ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 49/ मन्त्र 3
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - इन्द्राबृहस्पती
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
आ न॑ इन्द्राबृहस्पती गृ॒हमिन्द्र॑श्च गच्छतम्। सो॒म॒पा सोम॑पीतये ॥३॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । इ॒न्द्रा॒बृ॒ह॒स्प॒ती॒ इति॑ । गृ॒हम् । इन्द्रः॑ । च॒ । ग॒च्छ॒त॒म् । सो॒म॒ऽपा । सोम॑ऽपीतये ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ न इन्द्राबृहस्पती गृहमिन्द्रश्च गच्छतम्। सोमपा सोमपीतये ॥३॥
स्वर रहित पद पाठआ। नः। इन्द्राबृहस्पती इति। गृहम्। इन्द्रः। च। गच्छतम्। सोमऽपा। सोमऽपीतये ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 49; मन्त्र » 3
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
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अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे सोमपा इन्द्राबृहस्पती ! युवां नो गृहं सोमपीतये आ गच्छतमिन्द्रश्चागच्छेत् ॥३॥
पदार्थः
(आ) (नः) अस्माकम् (इन्द्राबृहस्पती) राजाऽध्यापकौ (गृहम्) (इन्द्रः) ऐश्वर्य्यवान् (च) (गच्छतम्) (सोमपा) यो सोमं पिबतस्तौ (सोमपीतये) सोमस्योत्तमरसपानाय ॥३॥
भावार्थः
हे राजाऽमात्यधनाढ्या यथा वयं युष्मान्निमन्त्र्याऽन्नादिना सत्कुर्य्याम तथैव यूयमस्मान् सत्कुरुत ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (सोमपा) सोमलता के रस को पीनेवाले (इन्द्राबृहस्पती) राजा और अध्यापक आप दोनों (नः) हम लोगों के (गृहम्) घर को (सोमपीतये) सोमलता के उत्तम रस पीने के लिये (आ, गच्छतम्) आओ (इन्द्रः) और ऐश्वर्य्यवाला जन (च) भी आवे ॥३॥
भावार्थ
हे राजा, मन्त्री और धनी जनो ! जैसे हम लोग आप लोगों को निमन्त्रण देकर अन्न आदि से सत्कार करें, वैसे ही आप हम लोगों का सत्कार करो ॥३॥
विषय
इन्द्र और बृहस्पति
पदार्थ
[१] (इन्द्राबृहस्पती) = शक्ति व ज्ञान के देवता (इन्द्रः च) = और वे परमैश्वर्यशाली प्रभु (नः) = हमारे गृहम् इस शरीररूप गृह में (आगच्छतम्) = आएँ । हमारा लक्ष्य शक्ति व ज्ञान का सम्पादन हो। तथा इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हम प्रभु की उपासना करें। [२] (सोमपा) = [सोमपौ] ये इन्द्र और बृहस्पति सोम का पान करनेवाले हैं। जब हम शक्ति व ज्ञानप्राप्ति को अपना लक्ष्य बनाते हैं, तो हम सोम [वीर्य] का रक्षण करने में समर्थ होते हैं। सो ये इन्द्र और बृहस्पति सोमपीतये इस सोमपान [रक्षण] के लिए हमें यहाँ शरीरगृह में प्राप्त हों ।
भावार्थ
भावार्थ – शक्ति व ज्ञानप्राप्ति को जीवन का ध्येय बनाने से सोम [वीर्य] का पान सुगम हो जाता है।
विषय
उसी प्रकार आचार्य शिष्य ।
भावार्थ
हे (इन्द्रा बृहस्पती) ऐश्वर्यवन्! हे वाणी के पालक जनो ! हे राजन्, विद्वन् ! आप दोनों (सोमपा) ऐश्वर्यं और उत्तम ज्ञान का उपभोग या पान करने वाले राष्ट्र और शिष्य का पालन करने वाले हो । (इन्द्रः च) ऐश्वर्यवान् पुरुष और ज्ञानद्रष्टा विद्वान् दोनों ही आप (सोमपीतये) ज्ञान और ऐश्वर्य के पान और राष्ट्र और शिष्य पालन वा अन्नादि प्राप्त करने के लिये (नः गृहम्) हमारे गृह को (आ गच्छतम्) आइये ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः॥ इन्द्राबृहस्पती देवते। छन्द:– निचृद्गायत्री। २, ३, ४,५, ६ गायत्री॥ षड्जः स्वरः॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे राजा, मंत्री व श्रीमंतांनो ! जसे आम्ही तुम्हाला निमंत्रण देऊन अन्न इत्यादींनी सत्कार करतो तसेच तुम्ही आमचा सत्कार करा. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
May Indra-Brhaspati, ruler scholar of eminence, and Indra, controller and defender of power, honour and excellence, connoisseurs of the delight of soma, come to our home for a drink of soma. May they protect and promote the honour and prestige of the land.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The officials' duties are mentioned.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king and teacher ! you are drinkers of Soma juice. Come to our home for drinking the Soma juice. Let also a wealthy man come along with you.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O king, ministers and wealthy men ! as we honor you by inviting you in the dinner, so you should also do.
Foot Notes
(इन्द्राबृहस्पती ) राजाऽध्यापकौ । = King and teacher. (इन्द्रः ) ऐश्वर्य्यवान् । = A wealthy man.
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