ञः (सूनो) अपत्य (शवसः) बलवतः (नपातः) अविद्यमानाऽधःपतनस्य (अनु) (वः) (चेति) विज्ञायते (अग्रियम्) अग्रे भवं सुखम् (मदाय) आनन्दाय ॥४॥
भावार्थः
हे राजपुरुषा ! भवन्तो विस्तीर्णबलाः सेनाङ्गसहिता ऐश्वर्य्यालङ्कृता राज्याऽऽनन्दवृद्धये पुरुषार्थं कुर्वन्तु यतः शत्रवो युष्मान् तिरस्कर्तुं न शक्नुयुः ॥४॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (पीवोअश्वाः) मोटे घोड़ों (शुचद्रथाः) पवित्र वाहनों और (अयः शिप्राः) लोह के सदृश ठुड्ढी और नासिकावाले घोड़ों से युक्त (सुनिष्काः) सुन्दर सुवर्ण के आभूषणोंवाले (वाजिनः) वेगयुक्त आप लोग (हि) जिससे जीतनेवाले (भूत) हूजिये। और हे (नपातः) नीचे गिरना अर्थात् नीच दशा को प्राप्त होना जिसके नहीं उस (शवसः) बलवान् (इन्द्रस्य) अत्यन्त ऐश्वर्य्यवाले राजा के (सूनो) पुत्र ! आप (मदाय) आनन्द के लिये (अग्रियम्) प्रथम हुए सुख और पुरुषार्थ को करो और जैसे हम लोगों से (वः) आप लोगों का सुख (अनु, चेति) जाना जाता है, वैसे आप लोगों को हम लोगों की सुखवृद्धि का प्रयत्न करना चाहिये ॥४॥
भावार्थ
हे राजपुरुषो ! आप लोग विस्तीर्ण बल से युक्त और सेना के अङ्गों के सहित विराजमान और ऐश्वर्य्य से शोभित हुए राज्य के आनन्द की वृद्धि के लिये पुरुषार्थ करो, जिससे शत्रुजन आप लोगों का तिरस्कार करने को समर्थ न हो सकें ॥४॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे राजपुरुषांनो! तुम्ही अत्यंत बलयुक्त सेनांगांसह ऐश्वर्याने सुशोभित झालेल्या राज्याचा आनंद वाढविण्यासाठी पुरुषार्थ करा. ज्यामुळे शत्रूलोक तुमचा तिरस्कार करणार नाहीत. ॥ ४ ॥
English (1)
Meaning
O Rbhus, commanding mighty horse power, riding brilliant chariots, clad in corselets of steel, be golden great, tempestuous as winds. Consequently, O children of Indra, universal energy, unassailable images of strength and power, for your joy and celebration, the first and foremost tribute of soma yajna is selected and offered.
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