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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 37 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 37/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - ऋभवः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    सेदृ॑भवो॒ यमव॑थ यू॒यमिन्द्र॑श्च॒ मर्त्य॑म्। स धी॒भिर॑स्तु॒ सनि॑ता मे॒धसा॑ता॒ सो अर्व॑ता ॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । इत् । ऋ॒भ॒वः॒ । यम् । अव॑थ । यू॒यम् । इन्द्रः॑ । च॒ । मर्त्य॑म् । सः । धी॒भिः । अ॒स्तु॒ । सनि॑ता । मे॒धऽसा॑ता । सः । अर्व॑ता ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सेदृभवो यमवथ यूयमिन्द्रश्च मर्त्यम्। स धीभिरस्तु सनिता मेधसाता सो अर्वता ॥६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। इत्। ऋभवः। यम्। अवथ। यूयम्। इन्द्रः। च। मर्त्यम्। सः। धीभिः। अस्तु। सनिता। मेधऽसाता। सः। अर्वता ॥६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 37; मन्त्र » 6
    अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे ऋभवो ! यूयं यं मर्त्यमवथेन्द्रश्चावति स इद्धीभिर्युक्तः स सनिता सोऽर्वता मेधसाता विजय्यस्तु ॥६॥

    पदार्थः

    (सः) (इत्) एव (ऋभवः) मेधावी (यम्) (अवथ) रक्षथ (यूयम्) (इन्द्रः) परमैश्वर्य्यो राजा (च) (मर्त्यम्) मनुष्यम् (सः) (धीभिः) प्रज्ञाभिः (अस्तु) भवतु (सनिता) सत्याऽसत्ययोः संविभाजकः (मेधसाता) शुद्धसङ्ग्रामविभक्तम् (सः) (अर्वता) अश्वादिना ॥६॥

    भावार्थः

    हे राजसेनाजना ! यदि युष्माकमध्यक्षा राजा मेधाविनश्च रक्षकाः स्युस्तर्हि युष्माकं सर्वत्र विजयः सुखञ्च सततं वर्द्धेत ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (ऋभवः) बुद्धिमान् जनो ! (यूयम्) आप लोग (यम्) जिस (मर्त्यम्) मनुष्य की (अवथ) रक्षा करते हो और (इन्द्रः) अत्यन्त ऐश्वर्य्य युक्त राजा (च) भी रक्षा करता है (सः) (इत्) वही (धीभिः) बुद्धियों से युक्त (सः) वह (सनिता) सत्य और असत्य का विभाग करनेवाला और (सः) वह (अर्वता) घोड़ा आदि से (मेधसाता) शुद्ध संग्राम में विजयी (अस्तु) होवे ॥६॥

    भावार्थ

    हे राजसेनाजनो ! जो आप लोगों के अध्यक्ष राजा और बुद्धिमान् रक्षक होवें तो आप लोगों का सर्वत्र विजय और सुख निरन्तर बढ़े ॥६॥

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    विषय

    उत्तम बुद्धि व उत्तम इन्द्रियाँ

    पदार्थ

    [१] हे (ऋभव:) = ज्ञानदीप्त पुरुषो! (यूयम्) = आप (इन्द्रः च) = और वे परमैश्वर्यशाली प्रभु (यं मर्त्यम्) = जिस मनुष्य को अवथ रक्षित करते हो, (स इत्) = वह ही (धीमिः सनिता) उत्तम बुद्धियों व कर्मों से मेलवाला अस्तु हो । वस्तुतः जीवन में 'माता, पिता व आचार्य' ही ऋभु हैं। जिस भी व्यक्ति को ये उत्तम ऋभु प्राप्त होते हैं और जिस पर प्रभुकृपा बनी रहती है, वह उत्तम बुद्धिवाला बनता है और सदा सत्कर्मों का करनेवाला होता है । [२] इन ऋभुओं से व प्रभु से रक्षित होनेवाला, सः वह पुरुष मेधसाता इस जीवन-संग्राम में अर्वता उत्तम इन्द्रियाश्वों से संभक्त होता है। इसकी इन्द्रियाँ भी प्रशस्त बनती हैं। इसकी ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञानप्राप्ति में लगी रहती हैं और कर्मेन्द्रियाँ उत्तम यज्ञादि कर्मों में व्याप्त होती हैं। इस प्रकार यह इन्द्रियों को विषयपंक से मलिन नहीं होने देता।

    भावार्थ

    भावार्थ– ज्ञानदीप्त माता, पिता व आचार्यों से रक्षित तथा प्रभु से रक्षित पुरुष उत्तम बुद्धि व उत्तम इन्द्रियोंवाला बनता है।

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    विषय

    उत्तम सुवर्ण रत्नादि के आभूषण धारण करने का उपदेश।

    भावार्थ

    हे (ऋभवः) विद्वान्, तेजस्वी पुरुषो ! (यम् मर्त्यम्) जिस मनुष्य को (यूयम् इन्द्रः च अवथ) तुम और ऐश्वर्यवान् राजा रक्षा करते हैं या चाहते हैं वस्तुतः (सः इत्) वही श्रेष्ठ है । वही (धीभिः) उत्तम प्रज्ञा और कर्मों से (सनिता) सत्यासत्य का विवेक करने वाला, अन्यों को ज्ञानैश्वर्य देने वाला (अस्तु) हो और (मेधसाता) पवित्र यज्ञ के करने, पवित्र अन्न के देने और धर्म के संग्राम में (सः) वहीं (अर्वता) उत्तम ज्ञान, उत्तम ऐश्वर्य और उत्तम अश्व के सहित हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः॥ ऋभवो देवता॥ छन्दः– १ विराट् त्रिष्टुप। २ त्रिष्टुप। ३, ८ निचृत् त्रिष्टुप । ४ पंक्तिः ॥ ५, ७ अनुष्टुप ॥ ६ निचृदनुष्टुप् ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजसेनाजनांनो ! तुमचा अध्यक्ष राजा बुद्धिमान व रक्षक असेल तर तुमचा सर्वत्र विजय होईल व निरंतर सुख वाढेल. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Rbhus, visionaries of science, power and action, whoever the man you and the ruler, Indra, protect and promote, would be the man of dedication and discrimination with actions and intelligence, an admirable ally in the business of life with the fastest modes of movement and progress.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The previous subject of duties of the enlightened ones is dealt.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O wisemen ! may the man whom you and a prosperous king protect be endowed with wisdom. Also you become distinguisher between truth and falsehood and victorious in the battles.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O officers of the State and military men ! if kings and wisemen are your chiefs or guides, then your victory is assured and you may incessantly enjoy happiness.

    Foot Notes

    (सनिता) सत्याऽसत्ययोः सं विभाजकः । = Distinguisher between truth and falsehood. (मेघसाता ) शुद्धसंङ्ग्रामविभक्तौ =In the pure battle. (षण-संभक्तो (म्वा० ) To distinguish. मेधू-मेधासंगमनयोः हिंसायां च । By taking the third meaning of हिंसा or violence, the word, medha, may be used for battle though in the Nighantu (3, 15 ) it is stated मेध इति मेधाविनाम (NG 3, 15 ) and in 3, 17 as मेध इति यज्ञनाम (NG, 3, 17 ). By मेध or संग्राम even internal battle between good and bad tendencies and thoughts may be taken, as the help of wisemen is needed to defeat or nullify the undesirable thoughts and habits.

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