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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 5/ मन्त्र 15
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - वैश्वानरः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒स्य श्रि॒ये स॑मिधा॒नस्य॒ वृष्णो॒ वसो॒रनी॑कं॒ दम॒ आ रु॑रोच। रुश॒द्वसा॑नः सु॒दृशी॑करूपः क्षि॒तिर्न रा॒या पु॑रु॒वारो॑ अद्यौत् ॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒स्य । श्रि॒ये । स॒म्ऽइ॒धा॒नस्य॑ । वृष्णः॑ । वसोः॑ । अनी॑कम् । दमे॑ । आ । रु॒रो॒च॒ । रुश॑त् । वसा॑नः । सु॒दृशी॑कऽरूपः । क्षि॒तिः । न । रा॒या । पु॒रु॒ऽवारः॑ । अ॒द्यौ॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्य श्रिये समिधानस्य वृष्णो वसोरनीकं दम आ रुरोच। रुशद्वसानः सुदृशीकरूपः क्षितिर्न राया पुरुवारो अद्यौत् ॥१५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अस्य। श्रिये। सम्ऽइधानस्य। वृष्णः। वसोः। अनीकम्। दमे। आ। रुरोच। रुशत्। वसानः। सुदृशीकऽरूपः। क्षितिः। न। राया। पुरुऽवारः। अद्यौत्॥१५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 5; मन्त्र » 15
    अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    यो रुशद्वसानः सुदृशीकरूपः पुरुवारो राया क्षितिर्नाद्यौत् यस्य समिधानस्य वृष्णो वसो राज्ञो दमे श्रियेऽनीकमारुरोच। तस्या अस्य सर्वाणि समाधानानि सुखानि च भवन्ति ॥१५॥

    पदार्थः

    (अस्य) वर्त्तमानस्य (श्रिये) शोभनायै लक्ष्म्यै वा (समिधानस्य) देदीप्यमानस्य (वृष्णः) बलिष्ठस्य (वसोः) वासयितुः (अनीकम्) सैन्यम् (दमे) गृहे (आ) समन्तात् (रुरोच) रोचते (रुशत्) सुन्दरं रूपम् (वसानः) प्राप्तः (सुदृशीकरूपः) सुष्ठु दर्शनीयस्वरूपः (क्षितिः) पृथिवी (न) इव (राया) धनेन (पुरुवारः) बहुभिर्वरणीयस्वरूपः (अद्यौत्) प्रकाशते ॥१५॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। ये सुरूपवन्तः पृथिवीवत् क्षमादिगुणा बहु प्रतिष्ठिताश्चकवर्त्तिराज्यश्रिया सुशोभिताः सन्तः सुशिक्षितां महाबलवतीं महतीं सेनामुन्नयन्ति तेषामेव चक्रवर्त्तिराज्यं संभाव्यते नेतरेषामिति ॥१५॥ अत्राऽग्निमेधाविराजाऽध्यापकोपदेशकप्रच्छकसमाधातृगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥१५॥ इति पञ्चमं सूक्तं तृतीयो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    जो (रुशत्) सुन्दर रूप को (वसानः) प्राप्त (सुदृशीकरूपः) उत्तम प्रकार देखने योग्य स्वरूप से युक्त (पुरुवारः) सब से स्वीकार करने योग्य स्वरूप से शोभित तथा (राया) धन से (क्षितिः) पृथिवी के (न) समान (अद्यौत्) प्रकाशित होता है, जिस (समिधानस्य) प्रकाशमान (वृष्णः) बलिष्ठ (वसोः) वसानेवाले राजा के (दमे) गृह में (श्रिये) शोभा वा लक्ष्मी के लिये (अनीकम्) सेना (आ) सब प्रकार (रुरोच) सुन्दर है, उस सेना के और (अस्य) इस वर्त्तमान राजा के सम्पूर्ण समाधान और सुख होते हैं ॥१५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो अच्छे रूपवान् पृथिवी के सदृश क्षमा आदि गुणवाले और प्रतिष्ठित चक्रवर्त्ती राजाओं की लक्ष्मी से शोभित हुए उत्तम प्रकार शिक्षित बड़ी बलवती बड़ी सेना को बढ़ाते हैं, उनका ही चक्रवर्त्ती राज्य संभावित होता है औरों का नहीं ॥१५॥ इस सूक्त में बुद्धिमान्, राजा, अध्यापक, उपदेशक, प्रश्नकर्ता और समाधानकर्ता के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥१५॥ यह पाँचवाँ सूक्त और तीसरा वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे स्वरूपवान पृथ्वीप्रमाणे क्षमा इत्यादी गुणांनी युक्त, प्रतिष्ठित, चक्रवर्ती राजलक्ष्मीने, शोभित झालेली प्रशिक्षित बलवान सेना वाढवितात, त्यांचेच चक्रवर्ती राज्य शक्य आहे, इतरांचे नाही. ॥ १५ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    For the expression of the grace and majesty of this Agni, lord of light and ruler of the world, bright and blazing, generous, home and haven of all like mother earth, his force and splendour shines in his home. And he himself, refulgent giver of radiance, magnificent in form, treasure home and universal giver of heavenly and earthly gifts for all, shines with regal magnificence and wealth of the world like mother earth shining with the greenery of her abundance and generosity.

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