ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 11/ मन्त्र 1
जन॑स्य गो॒पा अ॑जनिष्ट॒ जागृ॑विर॒ग्निः सु॒दक्षः॑ सुवि॒ताय॒ नव्य॑से। घृ॒तप्र॑तीको बृह॒ता दि॑वि॒स्पृशा॑ द्यु॒मद्वि भा॑ति भर॒तेभ्यः॒ शुचिः॑ ॥१॥
स्वर सहित पद पाठजन॑स्य । गो॒पाः । अ॒ज॒नि॒ष्ट॒ । जागृ॑विः । अ॒ग्निः । सु॒ऽदक्षः॑ । सु॒वि॒ताय॑ । नव्य॑से । घृ॒तऽप्र॑तीकः । बृ॒ह॒ता । दि॒वि॒ऽस्पृशा॑ । द्यु॒ऽमत् । वि । भा॒ति॒ । भ॒र॒तेभ्यः॑ । शुचिः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
जनस्य गोपा अजनिष्ट जागृविरग्निः सुदक्षः सुविताय नव्यसे। घृतप्रतीको बृहता दिविस्पृशा द्युमद्वि भाति भरतेभ्यः शुचिः ॥१॥
स्वर रहित पद पाठजनस्य। गोपाः। अजनिष्ट। जागृविः। अग्निः। सुऽदक्षः। सुविताय। नव्यसे। घृतऽप्रतीकः। बृहता। दिविऽस्पृशा। द्युऽमत्। वि। भाति। भरतेभ्यः। शुचिः ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 11; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
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अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथाग्निगुणानाह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या! यो जनस्य गोपा जागृविः सुदक्षो घृतप्रतीकः शुचिरग्निर्बृहता दिविस्पृशा नव्यसे सुवितायाजनिष्ट भरतेभ्यो द्युमद्विभाति तं यथावद्विजानीत ॥१॥
पदार्थः
(जनस्य) मनुष्यस्य (गोपाः) रक्षकः (अजनिष्ट) जायते (जागृविः) जागरूकः (अग्निः) पावकः (सुदक्षः) सुष्ठु बलं यस्मात् (सुविताय) ऐश्वर्य्याय (नव्यसे) अतिशयेन नवीनाय (घृतप्रतीकः) घृतमाज्यमुदकं वा प्रतीतिकरं यस्य सः (बृहता) महता (दिविस्पृशा) यो दिवि प्रकाशे स्पृशति तेन (द्युमत्) प्रकाशवत् (वि) विशेषेण (भाति) प्रकाशते (भरतेभ्यः) धारणपोषणकृद्भ्यो मनुष्येभ्यः (शुचिः) पवित्रः ॥१॥
भावार्थः
विद्वद्भिरग्न्यादिपदार्थगुणा अवश्यं विज्ञातव्याः ॥१॥
हिन्दी (1)
विषय
अब छः ऋचावाले ग्याहवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्नि के गुणों का उपदेश करते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (जनस्य) मनुष्य की (गोपाः) रक्षा करने और (जागृविः) जागनेवाला (सुदक्षः) अच्छे प्रकार बल जिससे (घृतप्रतीकः) और घृत वा जल प्रतीतिकर जिसका ऐसा (शुचिः) पवित्र (अग्निः) अग्नि (बृहता) बड़े (दिविस्पृशा) प्रकाश में स्पर्श करनेवाले से (नव्यसे) अत्यन्त नवीन (सुविताय) ऐश्वर्य के लिये (अजनिष्ट) उत्पन्न होता तथा (भरतेभ्यः) धारण और पोषण करनेवाले मनुष्यों के लिये (द्युमत्) प्रकाश के सदृश (वि) विशेष करके (भाति) प्रकाशित होता है, उसको यथावत् जानिये ॥१॥
भावार्थ
विद्वानों को चाहिये कि अग्नि आदि पदार्थों के गुण अवश्य जानें ॥१॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात अग्नी व विद्वानाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसुक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
भावार्थ
विद्वानांनी अग्नी इत्यादी पदार्थांचे गुण अवश्य जाणावे. ॥ १ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, fire energy, friend and protector of man, ever awake, versatile power, it arises for the latest good of humanity. Feeding and rising on the fuel of ghrta, shining pure and magnificent with heat and light touching the skies, it shines and gives light for those who feed and keep the fire burning.
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