ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 7/ मन्त्र 11
तृ॒षु यदन्ना॑ तृ॒षुणा॑ व॒वक्ष॑ तृ॒षुं दू॒तं कृ॑णुते य॒ह्वो अ॒ग्निः। वात॑स्य मे॒ळिं स॑चते नि॒जूर्व॑न्ना॒शुं न वा॑जयते हि॒न्वे अर्वा॑ ॥११॥
स्वर सहित पद पाठतृ॒षु । यत् । अन्ना॑ । तृ॒षुणा॑ । व॒वक्ष॑ । तृ॒षुम् । दू॒तम् । कृ॒णु॒ते॒ । य॒ह्वः । अ॒ग्निः । वात॑स्य । मे॒ळिम् । स॒च॒ते॒ । नि॒ऽजूर्व॑न् । आ॒शुम् । न । वा॒ज॒य॒ते॒ । हि॒न्वे । अर्वा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तृषु यदन्ना तृषुणा ववक्ष तृषुं दूतं कृणुते यह्वो अग्निः। वातस्य मेळिं सचते निजूर्वन्नाशुं न वाजयते हिन्वे अर्वा ॥११॥
स्वर रहित पद पाठतृषु। यत्। अन्ना। तृषुणा। ववक्ष। तृषुम्। दूतम्। कृणुते। यह्वः। अग्निः। वातस्य। मेळिम्। सचते। निऽजूर्वन्। आशुम्। न। वाजयते। हिन्वे। अर्वा॥११॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 7; मन्त्र » 11
अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 7; मन्त्र » 6
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अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 7; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुन शिल्पिविद्वद्विषयमाह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! यद्यो यह्वोऽर्वेव निजूर्वन्नग्निस्तृषुणाऽन्ना तृषु ववक्ष तृषु दूतमिव कृणुते वातस्य मेळिं सचते यं विद्वानाशुं न वाजयतेऽहं हिन्वे तं यूयं विजानीत ॥११॥
पदार्थः
(तृषु) क्षिप्रम्। तृष्विति क्षिप्रनामसु पठितम्। (निघं०२.१५) (यत्) यः (अन्ना) अन्नादीनि (तृषुणा) क्षिप्रेण (ववक्ष) वहति (तृषुम्) क्षिप्रकारिणम् (दूतम्) दूतमिव (कृणुते) करोति (यह्वः) महान् (अग्निः) विद्युत् (वातस्य) (मेळिम्) सङ्गमम् (सचते) समवैति (निजूर्वन्) नितरां सद्यो गच्छन् (आशुम्) शीघ्रगामिनमश्वम् (न) इव (वाजयते) गमयति (हिन्वे) गमयेय (अर्वा) वाजीव ॥११॥
भावार्थः
यदि मनुष्याः विद्युद्वाय्वादियोगविद्यां जानीयुस्तर्हि ते दूतवदश्ववद्दूरं यानं समाचारं च गमयितुं शक्नुयुः ॥११॥ अत्राग्निविद्युद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥११॥ इति सप्तमं सूक्तं सप्तमो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर शिल्पि विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (यत्) जो (यह्वः) बड़े (अर्वा) घोड़े के सदृश (निजूर्वन्) निरन्तर शीघ्र चलती हुई (अग्निः) बिजुली (तृषुणा) शीघ्रता से युक्त (अन्ना) अन्न आदिक पदार्थों को (तृषु) शीघ्र (ववक्ष) प्राप्त कराती है (तृषुम्) शीघ्र कार्य्यकारी (दूतम्) समाचार पहुँचानेवाले जन के सदृश अपने प्रताप को (कृणुते) करती है और (वातस्य) पवन के (मेळिम्) सङ्गम का (सचते) सम्बन्ध करती है जिसको विद्वान् जन (आशुम्) शीघ्र चलनेवाले घोड़े के (न) सदृश (वाजयते) चलाता है, मैं (हिन्वे) चलाऊँ, उसको आप लोग जानिये ॥११॥
भावार्थ
जो मनुष्य बिजुली और वायु आदि के योग की विद्या को जानें तो वे दूत और घोड़े के सदृश दूर वाहन और समाचार को पहुँचा सकें ॥११॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वान् के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥११॥ यह सातवाँ सूक्त और सातवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे विद्युत व वायू इत्यादींच्या योगविद्या जाणतात तेव्हा ती दूताप्रमाणे व अश्वाप्रमाणे दूर यान व वार्ता पोचवू शकतात. ॥ ११ ॥
English (1)
Meaning
Mighty Agni, fire and energy, fast and quick, speedily bears and brings food, and functions as instant carrier of communications. Running and rising fast, it joins the company of the winds and, like a galloping horse and current of energy, it travels over vast distances. I invoke Agni (for light, food and communications).
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